दुर्लभ बॉम्बे ब्लड ग्रुप के रवींद्र ने

शिर्डी से भोपाल आकर किया रक्तदान  

 गर्भवती महिला की जान बचाई

भोपाल। जब रक्त समूह (ब्लड ग्रुप) की चर्चा होती है तो आमतौर पर ओ, ए, बी, आदि कुछ ग्रुप के बारे में ही अधिकांश लोग जानते हैं लेकिन बाम्बे ब्लड ग्रुप के बारे में शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे। रक्तदान को महादान भी कहते हैं क्योंकि रक्तदान से मरीजों की जान बचाई जाती है। यदि बाम्बे ब्लड ग्रुप का कोई रक्तदाता 700 किलोमीटर से रातभर यात्रा कर रक्तदान कर मरीज की जान बचाने में सहायक हो तो यह वास्तव में महादान से भी अधिक माना जाना चाहिए। एक ऐसा ही प्रकरण भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में हुआ जहां शिर्डी के एक रक्तदाता ने भोपाल आकर एम्स में रक्तदान कर एक गर्भवती महिला का जीवन बचाने में अपना अमूल्य योगदान दिया।

        एम्स भोपाल में एक महिला प्रसव के लिए भर्ती थी। जांच के दौरान पता चला कि  उसका खून दुर्लभ बॉम्बे ब्लड ग्रुप है। इस अत्यंत दुर्लभ रक्त समूह के कारण, उपयुक्त रक्तदाता ढूंढना एक बड़ी चुनौती थी। इसी बीच, शिरडी के निवासी श्री रवींद्र ने जब इस आपातकालीन स्थिति के बारे में सुना, तो उन्होंने रातभर यात्रा कर लगभग 700 किलोमीटर की दूरी तय की और भोपाल पहुंचकर रक्तदान किया। समय पर रक्तदान करने से महिला को आवश्यक रक्त चढ़ाया गया जिससे उसका प्रसव सुरक्षित रूप से हो सका। श्री रवींद्र की यात्रा का प्रबंध एक एनजीओ ‘ब्लड कॉल सेंटर’ के माध्यम से की गई।

        बॉम्बे ब्लड ग्रुप दुनिया के सबसे दुर्लभ रक्त समूहों में से एक है, जो भारत में 1 लाख से अधिक लोगों में से केवल 1 व्यक्ति में पाया जाता है। इसकी अत्यधिक दुर्लभता के कारण, उपयुक्त रक्तदाता खोजना अक्सर एक बड़ी चुनौती बन जाता है। देश में ऐसे अनेक स्वयं सेवी संगठन कार्य कर रहे हैं जो स्वैच्छिक रक्तदाताओं से समय पर रक्तदान करवाते हैं जिससे हर साल लाखों मरीजों की जान बचती है ।  

      शिर्डी के रक्तदाता श्री रवींद्र के इस निस्वार्थ कार्य के लिये एम्स प्रशासन और महिला के परिवार ने कृतज्ञता व्यक्त की है । एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह श्री रवींद्र की सराहना करते हुये कहा कि स्वैच्छिक रक्तदान एक महान कार्य है । एम्स भोपाल के ही एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रोमेश जैन ने भारत में एक राष्ट्रीय दुर्लभ रक्त समूह रजिस्टर बनाने पर बल देते हुये कहा कि उपयुक्त रक्तदाताओं की पहचान और संपर्क करने की प्रक्रिया को सुचारू बनाने की आवश्यकता है।  इससे एक संगठित रक्तदाता नेटवर्क होने से इस तरह की दुर्लभ और जीवन-रक्षक स्थितियों से प्रभावी रूप से निपटना संभव हो सकेगा।"

 

न्यूज़ सोर्स : एम्स भोपाल