आज 21 जनवरी को वीर हेमू कालानी के शहीद दिवस पर विशेष आलेख........................ सबसे कम उम्र का बलिदानी शहीद हेमू कालानी !! ....... डॉ. बालाराम परमार 'हॅंसमुख'

आज 21 जनवरी को वीर हेमू कालानी के शहीद दिवस पर विशेष आलेख.....
सबसे कम उम्र का बलिदानी
शहीद हेमू कालानी !!
- डॉ. बालाराम परमार 'हॅंसमुख'
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम काफी लम्बा चला और कई शूरवीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें से एक थे शहीद हेमू कालानी, जिन्होंने महज 18 वर्ष, 9 माह,7 दिन की उम्र में देश के लिए बलिदान दिया। देश के बंटवारे के कारण उनकी बहादुरी और देशभक्ति की कहानी आजाद भारत में बहुत कम लोग जानते हैं। युवा वर्ग तक तो इस वीर पुरुष की शौर्य गाथा पहुंची ही नहीं है।
वर्तमान पाकिस्तान के सिंध में सुख्खर (साबरमाटी) नामक स्थान पर 23 मार्च 1923 को हेमू कालानी का जन्म हुआ। उनके पिता पेसूमल एवं माता जेठी बाई कालाणी की गोद में बचपन बीता था। उनके जन्म का यह अपूर्व सहयोग ही है कि अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की शहादत की तिथि और स्थान भी वही है। अविभाज्य भारत के शहीद हेमू कालानी एक ऐसे साहसी और देशभक्त युवा शहीद हैं, जिन्होंने 18 वर्ष, 9 माह एवं 7 दिन की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिय। ज्ञात साक्ष्यों के अनुसार शहीद हेमू कालाणी को अंग्रेजों ने फांसी की सज़ा इसलिए सुनाई थी, क्योंकि उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए बैठक बुलाई थी। उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली थी कि अंग्रेजी सेना के अधिकारी स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के उद्देश्य से हथियारों का जखीरा रेलगाड़ी से कहीं ले जा रहे हैं और यह रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी। यह रेलवे स्टेशन उनके निवास स्थान से करीब था। हथियारों से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को किसी तरह का नुक़सान न हो, इस उद्देश्य से हेमू कालानी ने अपने साथियों के साथ मिलकर रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना पर विचार-विमर्श के लिए दोस्तों को अपने घर बुलाया था । इसकी भनक अंग्रेजों को लग गई और हेमु कालाणी को विचार-विमर्श बैठक के पहले ही बिना वारंट जारी किए गिरफ्तार कर लिया गया था।
यह काल्पनिक घटना घटी ही नहीं थी, लेकिन अंग्रेजों ने उन पर झूठा मुकदमा कायम किया और बिना सुनवाई और सबूत के फांसी की सजा सुना दी गई। इस तरह एक तरफा फांसी की सजा सुनाई जाने की मनमानी से अंदाज लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर कितना अधिक जुल्म ढाया होगा।
उन दिनों युवाओं में स्वतंत्रता संग्राम का जज्बा परवान चढ़ा हुआ था। शहीद हेमू कालानी ने फांसी के फंदे को चुमते हुए अपनी मृत्यु से पहले कहा था, "मैं अपने देश के लिए मरने के लिए तैयार हूं।''
7 वर्ष की उम्र में तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों की अगुवाई करने वाले इस महान देशभक्त और क्रांतिकारी वीर कालाणी को अंग्रेजी सरकार द्वारा दिए गए प्रलोभन और प्रताड़ना भी भारत की आजादी के सपनों के संकल्प के आगे टिक न सकी । उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था कि "वह अमर शहीदों की तरह आन बान शान से भारत माता के खातिर फांसी के फंदे पर झूल कर अमर यात्रा पर निकल जाएं''।
शहीद हेमू कालाणी का बलिदान अविभाजित भारत ( पाकिस्तान और हिंन्दुस्तान) दोनों देशों के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ गया है। हम भारत वालों को अविभाज्य भारत माता के लाडले सपूत हेमू कालानी की शहादत को कभी नहीं भूलना चाहिए। उनकी मातृभूमि को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त कराने के जज्बा युगों युगों तक प्रेरणादायक रहेगा।
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डॉ. बालाराम परमार 'हॅंसमुख'
लेखक मध्यप्रदेश पाठ्य पुस्तक निर्माण एवं देखरेख समिति के स्थायी सदस्य हैं।