(आलेख)‌  03 मई को सुबह टेलीविजन पर एक ताजा समाचार ने ध्यान खींच लिया. एंकर हाँफते – हाँफते बता रही थी.... आज राहुल गांधी रायबरेली से नामांकन दाखिल करेंगे. इसके बाद दिनभर पल-पल की खबर देने के लिए खबरिया चैनलों की भीड़ रायबरेली से ब्रेकिंग न्यूज़ देती रही. इस बार लोकसभा के चुनाव को लेकर भले ही मतदाताओं में उत्साह बिल्कुल भी नहीं है लेकिन खबरिया चैनलों को देखकर लग रहा है कि चुनाव का माहौल तो केवल इन चैनलों पर ही देखा जा रहा है. सभी राजनीतिक दल भी परिणाम के प्रति पहले से ही आसान्वित नजर आ रहे हैं. ऐसे में वायनाड से पर्चा दाखिल करने और वहां मतदान होने के बाद अमेठी में अपनी जान बसाने वाले राहुल गांधी ने सुरक्षित सीट रायबरेली को क्यों चुना ? यह लाख तक के का सवाल है. वैसे तो सन 2019 में हुए लोकसभा के चुनाव में राहुल गांधी अमेठी और वायानाड, दोनों संसदीय क्षेत्र से चुनावी मैदान में थे. अमेठी में वे  भारतीय जनता पार्टी की स्मृति ईरानी से हार गए थे. हो सकता है हार के घाव को कुदूरने से बचाने के लिए रायबरेली की ओर रख कर लिया.

 वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ने भी सन 2014 में वाराणसी के अलावा बड़ोदरा से भी चुनाव लड़ा था और वे दोनों स्थानों से विजयी हुए थे. कद्दावर नेताओं के दो स्थानों से चुनावी मैदान में उतरने के अनेक उदाहरण हैं. यदि कोई उम्मीदवार दोनों स्थानों से चुनाव में जीत हासिल करता है तो उसे एक स्थान से उसे इस्तीफा देना पड़ता है.  चुनाव आयोग वहां फिर से चुनाव करवाता है. चुनाव करवाने में फिर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं. आचार संहिता लगने से संबंधित क्षेत्र का काम भी ठप्प हो जाता है और सरकारी मशीनरी केवल चुनाव करवाने में ही व्यस्त हो जाती है. केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव की अवधारणा को साकार करने के उद्देश्य से पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था. समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है. समिति की अनुशंसा पर अमल कब होता है ? यह तो बाद में ही पता चलेगा. फिलहाल 18वीं लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं. सात चरणों में से दो चरणों का मतदान हो चुका है. अब मुद्दा यह है कि एक देश एक चुनाव में उम्मीदवारों के दो स्थानों से चुनाव लड़ने पर समिति ने क्या अनुशंसा की है? इसकी तो कोई जानकारी नहीं है. यह भी हो सकता है कि इस विषय पर कोई चर्चा ही नहीं हुई हो. यदि कोई सैद्धांतिक अनुशंसा की गई हो तो यह सभी दृष्टि से हितकर हो सकता है. यदि कोई राजनेता एक से अधिक स्थानों से लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ता है और केवल एक स्थान से विजयी होता है, तब तो कोई संकट नहीं लेकिन दोनों स्थानों से विजयी हुआ तो एक स्थान से इस्तीफा देना पड़ता है. चुनाव करवाने पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं.

इन सब मुद्दों को छोड़कर मूल विषय पर चर्चा करें तो क्या संभव है यदि कोई राजनेता दो स्थानों से चुनाव लड़ता है और दोनों स्थानों से विजयी होने के बाद एक स्थान से इस्तीफा देने पर वहां चुनाव नहीं कराया जाए. लोकतंत्र की दुहाई देने वाले इस प्रस्ताव पर हाय तौबा मचाना शुरू कर देंगे. इस लोकतंत्र की हत्या और न जाने क्या-क्या कहेंगे ? लेकिन इस पर विचार करना वाजिब है. मान लीजिए कोई राजनेता दो स्थानों से चुनाव मैदान में है और दोनों स्थानों से विजयी होता है तो एक स्थान से इस्तीफा देना होगा. अब रिक्त हुये स्थान पर चुनाव न करवाकर सम्बंधित निर्वाचन क्षेत्र में जो भी निकटतम प्रतिद्वंदी है, उसे विजयी घोषित कर देना चाहिए. ऐसा करने से दोबारा चुनाव और प्रशासनिक व्यवस्था पर होने वाले व्यय को बचाया जा सकता है. यदि दो स्थानों से चुनाव लड़ने के उपरांत विजयी होने पर किसी एक स्थान से इस्तीफा देने के बाद यदि चुनाव करवाया जाता है तो चुनाव पर होने वाला समस्त व्यय इस्तीफा देने वाले प्रत्याशी से वसूला जाना चाहिए. चुनाव में जीतने के बाद इस्तीफा देना तो मतदाताओं के साथ भी छल ही माना जाना चाहिए. इसी तरह यदि कोई सांसद, विधायक, महापौर, पार्षद, सरपंच, पंच कोई भी निर्वाचित सदस्य दल बदलता है तो इसे भी मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी की श्रेणी में रखा जा सकता है. मतदाता किसी भी दल की विचारधारा को दृष्टिगत रखते हुए अपना मत देते हैं. ऐसे में दल बदलना मतदाताओं के साथ विश्वासघात है. (मधुकर पवार)