वंदे भारत के बाद रेल मंत्रालय ने वंदे भारत स्लीपर रेलगाड़ी शीघ्र ही  शुरू करेगा. वंदे भारत स्लीपर रेलगाड़ी भी वातानुकूलित है और इसमें प्रथम ए.सी, द्वतीय श्रेणी ए.सी. और तृतीय श्रेणी ए.सी. के कोच हैं. जब वंदे भारत रेलगाड़ी शुरू थी तब काफी दिनों तक बहुत सीटें खाली रहती थी. शायद अभी भी पूरी क्षमता के साथ वंदे भारत रेलगाड़ियां नहीं चल रही हैं. ऐसी स्थिति में यह प्रश्न लाजिमी है कि क्या वंदे भारत और वंदे भारत स्लीपर ट्रेनों की जरूरत है  ? इस बारे में सामाजिक विषमताओं पर  गहन चिंतन करने वाले डा. चंदर सोनाने ने सामान्य यात्री ट्रेन की जरूरत पर बल दिया है....क्या आप भी सोचते हैं कि वंदे भारत ट्रेन के स्थान पर अभी वर्तमान में चल रहीं सामान्य श्रेणी की और ट्रेन चलाने की आवश्यकता है ताकि देश की बड़ी आबादी आसानी से सफर कर सके. अपने विचारों से अवगत कराएं... सम्पादक www.dailynewshub.net ... आप अपने विचार वाट्सएप नम्बर 8770218785 पर या ई-मेल madhukarpawarmail@gmail.com पर भी भेज सकते हैं... धन्यवाद .     

 

सरोकार -

वन्दे भारत ट्रेन की नहीं, सामान्य यात्री ट्रेन की है जरूरत !

  •  डॉ. चन्दर सोनाने

 

      देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अनेक अवसरों पर सार्वजनिक रूप से यह बात कहते हैं कि देश के 80 करोड़ गरीबों को निःशुल्क गेहूँ और चावल हर माह भारत सरकार दे रही है। कोरोना काल से शुरू हुई यह योजना केन्द्र सरकार ने वर्ष 2029 तक बढ़ा दी है। अर्थात् प्रधानमंत्री जी यह मानते है कि देश की करीब 140 करोड़ आबादी में से 80 करोड़ आबादी गरीबों की है। अब बचते हैं करीब 60 करोड़। इन करीब 60 करोड़ में से करीब 40 करोड़ निम्न मध्यमवर्गीय और मध्यमवर्गीय परिवार आते है। करीब 20 करोड़ आबादी ही देश की ऐसी है, जो अमीर कही जा सकती है।

      ऐसी स्थिति में पिछले साल हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भोपाल में वन्दे भारत ट्रेनों का शुभारंभ किया। वास्तव में हमारे देश भारत में वन्दे भारत ट्रेन की जरूरत नहीं है, जिसका इन्दौर से भोपाल तक का चेयर का न्यूनतम किराया 910 रूपए है। इसी का एक्जीक्यूटिव किराया 1510 रूपए है। यही नहीं बरसों से इन्दौर से भोपाल इन्टरसिटी ट्रेन चल रही है। इसका एसी थर्ड का किराया 365 रूपये है। जबकि इन्दौर से भोपाल तक का सामान्य दर्जे का किराया मात्र करीब 100 रूपए है।

     अब जरा इन्दौर से भोपाल इन्टरसिटी का समय देखिए ! यह ट्रेन इन्दौर से सुबह 6.35 पर चलती है और सुबह 10.55 बजे भोपाल पहुँचती है। यानी कुल 4 घंटे 20 मिनट का समय लगता है। अब वन्दे भारत ट्रेन का समय देखिए ! यह सुबह इन्दौर से सुबह 6.30 बजे निकलती है और सुबह 9.35 बजे भोपाल पहुंचेगी। अर्थात् इसका समय 3 घंटे 05 मिनट बताया जा रहा है। तो जरा सोचिए कि क्या सवा घंटा बचाने के लिए कोई करीब तीन गुना किराया देना पसंद करेगा ?

