बिहार चुनाव................................... भविष्य की राजनीति का इशारा करेंगे बिहार के चुनाव नतीजे ..............................आलेख.................... श्याम यादव
बिहार चुनाव....
भविष्य की राजनीति का इशारा करेंगे
बिहार के चुनाव नतीजे
- श्याम यादव
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बिहार विधानसभा के चुनाव इस बार सिर्फ राज्य तक सीमित नहीं होंगे। इसके नतीजे देश की राजनीति को कई तरह से प्रभावित करेंगे। बिहार के नतीजों से इस बात का संकेत भी मिलेगा कि भविष्य की देश की राजनीति किस दिशा में मोड़ लेगी। यदि बिहार में एनडीए कमजोर पड़ा, तो अगले दो सालों में चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी इसका असर पड़ना तय है!
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इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव का असर केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा। यह चुनाव आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति की दिशा तय करेगा। जिस तरह गंगा की धार बिहार से निकलकर पूरे देश की ज़मीन को सींचती है, उसी तरह बिहार की राजनीतिक बयार भी दिल्ली की सत्ता तक पहुँचती है। इतिहास गवाह है कि बिहार के जनादेश ने हमेशा राष्ट्रीय राजनीति के समीकरणों को नया रूप दिया है, चाहे वह जयप्रकाश आंदोलन रहा हो या मंडल राजनीति का उदय। इसलिए इस बार के बिहार चुनाव को महज़ एक राज्यीय चुनाव मानना भूल होगी। यह चुनाव उस राजनीतिक मानसून की तरह है, जिसकी पहली फुहार पूरे देश की सियासत को भिगोने वाली है।
बिहार में भारतीय जनता पार्टी यदि एक बार फिर सत्ता बचाने में सफल रहती है, तो यह नरेंद्र मोदी के करिश्मे की पुनर्पुष्टि होगी। इससे भाजपा को यह भरोसा मिलेगा कि जनाधार अब भी सुरक्षित है और विपक्ष की एकजुटता उसे निर्णायक चुनौती नहीं दे सकी। यह संदेश न केवल दिल्ली, बल्कि हर उस राज्य तक जाएगा, जहाँ अगले दो वर्षों में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन, यदि बिहार में सत्ता का पलड़ा विपक्ष की ओर झुक गया, तो यह भाजपा के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक चेतावनी होगी। विपक्षी दलों के लिए बिहार में जीत का अर्थ होगा कि जनता अब एक विकल्प चाहती है। ऐसा हुआ तो इसका सीधा असर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गुजरात जैसे राज्यों में दिखेगा, जहाँ 2027 और 2028 में चुनाव होने हैं।
उत्तर प्रदेश देश की सबसे बड़ी राजनीतिक प्रयोगशाला है जो बिहार की हवा से सबसे पहले प्रभावित होता है। अगर बिहार में एनडीए कमजोर पड़ता है, तो समाजवादी पार्टी को नई ऊर्जा मिलेगी। पहले से ही समाजवादी पार्टी का ग्राफ बढ़ता दिख रहा है और वह पौने दो सौ सीटों के करीब पहुँचने की स्थिति में है। अखिलेश यादव को बिहार की विपक्षी सफलता से यह भरोसा मिलेगा कि जनभावना बदलाव चाह रही है। कांग्रेस की स्थिति उत्तर प्रदेश में इस समय कमजोर है। उसके पास महज़ दो विधायक हैं। मगर राजनीति में लहरें अप्रत्याशित होती हैं। बिहार में विपक्षी बयार चली तो कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश के आसमान में भी बादल पहले से ज़्यादा पानीदार हो जाएंगे। लोग फिर से यह सोचने लगेंगे कि भाजपा का विकल्प केवल क्षेत्रीय दल नहीं, बल्कि कांग्रेस भी हो सकती है। लेकिन अगर बिहार जस-का-तस रहा या भाजपा के लिए अब से भी बेहतर नतीजे आए, तो मान लीजिए कि कांग्रेस की राह और कठिन हो जाएगी। समाजवादी पार्टी के लिए भी भाजपा के विजय अभियान को रोकना मुश्किल होगा।
उत्तराखंड की राजनीति भी उत्तर प्रदेश की छाया में चलती है। वहाँ कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला लगभग सीधा है। पिछली बार कांग्रेस के 20 विधायक जीतकर आए थे, जबकि सांगठनिक गड़बड़ियों और नेताओं की आपसी तूतू-मैंमैं के बावजूद यह प्रदर्शन उल्लेखनीय था। अगर बिहार में विपक्षी मोर्चा मजबूती से उभरता है, तो उत्तराखंड में कांग्रेस की वापसी की संभावना ठोस हो जाएगी। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पहाड़ी राज्यों की राजनीति भावनात्मक ज्यादा होती है। अगर बिहार जैसे बड़े राज्य में भाजपा को झटका लगा, तो उत्तराखंड के मतदाताओं में भी बदलाव का भाव जागेगा। तब वहां कांग्रेस की सीटें 20 से बढ़कर 40 के पार जाना असंभव नहीं होगा।
