भारत में जब भी चुनाव होते हैं, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ( ईवीएम ) का जिन्न मशीन से बाहर निकल आता है और अनेक राजनीतिक दल ईवीएम के स्थान पर मतपत्रों (बैलेट) से ही मतदान कराने की मांग करने लग जाते हैं. वे  अक्सर उदाहरण देते हैं कि जब अमेरिका और अन्य विकसित देशों में चुनाव में मतपत्रों का ही उपयोग होता है तब भारत में क्यों नहीं कराते ? उन्हें इस बात का अंदेशा रहता है कि सत्त्तारूढ़ दल ईवीएम के साथ छेड़छाड़ कर परिणाम अपने पक्ष में कर लेता है. सत्तारूढ़ दल भी अपनी बात पूरी दमदारी के साथ रखता है कि जब विपक्षी दल चुनाव में विजयी होते हैं तब ईवीएम पर दोष क्यों नहीं मढ़ते ? बात तो यह भी सही है कि जो दल चुनाव में जीत हासिल करता है, वह ईवीएम के मुद्दे पर चुप्पी साध लेता है.  
चुनाव आयोग ने दो-तीन वर्ष पहले सभी राजनीतिक दलों को ईवीएम की निर्दोषिता सिद्ध करने करने के लिये आमंत्रित किया था तब आरोप लगाने वाले दलों के अनेक नुमाईंदे ईवीएम का परीक्षण करने नहीं पहुंचे. ईवीएम पर आरोप लगाने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर चुनाव आयोग ने मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल ( वीवीपीएटी ) को भी ईवीएम के साथ जोड़ दिया है ताकि मतदाता, मतदान करते समय ही यह पुष्टि कर सकें कि उन्होने जिस उम्मीदवार को अपना मत दिया है, उसे ही मिला है या नहीं. ईवीएम के साथ वीवीपीएटी मशीन लगाने से मतदान करने की प्रक्रिया में और पारदर्शिता आ गई है. लिहाजा ईवीएम पर संदेह करने की गुंजाईश न के बराबर है बावजूद इसके ईवीएम पर समय – समय पर आरोप लगाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है. पिछले दिनों ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित अनेक नेताओं ने भी ईवीएम पर शंका जाहिर की है और मतपत्रों से ही मतदान कराने की मांग की है. इन आरोप प्रत्यारोप के बीच यह तो तय है कि मतदान के लिये ईवीएम का उपयोग किया जायेगा और सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ईवीएम की रेंडमाईजेशन की प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई है.
यह भी सत्य है कि ईवीएम के उपयोग के पहले मतदान के लिये मतपत्रों का ही इस्तेमाल होता था. किसी – किसी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारों की संख्या काफी अधिक होती थी जिसके कारण न केवल मतपत्रों की छपाई में भी काफी समस्या आती थी बल्कि मतदान के समय भी मतदाताओं को भी दिक्कतें आती थी. इसके परिणामस्वरूप काफी मतपत्र रद्द भी हो जाते थे. ईवीएम में मत  के रद्द होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता. हालाकि चुनाव आयोग ने ईवीएम में मतदाताओं के लिये “नोटा” का विकल्प उपलब्ध करा दिया है और उम्मीदवारों से असहमति होने पर वे इसका उपयोग भी करते हैं. मतपत्रों से होने वाले चुनाव के बाद मतगणना का कार्य भी काफी उबाऊ काम होता था और जब कभी दुबारा मतगणना की जरूरत होती थी, काफी समय नष्ट होता था. वैसे भी मतों की गिनती करने और परिणाम घोषित करने में दो - तीन दिनों से भी अधिक समय लग जाता था. इन सब परेशानियों को देखते हुये चुनाव आयोग ने ईवीएम से मतदान कराने की पहल की और यह कारगर भी है. चुनावों में ईवीएम के डिजाइन और अनुप्रयोग को वैश्विक लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है। इससे प्रणाली में अधिक पारदर्शिता, तेजी और स्वीकार्यता आई है।      
 ईवीएम का का इतिहास  
       भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ( ईवीएम ) से चुनाव कराने पर तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त  एस.एल. शकधर ने सन 1977 में एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन लाने की बात कही। भारत सरकार के  इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद को ईवीएम विकसित करने का काम सौंपा गया था। सन 1979 में एक प्रोटोटाइप विकसित किया गया था, जिसे 6 अगस्त, 1980 को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने चुनाव आयोग द्वारा प्रदर्शित किया गया था। भारत सरकार के ही बंगलुरू स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल)  को भी ईवीएम के निर्माण कार्य में शामिल किया गया तथा यह सहमति बनी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड मिलकर ईवीएम का निर्माण करेंगे। 
भारत में ईवीएम का पहली बार उपयोग मई, 1982 में केरल के आम चुनाव में हुआ था. लेकिन इसके उपयोग को निर्धारित करने वाले एक विशिष्ट कानून के नहीं होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने उस चुनाव को रद्द कर दिया। इसके बाद, 1989 में, संसद ने चुनावों में ईवीएम के उपयोग के लिए प्रावधान बनाने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया। इसकी शुरूआत पर आम सहमति 1998 में ही बन सकी और इनका उपयोग तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के 25 विधान सभा क्षेत्रों में किया गया। ईवीएम का उपयोग 1999 में 45 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में और बाद में, फरवरी 2000 में, हरियाणा विधानसभा चुनावों में 45 विधानसभा क्षेत्रों में विस्तारित किया गया। मई 2001 में तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल राज्यों में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में, सभी विधानसभा क्षेत्रों में ईवीएम का उपयोग किया गया था। तब से, प्रत्येक राज्य विधानसभा चुनाव के लिए, आयोग ने ईवीएम का उपयोग किया है। 2004 में, लोकसभा के आम चुनाव में, देश के सभी 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम का उपयोग किया गया था। इस चुनाव में दस लाख से अधिक ईवीएम का उपयोग किया गया.  
एक ईवीएम में दो इकाइयाँ होती हैं, अर्थात् कंट्रोल यूनिट (सीयू) और बैलेटिंग यूनिट (बीयू) और दोनों को जोड़ने के लिए एक 5 मीटर लंबी केबल होती है। एक मतदान इकाई 16 उम्मीदवारों तक की सेवा प्रदान करती है। ईवीएम में समय-समय पर जरूअरत के मुताबिक विकास किया गया है। सन 2006 से पहले  और 2006 के बाद की ईवीएम  के मामले में नोटा सहित अधिकतम 64 उम्मीदवारों को समायोजित करने के लिए 4 मतपत्र इकाइयों को एक साथ जोड़ा जा सकता है, जिसका उपयोग एक नियंत्रण इकाई के साथ किया जा सकता है। 2006 के बाद उन्नत ईवीएम के मामले में 24 मतपत्र इकाइयों को नोटा सहित 384 उम्मीदवारों लिए एक साथ जोड़ा जा सकता है, जिसका उपयोग एक नियंत्रण इकाई के साथ किया जा सकता है। यह 7.5 वोल्ट वाले पावर पैक (बैटरी) से संचालित होता है।  ईवीएम के मामले में  5वीं, 9वीं, 13वीं, 17वीं और 21वीं बैलेटिंग यूनिट में पावर पैक डाले जाते हैं। यदि 4 से अधिक बैलेटिंग यूनिट एक कंट्रोल यूनिट से जुड़े हों। उम्मीदवारों के वोट बटन के  साथ बैलेटिंग यूनिट के दाईं ओर, दृष्टिबाधित मतदाताओं के मार्गदर्शन के लिए ब्रेल  साइनेज में अंक 1 से 16 तक उकेरे गए हैं।  
मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल ( वीवीपीएटी ) 
