मुद्दा ........ विश्वभर में कानून और चिकित्सा की भाषा अंग्रेज़ी क्यों है?......................... आलेख................. ओंकार कोसे

मुद्दा ........
विश्वभर में कानून और चिकित्सा की भाषा
अंग्रेज़ी क्यों है?
- ओंकार कोसे
आज के वैश्विक परिदृश्य में अंग्रेज़ी भाषा ने कानून और चिकित्सा जैसे अत्यंत विशिष्ट और तकनीकी क्षेत्रों में लगभग सर्वमान्य वर्चस्व प्राप्त कर लिया है। यह स्थिति अचानक नहीं बनी, बल्कि इसके पीछे ऐतिहासिक घटनाएं, उपनिवेशवाद, वैज्ञानिक शोध, वैश्विक मानकीकरण और वर्तमान शैक्षणिक कार्यप्रणाली जैसे अनेक कारक जिम्मेदार हैं।
ऐतिहासिक विरासत और उपनिवेशवाद का प्रभाव
18वीं और 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश साम्राज्य ने विश्व के बड़े हिस्से पर शासन किया। अफ्रीका से लेकर एशिया और उत्तरी अमेरिका तक, ब्रिटिश शासन ने प्रशासन, शिक्षा, चिकित्सा और न्याय प्रणाली को अंग्रेज़ी में ढाल दिया। भारत, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में अंग्रेज़ी उसी काल से अधिकारिक और शैक्षणिक भाषा बनी हुई है। अमेरिका, भले ही ब्रिटेन से स्वतंत्र हुआ, लेकिन उसने भी अंग्रेज़ी को ही चिकित्सा और विधि के मानक साहित्य और कामकाज की भाषा बनाए रखा।
वैश्विक मानक ग्रंथ और तकनीकी शब्दावली
विश्व की प्रमुख चिकित्सा और विधिक पुस्तकें जैसे Gray’s Anatomy, Robbins Pathology, Black's Law Dictionary या DSM-5 आदि अंग्रेज़ी में ही लिखी गई हैं और इन्हें पूरे विश्व में संदर्भ ग्रंथों के रूप में स्वीकार किया गया है। उच्च शिक्षा का माध्यम, शोध प्रकाशन और विशेषज्ञ प्रशिक्षण लगभग पूरी तरह से अंग्रेज़ी में होते हैं।
इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि वैश्विक स्तर पर डॉक्टरों, वकीलों, न्यायाधीशों, शोधकर्ताओं और छात्रों को एक समान तकनीकी शब्दावली और भाषा में संवाद करना व सीखना होता है। इन तकनीकी विषयों की शब्दावली में एकरूपता होने से इन्हें समझने में सुविधा होती है जिससे भ्रम और अनुवाद की त्रुटियाँ भी नहीं होती है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इन क्षेत्रों में भाषा की अस्पष्टता सीधे लोगों के जीवन, स्वास्थ्य और न्याय से जुड़ी होती है।
बहुभाषी देशों में अंग्रेज़ी की व्यावहारिक अनिवार्यता
दुनिया के अधिकांश देश जैसे भारत, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, स्विट्ज़रलैंड या अमेरिका — सभी में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं। ऐसी स्थिति में यदि प्रत्येक देश की स्थानीय भाषा को चिकित्सा या न्याय प्रणाली की भाषा बनाया जाए तो न केवल अनुवाद और व्याख्या में कठिनाई होगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग, चिकित्सा अनुसंधान और सीमा-पार न्याय व्यवस्था में भी बाधाएं आएंगी। एक बात को विशेष रूप से समझने की आवश्यकता है कि चिकित्सा, न्याय और विज्ञान के आधुनिक शोध और तमाम कार्य प्रणालियां पाश्चात्य देशों में ही विकसित हुई है, जो मूल रूप से अंग्रेजी में ही उपलब्ध होती हैं जिसे लगभग विश्व के सभी देशों ने निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाता है। क्योंकि उसका तुरंत अपने-अपने देशों की भाषाओं में अनुवाद करना असंभव होता है। इसीलिए फिलहाल व्यापक जनहित में अंग्रेज़ी का प्रयोग एक व्यावहारिक समाधान है, क्योंकि यह विशेषज्ञों का शिक्षण प्रशिक्षण आसान बनाती है। उन्हें आपस में जोड़ती है और एक मानकीकृत प्रणाली उपलब्ध करती है जो आमतौर पर आम लोगों के लिए भी सुविधाजनक होती है।
