ज्वलंत मुद्दा..... दिल्ली सरकार की वाहन नीति पर प्रश्नचिन्ह !.................... आलेख....... अरूण कुमार जैन

ज्वलंत मुद्दा.....
दिल्ली सरकार की वाहन नीति पर प्रश्नचिन्ह !
- अरूण कुमार जैन
मान लीजिए आप बूढ़े हो गए हैं, युवाओं की अपेक्षा कुछ कमजोर भी, आप कुछ अस्वस्थ रहने लगे हैं, आप रिटायर कर दिए जाते हैं तो क्या आपका खाना पीना, दाना पानी सब बंद कर देना चाहिए। क्या आपको जिंदा रहने का अधिकार नहीं होना चाहिए ? क्या दवा दारु का आपका खर्च उठाकर आपको चुस्त दुरुस्त नहीं रखा जा सकता? रखा जा सकता है। तब आपको जिंदगी से रिटायर करने का प्रयास निस्संदेह संदेहास्पद है। कम से कम सही दिशा और दशा में प्रयास करना, सही रणनीति होगी। जिस प्रकार आदमी अंत तक उपयोगी है, उसका अनुभव, आने वाली पीढ़ियों को सांस्कृतिक विरासत वह सौंपता है। थोड़ा ही सही हर व्यक्ति उसकी क्षमता से कष्ट उठाकर भी काम करता रहता है और कई बार तो वह युवा व्यक्ति से ज्यादा कार्य अपनी युक्ति से कर लेता है।
ठीक वैसा ही दिल्ली सरकार का निर्णय दस पंद्रह वर्ष पुरानी डीज़ल, पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों के लिए लिया गया निर्णय है। करीब 65 लाख गाड़ियां एक झटके में दिल्ली की सड़कों से कानूनन रुप में हटा दी जाएंगी या कहें नियमानुसार नहीं चल पाएंगी। इससे फायदा किसे होगा, उससे पहले यह देखना होगा कि समाज को क्य और कितना नुकसान होगा ? लोकनीति बनाना शासन का काम होता है मगर उसमें सबसे पहले लोक का भला बुरा सोचा जाता है, समझा जाता है।
अचानक से लागू किए जा रहे इस नियम से लाखों लोग सकते में आ गए हैं। लाखों परिवारों के समक्ष रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है। अचानक से मानसिक दबाव आ गया है कि अब क्या होगा ? लाखों गाड़ियों को रोड से बाहर होने से इन्हें बेचने के लिए वाहन मालिक जबरदस्ती बेचने को मजबूर हो जाएंगे। अभी भी ये गाड़ियां सड़कों पर दौड़ते हुए प्रदूषण सर्टिफिकेट, फिटनेस सर्टिफिकेट जैसी जांचों से गुजर रही थी और संबंधित सरकारी एजेंसियों से प्रमाणित होने के बाद ही सड़कों पर अनवरत दौड़ रही थी। यदि ये प्रदूषण फैला रही थी या अमानक स्तर की थीं तो सरकारी जांच एजेंसियों का निकम्मापन था जो उन्हें यह मौका दे रहा था। तब इलाज सरकारी एजेंसियों का होना था मगर डॉक्टर की असफलता का इलाज मरीज को ठिकाने लगाकर किया जा रहा है। अब दिल्ली प्रशासन हर पेट्रोल पंप पर कैमरे लगाकर या मैनुअल चेकिंग कर ऐसी वाहन मालिकों के चालान काटकर जुर्माना लगाकर गाड़ी जप्ती करेगा। तब ऐसे अमले का पहले ही उपयोग कर प्रदूषण की जांच और ज्यादा सघनता, तत्परता, और ईमानदारी से करता और जो गाड़ियां वास्तव में प्रदूषण फैला रही हैं, उनको बाहर करता मगर शासन का नीतिगत निर्णय अभी तो संदेह के घेरे में है।
बारिश का मौसम वैसे भी बाजार की गतिविधियों को धीमा कर देता है और ऐसे सुस्त समय में जब बाजार में नाणा तंगी की स्थिति है, नकदी का कम उपयोग और आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ी हुई हैं। विश्व स्तर पर चल रहे छोटे मोटे युद्धों और सैन्य कार्यवाही का असर बाजार पर पड़ रहा है और अनिश्चय की स्थितियां बनी हुई हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा घोषित टैरिफ नीति से विश्व बाजार में उथल पुथल मची हुई है। तब अचानक से अनिश्चितता की स्थितियां पैदा करना बाजार को अस्थिरता ही प्रदान करेगा न कि बाजार को स्थायित्व देगा। कानूनी रुप से यह निर्णय कितना ही कोर्ट के आदेशों के अनुरूप हो मगर लोक व्यवहार और लोक नीति तथा बाजार हितैषी तो कदापि नहीं है।
आप सोचिए एक साथ कुछ दिनों में 65 करीब लाख गाड़ियां बंद हो जाएंगी तब उनके द्वारा जो परिवहन हो रहा था, उसका नियमन करने की व्यवस्था क्या शासन, प्रशासन ने बना रखी है। आपूर्ति की कमी होने से उपभोक्ता वस्तुओं के बाजार में अचानक तेजी आ जाएगी और कृत्रिम अभाव बाजार में पैदा कर दिया जाएगा जिससे कालाबाजारी का मौका मिलेगा। वस्तुओं के भाव बढ़ जाएंगे, व्यापारियों को उपलब्ध स्टॉक पर मनमाने दाम लेने का अवसर मिल जाएगा, आपदा को अवसर में भुना लिया जाएगा।
