जातिगत जनगणना मोदी सरकार का साहसिक निर्णय ................... आलेख.................... राजकुमार बरूआ

आलेख
जातिगत जनगणना मोदी सरकार का साहसिक निर्णय
- राजकुमार बरूआ
सङ्गमः सर्वधर्मेण, एका एकता भवेत् ।
अखंड भारत भूमी, सर्वजनाः सुखी भवन्त् ॥
मोदी सरकार अपने सहासिक निर्णयों के कारण ही मजबूती से चल रही है। सरकार के फैसलों में जनता उसके साथ खड़ी दिखाई देती है। सरकार ने राजनीतिक महत्व का एक बड़ा कदम उठाते हुए, देश में आम जनगणना में जातियों की गणना करवाने का साहसिक फैसला किया है। जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीति बनाने और उस पर अमल करने के साथ-साथ देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम होते हैं। इससे न सिर्फ जनसंख्या वृद्धि बल्कि जनसांख्यिकी, आर्थिक स्थिति और भी कई अहम पहलुओं का पता चलता है। पिछले लंबे समय से लगभग सभी राजनीतिक दल जनगणना के साथ ही जातीय गणना के लिए भी सरकार पर दबाव बना रहे थे। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि सरकार के इस फैसले के साथ सभी राजनीतिक दल भी मिलकर इसमें अपना सहयोग देंगे।
सैद्धांतिक रूप से जातीय जनगणना का प्रयोजन यह पता करना है कि विभिन्न जातियां और उपजातियां कहां खड़ी हैं, ताकि सरकार हाशिए पर खड़े लोगों को आगे आने का मौका देने के लिए उपयुक्त नीतियां बना सके। अभी तक हम 1931 की जातिगत जनगणना के आंकड़ों पर ही निर्भर हैं। उसके बाद 2011 में भी एक जातिगत जनगणना हुई थी, लेकिन उसके अधिकांश निष्कर्षों को सार्वजनिक नहीं किया गया है। यह अजीब बात है कि न तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए- जो उस समय सत्ता में थी और न ही भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए जो पिछले 11 वर्षों से सत्ता में है, ने 2011 की जनगणना से मिली जानकारियों का खुलासा किया है ना ही वह जानकारी 'लीक' हो पाई। कहा जाता है कि 2011 की जातिगत जनगणना से पता चला था कि भारत में 46 लाख जातियां हैं और यदि यह सच है तो अब मोदी सरकार जो जनगणना कराने वाली है, उसके लिए सरकार एक ऐसी व्यवस्था बनाएं जिसके द्वारा ली गई सारी जानकारियां इतनी स्पष्ट और सटीक हो कि जिस पर किसी भी प्रकार का प्रश्न चिन्ह ना लग पाए और इस व्यवस्था में लगे हुए लोग ही इस बात को गंभीरता से ध्यान में रखें कि यहां सिर्फ एक जनगणना ना होकर भारत के भविष्य की नींव रखने के लिए अति आवश्यक प्रक्रिया है, जो आने वाले वर्षों में भारत में बनने वाली जनकल्याणकारी नीतियों को मजबूती प्रदान करेंगी।
पिछली सरकार ने 2011 की जनगणना के साथ ही जातियों की गणना करने के लिए जो उपक्रम किया था उसमें लाखों जातियां होना बताया गया है, जिसकी कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। पर यदि ऐसा हुआ है तो यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे न केवल समय की बर्बादी हुई बल्कि इसके साथ ही इस प्रक्रिया में जो जनधन खर्च हुआ है, वह भी देश की जनता का ही है। और पिछली सरकार के घोटालों में एक जनगणना घोटाला इसे भी कहा जा सकता है, ।
याद रहे कि देश में पहली बार 1881 में अंग्रेजों ने व्यवस्थित जनगणना कराई थी। इसमें जातियों की भी गिनती हुई थी, और यह क्रम अनवरत 1931 तक चलता रहा। पर आजाद भारत में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जातिगत जनगणना ना करने का निर्णय लिया। इसके लिए उनका तर्क था कि इससे समाज में विघटन हो सकता है। वर्तमान समय में भी कई राजनीतिक पार्टियां जिसमें कुछ प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दल जातीय जनगणना का और उस से प्राप्त आंकड़ों का अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए गलत उपयोग कर सकती हैं। