आलेख....

बटोगे तो कटोगे" ! केवल नारा नहीं !! हकीकत है !!

 

 डॉ. बालाराम परमार 'हॅंसमुख

 

 भारत में अधिकांश लोग नारों पर ध्यान नहीं देते हैं। उनका मानना है कि नारे हैं नारों का क्या! आप और हम सबने राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और चुनावी कार्यक्रम में लोगों को नारे लगाते देखा और सुना है। नारे आदर्श वाक्य या वाक्यांश होते हैं जिसका लक्ष्य जनता अथवा परिभाषित लक्ष्य समूह को राज़ी करना होता है।

      हमारे देश में नारे आजादी से पहले भी अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में लगते थे और बाद में राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव जीतने के लिए लगाए जाने लगे। मेरा ऐसा मानना है कि राजनीतिक दलों द्वारा नारों का जनता की अल्प याददास्त को नापने तथा अन्य दलों को चिढ़ाने के लिए ज्यादा होता है।

      मेरे जीवन में नारे लगाने का सिलसिला लम्बे अरसे ज़ारी है । 1977 से बालचर दल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में "देश की रक्षा कौन करेगा, हम करेंगे हम करेंगे", लगाता और लगवाता रहा हूं। उसके बाद से लेकर अब तक जिन राजनीतिक नारों को सुना है, उनका यहां उद्धृत करना प्रासंगिक है ।    

       1907 में केरल के क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई ने "जय हिन्द" का नारा बुलंद किया जाकर बाद में आजाद हिन्द फौज के महानायक सुभाष चन्द्र बोस का नारा बना। आजादी के आंदोलन के समय प्रमुखता से जो नारे लगाए जाते रहे..  उनमें कुछ इस प्रकार है। गांधी जी ने नारा दिया था -" अंग्रेजों भारत छोड़ो"। तिलक का नारा था -" स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है"। भगतसिंह और उनके साथियों का नारा था -" इंकलाब जिंदाबाद"।

       जब देश आजाद हुआ तब राजनीतिक पार्टियों के नेता तथा प्रधानमंत्रियों ने भी समय-समय पर नारे बुलंद किए। प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी का नारा था-"आराम हराम है"। लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया-" जय जवान, जय किसान"। उसके बाद धीरे-धीरे राजनीतिक नारों का स्तर घटता गया और एक अलग ही शक्ल अख्तियार कर ली। 1977 के आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने येन-केन प्रकार से चुनाव जीतने के लिए कई तरह के नारे गढ़े । 1980 में रायबरेली से चुनाव लड़ते समय इंदिरा कांग्रेस की ओर से नारा दिया गया था -'बीस कम चालीस'। हुआ यूं था कि इंदिरा जी के विरोध में राजमाता सिंधिया चुनाव लड़ रही थी। उनको हराने के लिए इंदिरा जी ने अपने पति फिरोज गांधी के विरोध में चुनाव लड़ चुके एक समाजवादी से मदद मांगी। उन्होंने मतदाताओं में भ्रम फैलाने के लिए नारा दिया - "सिंधिया जीती तो साठ जूते खाने पड़ेंगे और इंदिरा जीते तो उससे बीस कम अर्थात चालीस। जब वी.पी. सिंह जी चुनाव लड़े तब नारा आया- "राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है"। नरसिम्हा राव के समय नारा आया -'चार कदम सूरज की ओर' और अटल बिहारी जी के समय पर 'भारत उदय' 

          नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ी ही सोच- समझ के साथ पहला नारा दिया "सबका साथ, सबका विकास" और बाद में इसमें जोड़ा गया "सब का विश्वास"। इसी बीच सत्ता प्राप्ति की लालसा में राहुल गांधी की ओर से नारा उछाला गया "मोहब्बत की दुकान"।

        पिछले चालीस साल बाद सबसे ज्यादा चौंकाने वाला और रातों रात दुनिया भर में प्रसिद्ध होने वाला नारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दिया- "बटोगे तो कटोगे"। योगी आदित्यनाथ का यह नारा आते ही भारत के साथ ही साथ विश्व के प्रमुख देशों में तहलका मच गया । यहां तक कि अमेरिका में राष्ट्रपति के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने इस नारे की अहमियत पहचानी और कहा कि 'अमेरिका में हमारी सरकार आई तो बांग्लादेश सहित विश्वभर के देश में रह रहे हिंदू और हिंदुत्व की रक्षा करेंगे'

          असल में 'बटोगे तो कटोगे', नारे की उपज 1988 में हिन्दू विश्व परिषद के "जय श्री राम" के नारे की पृष्ठभूमि में हुई है। क्योंकि पिछले चार दशक से लगातार सनातन धर्म के विरोध में तथाकथित सेकुलरवादी राजनीतिक दलों एवं सरकारी धन पर पल रहे एनजीओ और कृतज्ञ पत्रकारों द्वारा किया जाता रहा है। 'किन्तु -परंतु'  के साथ विदेशी ताकतों के धन बल पर हिंदू धर्म को बदनाम करने की साजिश को अंजाम दिया जाता रहा है । हिंदू देवी-देवताओं पर लगातार छींटाकशी की जा रही है। उनके आकार -प्रकार और वाहनों को लेकर लगातार आक्रमण हो रहा था।