एकबारगी सड़कों पर ट्रैफिक कम होने और गाड़ियां न चल पाने से प्रदूषण कम होता लगेगा मगर लाखों गाड़ी मालिकों, चालकों, पेट्रोल पंप, गैरेज, ऑटो पार्ट्स के विक्रेताओं, मैकेनिकों के साथ हमालों, ठेले वालों, रिक्शा और लोडिंग रिक्शा चालकों सभी के ऊपर न्यूनाधिक असर पड़ेगा और लाखों अन्य लोग प्रभावित होंगे। रोजी रोटी को मोहताज होंगे। उन पर निर्भर परिवार और उनके सदस्य नाहक बेरोजगारी के संकट से आपदा में आ जाएंगे। बढ़ते हुए प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष महंगाई की दर जो अभी 10.8% आंकी गई है, वह अचानक से बढ़ेगी और समस्याओं में इजाफा करेगी। आम आदमी की परेशानियां बैठे ठाले बढ़ जाएंगी। दूसरी ओर सभी गाड़ी वाले, ट्रांसपोर्टर और जुड़े हुए अन्य लोग एक साथ दिल्ली में धरना प्रदर्शन को अंजाम देंगे तब कानून व्यवस्था सम्हालते नहीं संभलेगी। फिर इस समय संयुक्त विपक्ष लामबंद होकर इसमें बिहार चुनाव से पहले एक और नकारात्मक कारण बनकर भाग लेगा क्योंकि यह शासन की कोई सकारात्मक या रचनात्मक पहल नहीं है। आम जनता की सहानुभूति गाड़ी वालों के साथ रहना स्वाभाविक है। रोजगार की समस्या वैसे ही भारी है।
सरकार को मिलने वाले रोड टैक्स और अन्य टैक्सों में गिरावट होगी। अपरोक्ष राजस्व पेट्रोलियम पदार्थो की बिक्री से मिलने वाला, ऑटो पार्ट्स की बिक्री से मिलने वाले टैक्स राजस्व का अलग नुकसान होगा। जनता नए कर्ज लेकर नए वाहन खरीदेगी और कर्ज के दुश्चक्र में फंस जाएगी। लगभग आधे गाड़ी मालिक नई गाड़ी खरीदने की स्थिति में नहीं होंगे। इस स्थिति का आकलन नीति नियंताओं ने निश्चित रुप से समग्रता से विचारा ही नहीं होगा।
फिर ये पुरानी गाड़ियां दूसरे प्रदेशों में जहां अभी इस तरह का प्रतिबंध अभी लागू नहीं है, बेची जाकर वहां प्रदूषण फैलाएगी। यदि ऐसा है तो, मतलब यह केवल ट्रांसफर ऑफ पॉल्यूशन का खेल है। दलालों की दलाली का खेल है, वाहन निर्माता कंपनियों के धंधे में आई गिरावट को थामने का खेल है, बैंकों के, फाइनेंस कंपनी के धंधे बढ़ाने का खेल है। इस खेल से तेल आखिर कौन निकालना चाहता है? क्या भूतल परिवहन विभाग या वित्त मंत्रालय ताकि अधिक वाहन बिक्री पर राजस्व मिले या व्यापार मंत्रालय या बड़े नौकरशाह, जो भी हो नीति नहीं होकर यह कुनीति ही सिद्ध होगी। आगे पीछे इसी प्रकार के निर्णय अन्य राज्य सरकारें भी लेने लगेंगी, जैसे जैसे नीति के पीछे का अर्थशास्र समझ में आने लगेगा, वैसे वैसे निर्णय लेते जाएंगे। आखिर जो गाड़ियां अभी चलू हालत में रहते हुए उपयोगी हैं, उन्हें समय से पूर्व असमय ठिकाने लगा देना, उनके गतिमान पहियों को बंद करने पर मजबूर करना, बड़ी कंपनियों को सपोर्ट करने में सहायक होगा अर्थात छोटे ट्रांसपोर्टरों, खुदरा गाड़ी चलाने वालों आदि को धंधा बंद करने पर मजबूर होना पड़ेगा। जैसे छोटे दुकानदारों के धंधे पर ऑनलाइन मार्केट ने चोट की है, कुछ - कुछ वैसा ही दुष्चक्र इस नीति में भी दिखाई देता है।
अंतिम पेंच यह है कि इसी समय कैब सर्विस कंपनियों को सबसे ज्यादा व्यस्त समय में अधिक किराए वसूलने की छूट दे दी गई है और यह निर्णय बड़ी कैब कंपनियां दूसरे राज्यों में भी राज्य सरकारों से लागू करवा लेंगी। चूंकि कमर्शियल वाहनों पर यह नीति लागू हो रही है तब प्राइवेट टैक्सियां भी खूब सड़कों से बाहर होंगी और इसका सीधा फायदा बड़ी कैब कंपनियों को ही मिलेगा। इसीलिए यह लोकनीति न होकर कुनीति ही है और साबित होगी। देखें आगे आगे होता है क्या और जनता इस दुष्चक्र का कितना विरोध करती है।
भारतीय मानसिकता ज्यादा समय तक वस्तुओं के सदुपयोग और संतोषी प्रवृत्ति की है। यह संस्कृति यूज और थ्रो की संस्कृति नहीं है। पाश्चात्य सभ्यता के संस्कार हमारी भारतीय संस्कृति को पोषित नहीं करते और न ही वे व्यावहारिक साबित होंगे, अंततः ये नीतियां हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान ही पहुंचाएगी, फायदा नहीं।
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भारतीय राजस्व सेवा के सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी श्री अरूण कुमार जैन चिंतक, लेखक, कवि एवं व्यग्यकार हैं। श्री जैन के दो व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। सामाजिक, धार्मिक और समसामयिक विषयों पर भी स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अनेक सामाजिक संस्थाओं में पदाधिकारी हैं। उन्हें हिंदी के प्रचार - प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। सम्पर्क.. 9826011099 ,