बडे भाई की किडनी से बची छोटे भाई की जान    

एम्स भोपाल में हुआ किडनी का सफल 8 वां प्रत्यारोपण

भोपाल। मधुमेह और उच्च रक्तचाप के कारण भारत में किडनी की बीमारी भी खतरनाक रूप से बढ़ रही हैभारत में हर साल लगभग तीन लाख मरीज किडनी की बीमारी के अंतिम चरण में पहुंच जाते हैं, यानी इन किडनी के मरीजों को डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। आज भी बड़ी संख्या में किडनी के मरीज किडनी दान की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कोई किडनी दान कर दे जिससे उनकी जान बच जाए। लेकिन हर कोई किडनी का मरीज भोपाल के 25 वर्षीय मनोहर (बदला हुआ नाम) जैसे भाग्यशाली नहीं होता। भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज के लिये भर्ती मनोहर को उसके बड़े भाई की किडनी प्रत्यारोपित की गई है। मनोहर की हालत में लगातार सुधार हो रहा है वहीं किडनी दानदाता तो दूसरे दिन से ही चलने – फिरने लगा है। किडनी से पीड़ित मरीज का इलाज आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत किया गया है जिससे मरीज को उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधा नि:शुल्क ही प्राप्त हो रही है।

     

   करीब तीन वर्षों से गुर्दे की बीमारी से पीड़ित भोपाल निवासी डेढ़ वर्ष से नियमित डायलिसिस करा रहा था । किडॅनी प्रत्यारोपण ही उसके बचने का एकमात्र उपाय था। इस कठिन समय में, उसके 31 वर्षीय बड़े भाई ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी एक किडनी दान करने का निर्णय लिया । एम्स भोपाल में किडॅनी दानदाता बड़े भाई की किडनी को लैप्रोस्कोपिक तकनीक के माध्यम से निकाला गया, जो एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है। इसमें पेट में केवल एक छोटा चीरा लगाया जाता है, जिससे ऑपरेशन के बाद दर्द कम होता है, रिकवरी तेजी से होती है और निशान भी बहुत छोटा रहता है। इस विधि से किडॅनी निकलाने के दूसरे दिन से ही किडनी दानदाता भाई चलने-फिरने लग गया। किडॅनी का सफल प्रत्यारोपण एम्स भोपाल के विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों की एक कुशल टीम द्वारा किया गया। नेफ्रोलॉजी विभाग से डॉ. महेंद्र अटलानी, यूरोलॉजी विभाग की टीम में डॉ. देवाशीष कौशल, डॉ. कुमार माधवन, डॉ. केतन मेहरा और डॉ. निकिता श्रीवास्तव शामिल थे। वहीं, एनेस्थीसिया विभाग में डॉ. वैशाली वेंडेसकर, डॉ. सुनैना तेजपाल कर्ण और डॉ. शिखा जैन ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन सभी डॉक्टरों की विशेषज्ञता और समर्पण ने इस प्रत्यारोपण को सफल बनाया। एम्स भोपाल अपने अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम का विस्तार करते हुए उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के अपने मिशन को निरंतर आगे बढ़ा रहा है। इस तरह की पहल के माध्यम से संस्थान एंड-स्टेज किडनी डिजीज से जूझ रहे मरीजों के लिए आशा और स्वास्थ्य का प्रतीक बना हुआ है।

    एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने इस उपलब्धि पर खुशी व्यक्त करते हुए चिकित्सा टीम को बधाई दी और इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "यह उपलब्धि हमारे बहुविषयक (मल्टीडिसिप्लिनरी) टीम के समर्पण और सामूहिक प्रयासों का प्रमाण है। उन्होने बताया कि एम्स भोपाल में सफल किडनी प्रत्यारोपण का यह आठवां मामला है। यह मानवीय करुणा की भावना को भी दर्शाती है, जहां एक भाई ने निःस्वार्थ भाव से अपने भाई को नया जीवन दिया। एम्स भोपाल में, हम अपने मरीजों को सर्वोत्तम चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और आयुष्मान भारत योजना के तहत किया गया यह प्रत्यारोपण यह सुनिश्चित करता है कि वित्तीय बाधाएं जीवन रक्षक उपचार में कभी आड़े न आएं। उन्होने बताया कि हमारा अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम इसी तरह आगे भी बढ़ता रहेगा जिससे अधिक से अधिक मरीजों को स्वास्थ्य लाभ मिलता रहेगा ।