           हिन्दू धर्मावलंबी बहुलता वाले देश में 60 -70 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस को हर कहीं भगवान राम के नाम में राजनीति नजर आती है। ममता बनर्जी हिंदू होकर भी जय श्री राम के नारे पर भड़क उठती है। हिंदुत्व विरोधी आवाज विशेष कर 2004 के बाद 10 साल मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व में गांधी परिवार द्वारा संचालित सरकार में ज्यादा देखने को मिली। कांग्रेस सरकार और गांधी परिवार ने सबसे पहले राम के अस्तित्व को नकारा। फिर रामसेतु को नकारा और रही सही कसर फरवरी 2024 में भगवान राम के मंदिर के उद्घाटन के समय "किंतु-परंतु " लगाकर पूरी कर दी।

          कोई माने या ना माने, यह निर्विवाद सत्य है कि संघ परिवार,  नरेंद्र मोदी तथा योगी आदित्यनाथ बहुत ही सोच समझकर बोलते हैं। और जो बोलते हैं उसे करते हैं। फिर चाहे कीमत कुछ भी चुकानी पड़े। कम से कम पिछले 10 साल का अनुभव तो यही बताता है।

            सोशल मीडिया में योगी जी का "बटोगे तो कटोगे", नारा महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक दलों और मीडिया द्वारा ऐसा सोचना क्षुद्र बुद्धि का ही परिचय है। 

      सनातन धर्म के संदर्भ में इस नारे का संबंध बहुत ही पुराना और गंभीर है। महाभारत काल से लेकर महाराजा रणजीत सिंह और बाद के काल तक आज का अफगानिस्तान भारत का हिस्सा हुआ करता था और वहां हिंदूओं का शासन था। लेकिन जब वहां बौद्ध और हिन्दू बटे और हश्र हम सबके सामने है । 1947 के पहले पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू आपस में बटे। यह हश्र भी हमारे सामने हैं। इस तरह के ऐतिहासिक संदर्भ में यह नारा बहुत ही मायने रखता है। अनेकता में एकता का भाव झलकता है।

           भारत एक प्रजातांत्रिक देश है । कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में आ सकता है। लेकिन स्मरण रहे कि सत्ता का दुरुपयोग किसी धर्म विशेष के पक्ष या विपक्ष में नहीं होना चाहिए। संविधान में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द को 1976 में 42 वें संविधान संशोधन के ज़रिए जोड़ कर देश के बहुसंख्यक समुदाय के साथ खिलवाड़ किया गया। जबकि यह शब्द संविधान सभा को उचित लगता तो प्रस्तावना में अवश्य शामिल किया जाता । 

        आजादी के बाद का इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने नेहरू जी, इंदिरा जी और सोनिया जी के नेतृत्व में सत्ता का दुरुपयोग सनातन हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति और हिंदू देवी-देवताओं देवताओं के मखौल उड़ाने में किया और साथ दिया वामपंथी और द्रविड़ियन दलों ने।

           विपक्षी दल और गोदी मीडिया "बटोगे तो कटोगे" नारे को ऐसे प्रचारित कर रहे हैं जैसे अब देश में खून की नदियां बहेंगी। जबकि सच्चाई यह है कि देश में अमन चैन और भाईचारे की गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और नर्मदा बहेगी । इसी बात को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तरीके से कहा कि "एक रहोगे तो सुरक्षित रहोगे"।

             आलम यह है कि इस नारे को राजनीतिक दलों से ज्यादा जनता ने समझ लिया है। जनता ने इस नारे के पीछे के संदेश को पहचान लिया है।

             योगी आदित्यनाथ के इस नारे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने न केवल अपना समर्थन दिया बल्कि भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा में शामिल भी कर लिया है। रही बात संघ परिवार की। तो योगी आदित्यनाथ के "बटोगे तो कटोगे" नारे ने हिंदूवादी विचारधारा के मुंह की बात कह दी है। क्योंकि समस्त हिन्दू समाज अब भेदभाव भुलाकर एक होना चाहता है। राज काज और जीवन का आनंद लेना चाहता है।

           विपक्षी दल समूह ने जम्मू कश्मीर में भाजपा की सरकार नहीं बनने से गदगद होकर कांग्रेस के इशारे पर अल्पसंख्यक समुदाय को रिझाने के लिए तेजस्वी यादव को आगे किया है । तेजस्वी यादव और उनके पिता वर्षों से सनातन धर्म के विरोध में बोलते रहे हैं। मुमकिन है कि अगले चुनाव में उनका हश्र भी मायावती की तरह हो सकता है। 'बटोगे तो कटोगे'  नारे ने राहुल गांधी के 'मोहब्बत की दुकान' नारेबाज़ी में अच्छी खासी सेंध लगाई है। तमिलनाडु और केरल में भाजपा की बढ़ती ताकत दक्षिण भारत में एक नया राजनीतिक और धार्मिक समीकरण बनाने में कामयाब होगी ।

          अगले संसद सत्र में इस नारे को लेकर एक नए तरह का राजनीतिक वातावरण तैयार करने की कोशिश होगी। लेकिन मतदाताओं के हृदय से इस नारे को निकालना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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डा. बालाराम परमार “हंसमुख” स्वतंत्र लेखक हैं।