अपनी बात ……… सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष से वापस आयीं और हम लोग औरंगज़ेब की कब्र के सामने .................................. रंजन श्रीवास्तव

अपनी बात ………
सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष से वापस आयीं और
हम लोग औरंगज़ेब की कब्र के सामने
- रंजन श्रीवास्तव
जब बुधवार, 19 मार्च की अलसुबह अमेरिका अपनी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स, जो अंतरिक्ष में लगभग 9 महीनों से फँसी हुई थीं, को सकुशल वापस लेकर आया और इधर भारत में नागपुर हिंसा के बाद एक साम्प्रदायिक तनाव में क़ैद था। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के लोगों ने मुग़ल शासक औरंगज़ेब की कब्र पर सोमवार को प्रदर्शन किया और मांग की कि कब्र को महाराष्ट्र से बाहर ले जाया जाये। नागपुर में तनाव के दौरान अफवाह फैली कि एक धर्म विशेष के धार्मिक ग्रंथ को जलाया गया है। इसके विरोध में पत्थर बाजी हुई और हिंसा में लगभग 40 लोग जिसमें 34 पुलिसकर्मी भी हैं, घायल हो गये। नागपुर के 11 थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाना पड़ा । कई एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं और लगभग 50 संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है । हमेशा की तरह इस हिंसा के बाद राजनीतिक दलों के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है कि हिंसा के लिए जिम्मेदार कौन हैं ?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा है कि हिंसा पूर्व नियोजित थी। विश्व हिंदू परिषद ने भी इस हिंसा को पूर्व नियोजित बताया है। कैबिनेट मंत्री नितेश राणे., जिन्होंने कथित रूप से सोमवार को कहा कि “हम बाबरी को दोहरायेंगे” । उन्होने मंगलवार, 18 मार्च को इस हिंसा के लिए सपा विधायक अबू आज़मी को ज़िम्मेदार ठहराया। आज़मी ने 3 मार्च को कहा था कि औरंगज़ेब एक क्रूर नहीं बल्कि एक अच्छा शासक था और उसके समय भारत देश सोने की चिड़िया था। 5 मार्च को आज़मी को उनके भड़काऊ बयान के लिए विधान सभा से निलंबित किया गया। ऐसा नहीं कि भड़काऊ बयान सिर्फ़ आज़मी की तरफ़ से ही आए। आज़मी के पहले बयान के बाद भाजपा सांसद उदयनराजे ने कहा कि औरंगज़ेब की कब्र को जेसीबी से ध्वस्त कर दिया जाए। मुख्यमंत्री फड़नवीस ने 16 मार्च को कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि औरंगज़ेब के अत्याचारों के इतिहास के बाद भी उसकी कब्र की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार को लेनी पड़ रही है।
वास्तव में औरंगज़ेब पर चर्चा तो 14 फ़रवरी को रिलीज़ हुई छावा फ़िल्म के बाद ही शुरू हो गई थी, जिसमें औरंगज़ेब द्वारा सम्भाजी महाराज पर अत्याचार को दिखाया गया है। 14 मार्च को होली पर वैसे भी तनाव का माहौल था जब उत्तर प्रदेश में कुछ स्थानों पर मस्जिदों को तिरपाल से ढँकने की तस्वीरें और एक पुलिस अधिकारी का “52 जुमा और एक होली” का बयान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। कुछ नेताओं ने भी मुस्लिम समुदाय को होली पर “अगर रंग पसंद नहीं है तो घरों में रहें” सलाह देकर माहौल को और गर्म बना दिया। महाराष्ट्र में पुलिस ने हिंसा करने वालों पर कार्रवाई शुरू कर दी है। पर जाहिर है कि अगर देश में विभिन्न स्थानों पर नेता भड़काऊ भाषण या बयान नहीं देते तो नागपुर की अप्रिय स्थिति को टाला जा सकता था। नेताओं को इससे जो भी चुनावी फायदा हो, पर अंततः नुकसान तो आम जनता को ही उठाना पड़ता है। स्कूल कॉलेज बंद होने की स्थिति में छात्रों की पढ़ाई बाधित होती है। बाज़ार बंद होने से व्यापारियों और उद्योगपतियों को नुक़सान होता है। स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर पड़ता है। और कुल मिलाकर सामूहिक रूप से समाज, प्रदेश और देश का नुक़सान होता है। विदेशों से जो निवेशक भारत आना चाहते हैं, वो भी सोचने को मजबूर होते हैं कि क्या वे निवेश ऐसी जगह करें जहाँ लोग इतिहास की बातों को लेकर वर्तमान में एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ें हैं।
सुनीता विलियम्स का ज़िक्र इसलिए क्योंकि यह बताता है कि जहाँ विदेशों में विज्ञान लगातार प्रगति की राह पर है, हम होली में रंग खेलने और औरंगज़ेब के कब्र जैसे मुद्दों में फंसे हुए हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स का अभी तक का रिकॉर्ड 100% सफलता का रहा है जो सुनीता विलियम्स को अंतरिक्ष से वापस लेकर आया। रहा अपने देश की बात तो स्पेस टेक्नोलॉजी में महत्वपूर्ण प्रगति के बाद भी विंग कमांडर राकेश शर्मा के बाद हम पिछले 40 सालों में कोई दूसरा यात्री अंतरिक्ष में नहीं भेज पाये हैं। राकेश शर्मा भी सोवियत यूनियन के स्पेस प्रोग्राम का हिस्सा थे, विशुद्ध भारतीय प्रोग्राम के नहीं। केवल अंतरिक्ष ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी वेस्टर्न वर्ल्ड और यहाँ तक कि पड़ोसी चीन भी लगातार प्रगति कर रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अमेरिका और चीन अपनी धाक जमा रहे हैं पर हम पर्ची निकालने वाले तथाकथित बाबाओं की शरण में अपनी प्रगति की राह खोज रहे हैं। हमारी आँख तब भी नहीं खुलती जब हम देख चुके हैं कि कथित सुपर नेचुरल पॉवर वाले बाबाओं की भीड़ में जो महाकुंभ में मौजूद थे, से कोई एक बाबा भी भगदड़ होने की भविष्यवाणी नहीं कर पाया था, भगदड़ को अपने तथाकथित शक्ति से रोक देने की बात दूर रही।
हमारे लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण मुद्दे हैं कि कैसे हम चैंपियन ट्रॉफी जीतने का सेलिब्रेशन एक विशेष समुदाय के धर्म स्थल के पास जाकर करें और कैसे हम 300 वर्ष पूर्व मृत शासक के कब्र को हटाने के नाम पर झगड़ते रहें। इसका जवाब किसी के पास नहीं है कि उस कब्र को किस क़ानून के तहत हटाया जा सकता है और उसको कहाँ ले जाया जा सकता है ?
****************************************
रंजन श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल । श्रीयुत श्रीवास्तव ने हिंदुस्तान टाईम्स, फ्री प्रेस सहित अनेक अखबारों में पत्रकारिता करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई है। वर्तमान में वे सम सामयिक और राजनीतिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।