भाषायी असमानता की चुनौती और नैतिक जिम्मेदारी
यह भी सच्चाई है कि अंग्रेज़ी के वर्चस्व के कारण दुनिया के कई देशों के आम नागरिकों को भाषा की वजह से न्याय और स्वास्थ्य सेवाओं को समझने में कठिनाई होती है। विशेषकर विकासशील देशों में जहां बहुभाषिकता के कारण शिक्षा के माध्यम पर विवाद है। शिक्षा का स्तर भी असमान है, वहां अंग्रेज़ी माध्यम एक अवरोध बन जाता है। इससे सबसे अधिक नुकसान उन लोगों को होता है जो कम पढ़े-लिखे हैं या अंग्रेज़ी से परिचित नहीं हैं।
इस स्थिति को सुधारने की जिम्मेदारी हमारे शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, चिकित्सा विशेषज्ञों, न्यायविदों, अनुवादकों और नीति-निर्माताओं पर है। यदि ये मिलकर ठान लें, तो स्थानीय भाषाओं में भी उच्च गुणवत्ता की पाठ्य सामग्री, तकनीकी शब्दावली, शब्दकोश और जनहितकारी न्यायिक व चिकित्सा प्रक्रिया विकसित की जा सकती है परंतु यह कार्य सरल नहीं है इसकी गहराई और जटिलता को समझने की आवश्यक है।
वर्तमान में अंग्रेज़ी का प्रयोग: एक नीतिगत मजबूरी
आज के वैश्विक परिवेश में जब चिकित्सा विज्ञान और न्याय प्रणाली तेजी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे से जुड़ हुई हैं — जैसे कि WHO के दिशा-निर्देश, अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों के निर्णय, या सीमा-पार रोग नियंत्रण, विज्ञान की शोध सामग्री के लिए अंग्रेजी की निर्भरता— वहां एक मानक साझा संपर्कभाषा की आवश्यकता अपरिहार्य है। अंग्रेज़ी फिलहाल वह जिम्मेदारी निभा रही है।
अंग्रेज़ी आज कानून और चिकित्सा के क्षेत्र में केवल एक भाषा नहीं, बल्कि वैश्विक शिक्षा,संवाद, कामकाज की भाषा है। मानकीकरण और सुरक्षित सेवा-प्रणाली का माध्यम बन चुकी है।
फिर भी यह अनिवार्य है कि विश्व समुदाय अपनी-अपनी भाषाओं में भी समान स्तर की विज्ञान व कानून की सामग्री विकसित करें ताकि भविष्य में कोई भी नागरिक भाषा के कारण न्याय या स्वास्थ्य सेवा को सरलता से प्राप्त करने से वंचित न रह सके। इसके लिए अंग्रेजी को दोष देने के बजाय हमें अपने लोगों को या तो अंग्रेजी में प्रवीण बनाना होगा जिससे उन्हें इन चीजों का उपयोग करने में अमेरिका और इंग्लैंड के लोगों की तरह कोई समस्या ना हो या फिर अपनी किसी एक भाषा में तमाम शिक्षा, चिकित्सा और न्याय के तमाम ग्रंथों, पाठ्य सामग्री, अद्यतन शोध सामग्री का तुरंत अनुवाद करवाना होगा तथा वकीलों, चिकित्सकों आदि को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी लेना होगा। जिस तरह से अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में है वहां किसी नागरिक को न्यायालय में पक्ष रखने में न्यायालय की बहस को सुनने में न्यायाधीश के फैसलों को समझने में चिकित्साकों के प्रिस्क्रिप्शन समझने में कोई समस्या नहीं होती है ।
यही कार्य हमें अपनी भाषा में करना है तो उसके लिए अपनी भाषा को सक्षम और समर्थ बनाना होगा।
*******************
श्री ओंकार कोसे पश्चिम रेलवे के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। रेलवे के राजभाषा विभाग में अनुवादक के पद पर लम्बे समय तक अपनी सेवाए देने और सेवानिवृत्ति के पश्चात सम सामयिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। वर्तमान में भोपाल में निवासरत हैं।