       अब हम जरा चार्टर्ड बस का किराया भी देख लें ! इन्दौर से भोपाल तक का चार्टर्ड बस का किराया है करीब 430 रूपए। यह बस भी इन्दौर से भोपाल करीब साढ़े तीन घंटे में लगा देती है, वहीं वंदे भारत ट्रेन का न्यूनतम चेयर किराया ही 910 रूपए है और एक्जीक्यूटिव का 1510 रूपए है। यात्री एसी चार्टर्ड बस से सफर करना ज्यादा पसंद करते हैं। तो यह कैसे माना जाए कि चार्टर्ड बस के यात्री करीब दो गुना ज्यादा किराया देना पसंद करेंगे ?

     यहाँ सहज ही यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि वन्दे भारत ट्रेन का इतना अधिक किराया देना क्या एक सामान्य यात्री के बस का है? क्या एक निम्न वर्गीय और मध्यमवर्गीय परिवार वन्दे भारत ट्रेन में यात्रा कर सकेगा? इसका सहज ही उत्तर नहीं में मिलेगा। तो फिर सामान्यजन यही सोच रहा है कि वन्दे भारत ट्रेन उनके लिए नहीं, बल्कि अमीरों के लिए चलाई जा रही है !

 

     भारत में विभिन्न पर्वां और त्यौहारों पर जब कभी भी किसी भी ट्रेन के  डिब्बें बढ़ाए जाते है तो हमेशा थर्ड एसी, सेकंड एसी या कभी-कभी स्लीपर के ही बढ़ाए जाते है ! कभी यह पढ़ने और सुनने में नहीं आया कि किसी ट्रेन में सामान्य दर्जे के डिब्बे बढ़ाए गए हैं। जबकि इस देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी आज भी गाँवों में निवास करती है। शहरों की 30 प्रतिशत आबादी में से करीब 10 प्रतिशत आबादी गरीबों की ही है। इस प्रकार आज आवश्यकता इस बात कि है कि गरीबों के लिए सामान्य दर्जें की विशेष ट्रेनें चलाई जाए ! इसके साथ ही देश की प्रत्येक ट्रेन में सामान्य दर्जे के डिब्बों की संख्या बढ़ाई जाए ! इसके साथ ही कुछ विशेष ट्रेन सामान्य दर्जे की भी चलाई जाना चाहिए, जिसमें गरीब सुविधापूर्वक यात्रा कर सके।

     उज्जैन और मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा ने हाल ही में अपने फेसबुक में एक पोस्ट डाली । उसमें वन्दे भारत ट्रेन चलाने के संबंध में उनका कहना है कि इस ट्रेन का नाम वन्दे भारत की जगह वन्दे इंडिया कर देना चाहिए ! क्योंकि इस ट्रेन में भारी भरकम किराए को देखते हुए भारत के आमजन तो बैठ ही नहीं पायेंगे ! इंडिया में रहने वाले लोग ही बैठ पायेंगे ! इन व्यंग्यकार की बात को मजाक में नहीं, बल्कि गंभीरतापूर्वक लेने की आवश्यकता है !

        किन्तु दुःखद यह है कि देश में ऐसा नहीं हो रहा है। आप किसी भी शहर के किसी भी स्टेशन में चले जाएं और किसी भी ट्रेन के सामान्य दर्जे के डिब्बों को देखे तो यह दिखाई देगा कि सब डिब्बें ठसाठस भरे हुए हैं। विशेषकर उत्तरप्रदेश और बिहार राज्यों से निकलने वाली ट्रेनों की हालत देश में सबसे खराब है। इन दोनों राज्यों के गरीबजन रोजी रोटी की तलाश में महानगरों की ओर मजबूरी में सफर करते हुए जैसे-तैसे जाते हैं। इनकी हालत वाकई बहुत खराब है। कई सामान्य दर्जें के डिब्बों में यात्री लगभग लटकते हुए दिखाई देते है। यह किसी भी देश के लिए गौरव की बात नहीं है। इसे आज बदलने की सख्त आवश्यकता है। इसलिए देश के प्रधानमंत्री को और रेल मंत्रालय को गरीबों की भी चिंता करनी चाहिए, ताकि वे भी सामान्य व्यक्ति की तरह यात्रा कर सकें !

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 डा. चंदर सोनाने