आपकी बात......... डियर एनएचएआई, रोजी रोटी के लिए हमें बाहर निकलना ही पड़ता है ! .......................................... रंजन श्रीवास्तव

आपकी बात.....
डियर एनएचएआई, रोजी रोटी के लिए
हमें बाहर निकलना ही पड़ता है !
- रंजन श्रीवास्तव
अगर बेतुके बयानों से या जवाबों से देश की समस्या हल हो रही होती तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को अब तक कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके होते।
इंदौर - देवास राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगभग 40 घंटे लगातार ट्रैफिक जाम रहा। कारण, कोई एक्सीडेंट नहीं था बल्कि एक जगह रेलवे ओवरब्रिज तथा फ्लाईओवर के निर्माण के चलते ट्रैफिक बाधित हो रहा था। सर्विस रोड पर बरसात तथा जलभराव के कारण गाड़ियां वहां चल नहीं बल्कि रेंग रही थीं।
इस 8 किलोमीटर के ट्रैफिक जाम में 4000 से अधिक गाड़ियां लगभग दो दिन तक प्रभावित हुईं, पर इस जाम को ख़त्म करने के लिए ना ही भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और ना ही स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने ही किसी युद्धस्तर पर कार्य किया। युद्धस्तर पर कार्य तभी होता जब इस समस्या का अधिकारियों को अंदेशा होता जबकि इस ट्रैफिक महाजाम में ना सिर्फ स्कूल बसें बल्कि कई एम्बुलेंस भी फंसी हुईं थीं।
ट्रैफिक जाम ख़त्म करने के लिए युद्ध स्तर पर काम हुआ और जाम ख़त्म हुआ भी पर तब तक इन लगभग 40 घंटों की प्रशासनिक अदूरदर्शिता तथा संवेदनहीनता ने कम से कम तीन जानें ले लीं और बड़ी संख्य अमेन वाहन में सवार यात्रियों को जो परेशानी हुई, उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
इंदौर के 62 वर्षीय किसान कमल पांचाल बहन की तेरहवीं में शामिल होने के लिए जा रहे थे पर वे कभी वहां पहुँच ही नहीं पाए। ट्रैफिक जाम के दौरान दम घुटने तथा हार्ट अटैक के कारण उनकी मृत्यु हो गयी।
इंदौर के ही 32 वर्षीय संदीप पटेल को सीने में दर्द के बाद अस्पताल ले जाया जा रहा था जिससे समय पर उनको इलाज़ मिल जाए और उनकी जान बच जाए। पर उन्हें समय पर अस्पताल नहीं ले जाया जा सका और ट्रैफिक जाम के दौरान ही उनका देहांत हो गया।
इसी तरह शुजालपुर के बलराम पटेल (55) भी इंदौर इलाज़ के लिए जा रहे थे। एम्बुलेंस में दो ऑक्सीजन सिलिंडर थे। दोनों ही सिलिंडर इस महाजाम में ख़त्म हो गए। समय पर ऑक्सीजन नहीं मिल पाने से उनकी जान नहीं बच पायी। पर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की संवेदनहीनता की पराकाष्टा यह है कि जिनकी मृत्यु हुयी, उनके परिवार से तथा जो बच्चे बूढ़े और महिलाओं समेत अन्य लोग जो इस ट्रैफिक में लगभग 40 घंटे फंसे रहे, उनसे क्षमा मांगने के बजाय प्राधिकरण जनता को ही दोष दे रहा है। उसने हाई कोर्ट में एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि लोग बिना काम के जल्दी घर से निकलते ही क्यों हैं?
अगर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के इस (कु)तर्क को मान लिया जाए तो ऐसे बहुत से लोग हैं जो बिना काम के राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाते हैं तथा खुद ट्रैफिक जाम में फंसकर अपनी परेशानी का कारण बनते हैं.
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण राष्ट्रीय राजमार्गों पर जगह जगह चेतावनी बोर्ड लगाकर लोगों को दुर्घटना के प्रति सचेत करता है। हो सकता है आने वाले समय में ऐसे चेतावनी बोर्ड भी देखने को मिलें जिसमें यह लिखा हो कि आप यह सुनिश्चित करें कि आप बिना काम के राजमार्ग पर निकले हैं और अगर ऐसा है तो वापस घर जाएँ ।
वस्तुतः इस तरह का कुतर्क और संवेदनहीनता किसी भी सरकारी एजेंसी या अधिकारियों में इसलिए देखने को मिलती है क्योंकि उनकी जवाबदेही तय करने के लिए सरकार के स्तर पर कोई प्रयास नहीं किया जाता और 'ये सब चलता है' की स्टाइल में ऐसी घटनाओं पर फौरी प्रतिक्रिया के बाद सब कुछ भुला दिया जाता है।
यही कारण है कि लोग न्याय की आशा में न्यायालय का रूख करते हैं और न्यायालय पर इसलिए अतिरिक्त भार बढ़ता है क्योंकि सरकारें ना तो जवाबदेही लेना चाहती हैं और ना ही किसी अधिकारी पर जवाबदेही तय करती हैं। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं।
इस जाम के कारण हुयी मौतों के बाद एक बार फिर लोगों को व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए न्यायालय से ही आशा है। याचिका दाखिल की गई हैं और 7 विभागों और एजेंसी को नोटिस भी जारी किया गये हैं। पर क्या कहा जाए ऐसी व्यवस्था जो न्यायालय से बोल रही है कि बिना काम के लोग इतनी जल्दी बाहर जाते ही क्यों हैं। जनता के टैक्स से मोटी तनख्वाह लेकर अपनी जेब भर रहे, एयर कंडिशन्ड ऑफिस में बैठकर भारत को देख रहे और और ठेकेदारों के प्रति अपना विशेष अनुग्रह प्रदर्शित कर रहे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों को यह कहाँ पता होगा कि कोविड के दौरान और बाद में लाखों लोगों को अपने नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। लाखों अन्य ऐसे लोग हैं जिनका वेतन या दैनिक भत्ता कम कर दिया गया। सरकारों का टैक्स कलेक्शन बेहिसाब बढ़ा है पर आम जनता अभी भी सम्मानजनक वेतन तथा दैनिक मजदूरी पाने के लिए संघर्षरत है। कई परिवारों की सामूहिक आत्महत्याओं की ख़बरें भी आयी हैं। पेट्रोल डीजल मंहगा है।
ऐसे में किसके पास इतना पैसा है या समय है जो बिना काम जल्दी या बाद में राष्ट्रीय राजमार्गों पर तफरीह करने जाएगा। पर अधिकारियों को यह कहाँ पता होगा? उनका भारत को देखने का चश्मा ही भिन्न है जिससे भारत की सही तस्वीर दिखाई नहीं देती। नहीं तो संभवतः इस तरह के कुर्तक से भरे हुए संवेदनहीन बयान तो नहीं ही दिए जाते और वह भी उच्च न्यायालय के सामने।
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श्री रंजन श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार हैं। अंग्रेजी दैनिक हिंदुस्तान टाईम्स और फ्री प्रेस, भोपाल के साथ अन्य प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में ब्यूरो प्रमुख और वरिष्ठ पत्रकार के रूप में अपनी सेवाएं देने के बाद इन दिनों भोपाल में निवास और सामयिक मुद्दों व राजनीति पर नियमित स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। सम्पर्क.. 94253-51688, ईमेल - ranjansrivastava1@gmail.com