आलेख.....

धन्य हो प्रभु.... गंगा कलंकित होने से बच गई

  •                                                                          मधुकर पवार

 

     इस सदी के अब तक के सबसे बड़े समागम प्रयागराज महाकुम्भ का आज पावन पर्व महाशिवरात्रि के अवसर पर समापन हो गया.  उत्तरप्रदेश सरकार और महाकुम्भ आयोजन समिति द्वारा लगाए गये अनुमान 45 करोड़ श्रद्धालुओं से करीब 21 करोड़ अधिक यानी करीब 66 करोड़ से अधिक श्रद्दालुओं ने पवित्र नदियों गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम और गंगा नदी पर बनाये गये अस्थायी घाटों पर आस्था की डुबकी लगाई. श्रद्धालुओं की यह संख्या भारत और विदेश में रह रहे कुल सनातियों की संख्या का आधा तो मान ही सकते हैं. यदि श्रद्धालुओं को प्रयागराज जानेआने के लिये आसानी से  साधन उपलब्ध हो जाते तो यह संख्या और बढ़ सकती थी. अपना स्वयं का साधन न होने और रेल व बस में टिकट नहीं मिलने से लाखों श्रद्धालुओं की इच्छा होते हुए भी नहीं जा सके. कुम्भ के दौरान पवित्र नदियों के संगम और त्रिवेणी आदि घाटों पर सनातियों की डुबकी लगाने से वंचित रह गयी करीब आधी आबादी ने भी घर बैठे ही टेलीविजन और सोशल मीडिया के माध्यम से इस धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन का भरपूर आनंद उठाया. हालांकि उनके मन यह टीस जरूर रह गयी कि 144 वर्षों के अंतराल के बाद आये इस सुअवसर का वे लाभ उठा नहीं पाए. लेकिन वे इस बात से भी प्रसन्न हैं कि उन्होंने मात्र 45 दिनों में एक ही स्थल पर इतनी बड़ी संख्या में सनातनियों को देखा है, जो अब उनके जीवन काल में शायद कभी देखने को नहीं मिलेगा. 

  

     प्रयागराज महाकुम्भ के आरम्भ में आईआईटियन अभयसिंह, मोनालिसा, ममता कुलकर्णी आदि जरूर सुर्खियों में रहे लेकिन आस्था के सैलाब में ग्लैमर का यह बुरा दौर शीघ्र ही समाप्त हो गया. जिस तरह समुद्र की लहरें पैरों के निशान को तुरंत मिटा देती है, ठीक उसी तरह आस्था के सैलाब में यह ग्लैमर भी ज्यादा दिन तक नहीं टिक सका. हालांकि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के अवसर पर पवित्र अमृत स्नान के शुरू होने के पहले ही दर्दनाक भगदड़ में 37 श्रद्दालुओं की मौत ने सरकार, प्रशासन और महाकुम्भ आयोजन समिति को चिंता में डाल दिया लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था को यह घटना डिगा न सकी बल्कि प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि ही देखी गई. श्रद्धालुओं के उत्साह और आस्था में कोई कमी नहीं आई. जिसको जो साधन मिला, कठिनाई उठाते हुए और मीलों पैदल चलते हुए भी चेहरे पर शिकन लाए बिना घाट पर पहुंच कर डुबकी लगाई. डुबकी लगाकर घाट से बाहर आते हुए श्रद्धालुओं के चेहरे पर आत्मिक खुशी का भाव देखकर तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि जैसे उन्होने जीते जी मोक्ष पा लिया.

   देश के सुदूर और कोने – कोने से प्रयागराज आने वाले श्रद्धालुओं के परिवहन में रेलवे ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 09 फरवरी को नई दिल्ली स्टेशन पर हुई भगदड़ में 18 यात्रियों की मौत ने एक बार फिर व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा दिये. इन दोनो दर्दनाक घटॅनाओं के बाद उत्तरप्रदेश सरकार, महाकुम्भ आयोजन समिति और रेलवे ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर नये सिरे से रणनीति बनाई जिसके कारण श्रद्दालुओं को काफी राहत मिली. हालांकि श्रद्धालुओं को मीलों पैदल चलना पड़ा लेकिन आस्था से सरोबार श्रद्धालुओं को तो केवल एक धुन सवार थी, किसी भी तरह गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाना है.      

    गंगा का पवित्र जल, जो सनातनी हिंदुओं के लिये विशेष महत्व रखता है, प्राय: सभी सनातनियों के घर में पूजा स्थल पर पूरी आस्था और सम्मान के साथ रखा रहता ही है. कोई भी धार्मिक कार्य, पूजा आदि बिना गंगाजल के सम्पन्न नहीं होता. यह भी सत्य है कि गंगा जल कभी खराब नहीं होता और इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं लेकिन महाकुम्भ के दौरान गंगा जल की गुणवत्ता को लेकर अनेक प्रश्न भी उठाए गए जिससे बड़े जनमानस की भावनाएं आहत भी हुई लेकिन ईश्वर का लाख – लाख धन्यवाद कि जिस तरह गंगाजल की गुणवत्ता को दूषित और आचमन तो दूर, नहाने लायक भी नहीं बताया गया, करोड़ों श्रद्धालु जिन्होंने डुबकी लगाई और वे किसी भी चर्म रोग या अन्य जल जनित रोग से पीड़ित नहीं हुए. गंगाजल की गुणवत्ता पर प्रश्न खड़े किए गये लेकिन आम श्रद्धालुओं पर इसका तनिक भी असर नहीं पड़ा बल्कि वे डुबकी लगाने के बाद बोतलों में भरकर गंगाजल अपने साथ लेकर गये. 