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यह एक बड़ी समस्या है और इस पर सरकार को विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। ऐसा ना हो कि इसके लिए भी कोई ऐसी योजना बनानी ही चाहिए, पर सभी राजनीतिक दलों को इस बात को भली-भांति समझ लेना चाहिए कि यह विषय देश का है और देश की एकता और अखंडता के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। इन सारी बातों में एक बात जो सबसे अच्छी है कि जातिगत जनगणना के पक्ष में सभी राजनीतिक दल एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। हां पर यह जरूर है कि सभी इसका श्रेय लेने की कोशिश करने में लगे हैं।
आजाद भारत में पहली बार कराएंगे जातिगत जनगणना
भारत सरकार ने आखिर एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने की घोषणा कर दी है। यह निर्णय केंद्रीय मंत्रिमंडल और राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा मंजूर किया गया है। मोदी सरकार एक अनुभवी सरकार है, और सरकार में आते ही सरकारी कर्मचारियों को भी सरकार ने समझा दिया था कि अपने काम के प्रति उन्हें निष्ठावान होना पड़ेगा और काम में किसी भी प्रकार की लापरवाही सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी। जिसका कुछ असर सरकारी व्यवस्था में दिखने भी लगा है। पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं जो इससे पहले की सरकारों ने उन विषयों पर बिल्कुल चुप्पी साध रखी थी या उस पर बात करना उन्हें गवारा नहीं था। मोदी सरकार ने कई ऐतिहासिक निर्णय लेकर भारत की बुनियाद को मजबूत किया है जिसकी प्रशंसा आज पूरा विश्व कर रहा है। इस सरकार की सबसे मजबूत कड़ी है “जनता” जो खुद को इससे जुड़ा हुआ महसूस करती है और सरकार के हर निर्णय में उसके साथ खड़ी दिखाई देती है।
वर्तमान में भारत की आबादी लगभग 144 करोड़ से ज्यादा हो गई हैं। ग्राफ के अनुसार 2025 के अंत तक यह आबादी 150 करोड़ होने का अनुमान है। 2025 के केंद्रीय बजट में जनगणना के लिए पर्याप्त धनराशि का प्रावधान नहीं किया गया है। यह प्रक्रिया को और विलंबित कर सकता है। बिहार के अनुभव से पता चलता है कि जातिगत जनगणना के लिए व्यापक संसाधनों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। जाति की जनगणना एक जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि भारत में हजारों जातियां और उपजातियां हैं। डेटा संग्रह, सत्यापन और विश्लेषण में भी समय लगेगा। इसके लिए अभी तक कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
भारत में आज भी लोगों को जातियों में बांट कर उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता है, और कुछ राजनीतिक दल तो एक जाति ( समुदाय ) विशेष पर अपना एकाधिकार समझती है। राजनीतिक कारणों से उसका शोषण करने से भी पीछे नहीं रहती है। चुनाव के दौरान तो जातिगत व्यवस्था इतना विकराल रूप ले लेती है कि हर दल या प्रत्याशी का पूरा गणित ही जातिगत व्यवस्थाओं के आधार पर चुनाव जीतने में लग जाता है। इन सारी समस्याओं को दरकिनार कर सरकार ने भविष्य के भारत निर्माण के लिए एक अति महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला लिया है जिसमें सभी राजनीतिक दलों को अपना पूर्ण सहयोग देकर जातियों की गणना को सफलतापूर्वक संपन्न कराने में अपना पूरा सहयोग देना ही पड़ेगा जो भारत के सुंदर भविष्य की कल्पना को साकार करेगा। मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय की सफलता के लिए देश के हर नागरिक को अपना पूर्ण सहयोग देना चाहिए। मोदी सरकार का यह निर्णय सकल समाज के लिए हितकारी, लाभकारी होगा, जो भारत के भविष्य को मजबूती प्रदान करेगा।
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श्री राजकुमार बरूआ वरिष्ठ लेखक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।