चुनाव आयोग ने 4 अक्टूबर, 2010 को आयोजित सभी राजनीतिक दलों की बैठक आयोजित की जिसमें सभी राजनीतिक दलों ने ईवीएम पर संतुष्टि व्यक्त की, लेकिन कुछ पार्टियों ने आयोग से मतदान प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता और सत्यापन के लिए वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल शुरू करने पर विचार करने का अनुरोध किया। आयोग ने इस संबंध में जांच करने और सिफारिश करने के लिए मामले को ईवीएम पर अपनी तकनीकी विशेषज्ञ समिति को भेज दिया। विशेषज्ञ समिति ने इस मुद्दे पर ईवीएम के निर्माताओं, अर्थात् बीईएल और ईसीआईएल के साथ कई दौर की बैठकें कीं और फिर ईवीएम के साथ वीवीपीएटी प्रणाली की डिजाइन आवश्यकता का पता लगाने के लिए राजनीतिक दलों और अन्य नागरिक समाज के सदस्यों से मुलाकात की । विशेषज्ञ समिति के निर्देश पर, बीईएल और ईसीआईएल ने एक प्रोटोटाइप बनाया और 2011 में समिति और आयोग के समक्ष प्रदर्शित किया। ईवीएम और वीवीपीएटी प्रणाली पर विशेषज्ञ समिति की सिफारिश पर, आयोग ने वीवीपीएटी के क्षेत्र परीक्षण के लिए सिम्युलेटेड चुनाव आयोजित किया।   वीवीपैट  प्रणाली के प्रथम क्षेत्रीय परीक्षण के बाद आयोग ने वीवीपैट प्रणाली को और बेहतर बनाने के लिए वीवीपैट प्रणाली का विस्तृत पुनर्मूल्यांकन किया ।  निर्माताओं ने वीवीपीएटी प्रोटोटाइप का दूसरा संस्करण विकसित किया। जुलाई-अगस्त 2012 में  इसे फिर से दूसरा फील्ड परीक्षण किया गया। बाद में 19 फरवरी 2013 को आयोजित तकनीकी विशेषज्ञ समिति की बैठक में, समिति ने वीवीपीएटी के डिजाइन को मंजूरी दे दी और आयोग को इस पर कार्रवाई करने की सिफारिश भी की।  भारत सरकार ने 14 अगस्त, 2013 को संशोधित चुनाव संचालन नियम, 1961 को अधिसूचित किया, जिससे आयोग ईवीएम के साथ वीवीपीएटी का उपयोग करने में सक्षम हो गया। आयोग ने नागालैंड के 51-नोकसेन (एसटी) विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव में पहली बार ईवीएम के साथ वीवीपीएटी का उपयोग किया। इसके बाद, वीवीपीएटी का उपयोग विधान सभाओं के प्रत्येक चुनाव में चयनित निर्वाचन क्षेत्रों और लोक सभा के आम चुनाव-2014 में 8 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में किया गया है।
वीवीपैट पर तथ्य 
वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से जुड़ी एक स्वतंत्र प्रणाली है जिसके माध्यम से मतदाताओं को यह सत्यापित करने की सुविधा मिल जाती है कि उन्होने जिस उम्मीदवार को अपना मत दिया है उसे ही मिला है। जब वोट डाला जाता है, तो वीवीपैट प्रिंटर पर एक पर्ची मुद्रित होती है जिसमें उम्मीदवार का सीरियल नंबर, नाम और प्रतीक होता है और 7 सेकंड के लिए एक पारदर्शी विंडो के माध्यम से खुला रहता है। इसके बाद यह मुद्रित पर्ची स्वतः कटकर वीवीपैट के सीलबंद ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है । 
अब ईवीएम और वीवीपीएटी की जोड़ी पर शंका करने का कोई ठोस कारण नहीं बनता है फिर भी इन पर ऊंगली उठाई जाती है. बेहतर होगा कि चुनाव आयोग मतगणना के समय वीवीपीएटी की परची और ईवीएम के वोटों की गिनती की पुष्टि भी कराये ताकि छेड़छाड़ की किसी भी तरह की गुंजाईश की आशंका को समाप्त किया जा सके. हालाकि इस कार्य में काफी समय लगेगा इसलिये कुछ ईवीएम और वीवीपीएटी में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में उन्हीं की बताई मशीनों में मतों और पर्चियों का मिलान किया जा सके. (मधुकर पवार ) 
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