     गंगाजल की गुणवत्ता की बात चली है तो यह बताना आवश्यक है कि गंगा को अनेकों बार यह सिद्ध करना पड़ा है कि उसका जल निर्मल है, मानक स्तर का है और यह मानव मात्र के कल्याण के लिए ही है. इसके लिये एक उदाहरण देना ही काफी है.....  सन 1890 के दशक में भारत में भीषण अकाल पड़ा था. अकाल के कारण काफी लोगों की मौतें भी हो गई थी. उसी दौरान प्रयागराज ( तब इलाहाबाद ) में आयोजित माघ मेला में हैजा फैल गया जिसके कारण काफी संख्या में श्रद्धालुओं की मृत्यु होने लगी और मौत का यह सिलसिला कई दिनों तक जारी रहा. बड़ी संख्या में मौत होने तथा भय के कारण शवों को गंगाजल में प्रवाहित करने लगे. उन दिनों ब्रिटेन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैंकिन गंगाजल पर शोध कर रहे थे. उन्होने देखा और महसूस किया कि गंगा नदी में शवों को बहाने और उनके सड़ जाने के बाद भी गंगाजल का उपयोग करने वालों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ रहा है. उन्होने गंगाजल के नमूने एकत्रित किए और विश्लेषण किया. उन्होंने अपने शोध पत्र में लिखा था “ गंगा नदी में भले ही मनुष्य और मवेशी नहाते हैं, कपड़े धोये जाते हैं, कचरा फेंकते हैं, लाशों को बहा देते हैं, इसके बावजूद जल की गुणवत्ता पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा. अर्नेस्ट हैंकिन ने एक लेख “आब्जर्वेशन आन कालरा इन इंडिया” में लिखा था...” गंगाजल में एक ऐसा पदार्थ मौजूद है जो हैजा के बैक्टिरिया को नष्ट कर देता है.  एक अन्य फ्रेंच वैज्ञानिक ने भी गंगाजल पर शोध करने पर पाया कि गंगाजल में ऐसे वायरस पाए जाते हैं जो हैजा जैसी बीमारियों के वायरस को नष्ट कर देते हैं. इन वायरस को निंजा कहते हैं. गंगाजल में निंजा वायरस के साथ अन्य वायरस भी होते हैं जो बीमारियों के विषाणुओं को नष्ट कर देते हैं. इन्हीं वायरसों के कारण गंगाजल में कभी बदबू नहीं आती है.

    महाकुम्भ के दौरान जब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर प्रश्नचिन्ह लगाए तो अनेक वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि गंगा जल में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा के आधार पर जल को स्नान करने योग्य माना जाएगा. पद्मश्री अजय सोनकर ने प्रयागराज में गंगा नदी के पांच घाटों से जल के नमूने एकत्रित कर प्रयोगशाला में जांच की और उन्होंने पाया कि गंगा का जल अल्कलाईन पानी के समान शुद्ध है. उन्होंने बताया कि गंगा जल में 1100 प्रकार के बैक्टोरियोफेज मौजूद हैं जो किसी भी हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं. यही कारण है कि 66 करोड़ से अधिक श्रद्दालुओं के स्नान करने / डुबकी लगाने के बाद भी गंगाजल की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं हुआ और न ही श्रद्धालुओं को जल जनित बीमारियों से जूझना पड़ा. उन्होंने बताया कि जांच में पाया गया कि गंगाजल के अम्लीयता (पी.एच.) सामान्य से अधिक है और उसमें किसी भी प्रकार की दुर्गंध या विषाणुओं की वृद्धि नहीं हुई. अनेक घाटों से लिए गये नमूनों में जल की अम्लीयता का स्तर 8.4 से लेकर 8.6 तक पाया गया. पीने के पानी का पीएच आमतौर पर 6.5 से 9.5 के बीच होना चाहिए. इस दृष्टि से गंगाजल से न केवल स्नान बल्कि आचमन भी किया जा सकता है.

    सन 1890 में ब्रिटेन के वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैंकिन से लेकर आज तक जितने भी वैज्ञानिकों ने गंगाजल की जांच की है, गंगाजल को मानक स्तर का ही पाया है. जब केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने 13 जनवरी के बाद अपनी रिपोर्ट में गंगाजल को स्नान करने और आचमन के योग्य नहीं पाया था, उसी बोर्ड ने जनवरी के अंत में स्वीकार किया कि गंगाजल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है. यहां इस बात पर भी गौर करना होगा कि श्रद्दालुओं की संख्या में लगातार वृद्धि होती गई. यदि इसके बाद भी जल की गुणवत्ता मानक स्तर की बनी रही तो यह गंगा की महिमा ही है कि हजारों साल से गंदगी को साफ करते और मनुष्यों का पाप धोते – धोते गंगा का जल पवित्र बना हुआ है. सोशल मीडिया पर स्नान करने वाले घाटों की जो तस्वीरें दिखाई जा रही थीं, उसे देखकर तो वाकई यही लगता था कि इस गंदे जल में कोई कैसे स्नान कर सकता है, डुबकी लगा सकता है लेकिन करोड़ों श्रद्धालुओं ने स्नान किया, किसी ने भी शिकायत नहीं की. उनका दृढ़ विश्वास है कि गंगाजल में तो डुबकी लगाने से पाप धुल जाते हैं. वे पहले की तुलना में अपने आपको और तरोताजा महसूस कर रहे हैं.  मां गंगा ने श्रद्धालुओं को निराश नहीं किया... अब हमारी भी जिम्मेदारी है कि गंगाजल को पवित्र बनाने में अपना योगदान दें ताकि गंगाजल की पवित्रता पर कोई ऊंगली न उठा सके.

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मधुकर पवार

 

               

न्यूज़ सोर्स : मधुकर पवार