पतंजलि और एम्स भोपाल मिलकर करेंगे शोध --------------------- किडनी, लीवर सहित अनेक रोगों का होगा आयुर्वेद और एलोपैथी से इलाज

पतंजलि और एम्स भोपाल मिलकर करेंगे शोध
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किडनी, लीवर सहित अनेक रोगों का होगा
आयुर्वेद और एलोपैथी से इलाज
भोपाल 03 जून। मध्य भारत के फैटी लिवर, एलर्जी, जीवनशैली संबंधी रोग, यकृत विकार, श्वसन तंत्र की समस्याएँ, गुर्दा रोग तथा न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीड़ित रोगियों के इलाज के लिये एलोपैथी के साथ आयुर्वेद का भी उपयोग किया जाएगा। इसके लिए आज भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और हरिद्वार स्थित पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट के बीच एक समझौते ज्ञापन हस्ताक्षर किए गए। यह समझौते से आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा और प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान के समन्वय से संयुक्त अनुसंधान, शिक्षा एवं नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही रोगियों को समग्र एवं प्रभावी स्वास्थ्य समाधान उपलब्ध हो सकेगा। इस समझौते के तहत फैटी लिवर, एलर्जी, जीवनशैली संबंधी रोग, यकृत विकार, श्वसन तंत्र की समस्याएँ, गुर्दा रोग तथा न्यूरोलॉजिकल विकारों पर संयुक्त अनुसंधान किया जाएगा। इसी अवसर पर पतंजलि द्वारा विकसित साक्ष्य-आधारित आयुर्वेदिक औषधियों — लिवोग्रिट (Livogrit) एवं ब्रोंकोम (Bronchom) — के क्लीनिकल कंट्रोल ट्रायल्स पर भी गहन विचार-विमर्श हुआ।
इस अवसर पर एम्स भोपाल के कर्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने कहा कि यह समझौता आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और पारंपरिक भारतीय आयुर्वेदिक ज्ञान के समन्वय से रोगियों को अधिक प्रभावी, सुलभ और समग्र स्वास्थ्य समाधान प्रदान करने की दिशा में एक नई शुरुआत है। उन्होंने बताया कि पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा एम्स भोपाल परिसर में मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा हर्बल गार्डन स्थापित किया जाएगा। यह गार्डन अनुसंधान एवं शैक्षणिक उपयोग की व्यापक संभावनाओं को समाहित करेगा। कार्यक्रम में पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनुराग वार्ष्णेय ने कहा कि स्वामी रामदेव के आशीर्वाद और आचार्य बालकृष्ण जी की प्रेरणा से पतंजलि आयुर्वेद की प्रमाणिकता को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में यह साझेदारी एक महत्वपूर्ण कदम है। कार्यक्रम में प्रमुख भूमिका निभाते हुए प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार ने इसे चिकित्सा के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा कि यह पहल आधुनिकता और प्राचीनता के समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण बनेगी। इस अवसर पर एम्स भोपाल के डीन (रिसर्च) प्रो. (डॉ.) रेहान-उल-हक, डीन (अकादमिक) प्रो. (डॉ.) रजनीश जोशी, प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारी एवं वैज्ञानिक उपस्थित थे।
उल्लेखनीय है कि पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा यह दावा किया जाता है कि फैटी लिवर, एलर्जी, जीवनशैली संबंधी रोग, यकृत विकार, श्वसन तंत्र की समस्याएँ, गुर्दा रोग तथा न्यूरोलॉजिकल विकारों आदि का इलाज आयुर्वेद के साथ योग और प्राणायाम के नियमित अभ्यास से सम्भव है। आयुर्वेद के इलाज के कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होते हैं जबकि एलोपैथी के इलाज से अनेक दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं। यदि नियमित योग प्राणायम के साथ आयुर्वेद की दवाईयों का सेवन किया जाए तो न केवल रोगमुक्त हो सकते हैं बल्कि दवाईयों के सेवन करने की बाध्यता को भी समाप्त किया जा सकता है। एलोपैथी दवाईयों के प्रयोग और अनियमित खानपान व जीवन शैली से होने वाली आम बीमारी मधुमेह के बारे में कहा जाता है कि जिस किसी को यह रोग लग जाए, उसे जीवन पर्यंत दवाई का सेवन करना पड़ेगा। इस सम्बंध में पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा दावा किया गया है कि मधुमेह के रोगियों को न केवल इंसुलिन लगाने से छुटकारा मिला है बल्कि स्वस्थ होने के बाद उन्हें आयुर्वेद की दवाईयों के सेवन करने से भी मुक्ति मिल जाती है। इसी तरह उच्च रक्तचाप, थायराईड सहित अनेक गम्भीर बीमारियों के रोगियों का भी सफल इलाज किया जा रहा है।
पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट के दावों पर यकीन किया जाए तो निश्चित ही एम्स भोपाल और पतंजलि के बीच हुआ समझौता ज्ञापन चिकित्सा के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगा। इससे भारत ही नहीं, विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिलेगी।
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