पंजाब में भाजपा की स्थिति अब भी नगण्य है। उसके सिर्फ़ दो विधायक हैं। आम आदमी पार्टी ने जबरदस्त बहुमत हासिल किया था। लेकिन, अब जनता उस प्रदर्शन से खुश नहीं है। आप सरकार के प्रति असंतोष लगातार बढ़ रहा है। बिहार में विपक्ष की जीत का असर पंजाब पर यह होगा कि कांग्रेस, जो इस समय 16 सीटों पर है, एक बार फिर मजबूत विपक्ष के रूप में उभरेगी। अगर बिहार में विपक्ष की लहर चल पड़ी तो पंजाब में यह लहर “विश्वास” में बदल सकती है। 2027 के चुनाव तक कांग्रेस बहुमत के करीब पहुँच सकती है। भाजपा के लिए यहाँ कोई बड़ी संभावना नहीं है चाहे बिहार का नतीजा जो भी हो, उसकी स्थिति दो से बढ़कर आठ या बारह सीटों तक ही सिमट सकती है।
गुजरात नरेंद्र मोदी और अमित शाह की कर्मभूमि है, अब भाजपा का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। पिछले चुनाव में भाजपा ने 162 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस केवल 12 पर सिमट गई। लेकिन, राजनीति स्थायी नहीं होती। अगर बिहार में भाजपा कमजोर होती है, तो गुजरात के भीतर भी बदलाव की हलचल शुरू होगी। कांग्रेस के पास संगठन भले ही कमजोर हो, पर जनता के भीतर एक थकान का भाव बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस यदि 2027 तक अपने संगठन को पुनर्जीवित कर पाई, तो भाजपा को 90 सीटों के नीचे धकेलने की स्थिति में आ सकती है। आम आदमी पार्टी गुजरात में फिलहाल भाजपा की प्रतिद्वंदी नहीं बन सकती। वह अपनी सर्वोत्तम स्थिति में भी 10-12 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाएगी। इसलिए गुजरात में भाजपा का वास्तविक विकल्प भविष्य में भी कांग्रेस ही होगी।
बिहार का प्रभाव पूर्वोत्तर के राज्यों में सीमित रहेगा, पर राजनीतिक संकेत वहां भी जाएंगे। अगर बिहार में विपक्ष मजबूत हुआ, तो मिज़ोरम, मणिपुर और असम जैसे राज्यों में स्थानीय दलों को नए गठबंधन की प्रेरणा मिलेगी। दक्षिण भारत में सीधा असर भले न दिखे, पर तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना जैसे राज्यों में यह संदेश जाएगा कि केंद्र की सत्ता चुनौती से परे नहीं है। इससे विपक्षी एकता की संभावनाएं और मजबूत होंगी।
2027 के जुलाई में राष्ट्रपति पद का चुनाव होगा। तब तक बिहार समेत बारह राज्यों में नए सियासी समीकरण बन चुके होंगे। अगर बिहार में विपक्ष ने दम दिखाया, तो यह राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों पर भी असर डाल सकता है। अगर नरेंद्र मोदी अगला राष्ट्रपति बनने की इच्छा रखते हैं, तो बिहार का परिणाम निर्णायक साबित हो सकता है। विपक्षी दल यदि तब तक अपनी ताक़त एकजुट कर लेते हैं, तो राष्ट्रपति चुनाव भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। अगर मोदी राष्ट्रपति पद नहीं लेते, तो 2028 और 2029 के विधानसभा चुनाव तय करेंगे कि 2029 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में कौन आगे रहेगा।
2028 में दस राज्यों और 2029 में आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव होंगे। इनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। इन सबका मूड बिहार से प्रभावित होगा। अगर बिहार में विपक्ष को बढ़त मिली, तो भाजपा के लिए 2028–29 की चुनावी राह कठिन हो जाएगी। इसके विपरीत, अगर भाजपा बिहार में सत्ता बरकरार रखती है, तो विपक्षी दलों के बीच निराशा का भाव पसर जाएगा। राजनीति में प्रतीकवाद की बड़ी भूमिका होती है और बिहार भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहाँ से शुरू हुई हर लहर देशभर में फैलती है।
साल 2025 का बिहार चुनाव केवल विधानसभा की 243 सीटों की लड़ाई नहीं है। यह लड़ाई है जनता के विश्वास, सत्ता के अहंकार और विपक्ष की एकजुटता की परीक्षा की। यह चुनाव तय करेगा कि देश अगले पाँच साल किस दिशा में बढ़ेगा और स्थिर सत्ता की ओर या परिवर्तन की ओर। अगर भाजपा फिर सत्ता में आती है, तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 'संगठित बहुमत' की राजनीति और मज़बूत होगी। अगर विपक्षी गठबंधन सत्ता में आता है, तो यह केंद्र की सत्ता के लिए पहला बड़ा चेतावनी संकेत होगा। बिहार की राजनीति आज फिर वही भूमिका निभाने जा रही है जो कभी जयप्रकाश नारायण के दौर में निभाई थी, व्यवस्था परिवर्तन की चेतना जगाने वाली भूमिका। इसलिए कहा जा सकता है कि बिहार की बयार जिस ओर बहेगी, भारतीय राजनीति की नाव भी उसी दिशा में चलेगी।
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वरिष्ठ पत्रकार श्री श्याम यादव लम्बे समय तक भारत संचार निगम लिमिटेड, इंदौर में जन सम्पर्क अधिकारी का दायित्व निभाते रहे हैं। सेवानिवृत्त होने के पश्चात वे राजनीति और समसामयिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। साहित्यानुरागी श्री यादव कहानी और व्यंग्य लेखन में भी सिद्धस्त हैं।

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