बारिश में दरगाह का हाल बेहाल: अजमेर में 500 साल पुराने हुजरे, दीवारें और दालान हुए जर्जर

अजमेर/ देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का अजमेर दरगाह पवित्र केंद्र है. ये दरगाह आज अपनी बदहाल स्थिति के कारण सवालों के घेरे में है. सालों से लोग यहां श्रद्धा से चादर चढ़ाने आते हैं, लेकिन अब इस ऐतिहासिक धरोहर की हालत चिंताजनक हो चुकी है. सैकड़ों साल पुराने हुजरे, दीवारें और दालान जर्जर हो चुके हैं. हाल की बारिश में तो हद हो गई. यहां कई छज्जे टूट गए, दीवारों में दरारें साफ दिख रही हैं. यह शर्मनाक स्थिति अब सिर्फ अजमेर तक सीमित नहीं है।.ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को पत्र लिखकर तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है. जिसमें कहा गया है कि क्या इस पवित्र धरोहर को यूं ही मरने दिया जाएगा?
दरगाह कमेटी के सीईओ मोहम्मद बिलाल खान इस धरोहर को बचाने की जंग लड़ रहे हैं. उन्होंने बताया कि बारिश के बाद टूटे छज्जों का निरीक्षण कर मरम्मत का काम शुरू कर दिया गया है. आस्ताना शरीफ के गुंबद को वॉटरप्रूफ करने के लिए डॉक्टर फिक्सिट का इस्तेमाल किया गया. बिलाल खान, जिन्होंने चार दशक बीएसएफ में देश की सेवा की. उन्होंने कहा कि हमने बच्चे नहीं पाले, सिर्फ मातृभूमि की खिदमत की और अब इस दरगाह को बचाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं. उनके नेतृत्व में गुंबद की वॉटरप्रूफिंग हुई, दालान और महिला क्षेत्र में सुधार शुरू हुए.
खादिमों को हुजरे खाली करने के नोटिस दिए गए. ताकि मूल स्वरूप बिना छेड़े मरम्मत हो सके, लेकिन बारिश की बेरहमी और संसाधनों की कमी ने उनके हाथ बांध दिए. फिर भी वह रात-दिन इस धरोहर को बचाने में जुटे हैं. उनकी आंखों में बेचैनी और दिल में एक ऐसा दर्द है, जो शब्दों में बयां नहीं हो सकता.
क्या बोले खादिम सैयद फखरे मोइन चिश्ती?
लेकिन सवाल यह है कि इतने प्रयासों के बावजूद बिलाल खान क्यों आरोपों के घेरे में हैं? क्या आगामी चुनावों की सियासत उनकी मेहनत को नजरअंदाज कर रही है? खादिम सैयद फखरे मोइन चिश्ती ने कमेटी पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि लगातार चेतावनी देने के बाद भी कमेटी सिर्फ दिखावटी काम कर रही है. रिसते हुजरों की मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति हो रही है, और अब खादिमों को हुजरे खाली करने के नोटिस थमाए जा रहे हैं. अगर यही हाल आस्ताना शरीफ का हो तो क्या उसे भी बंद कर दोगे?” कमेटी ने अपने जवाब में कहा कि अगर हुजरे खाली नहीं होंगे, तो नया निर्माण कैसे होगा?
धरोहर बचाने की कोशिश
कई जगहों पर मरम्मत के लिए टेंडर जारी किए गए हैं. दालान और महिला क्षेत्र जैसी प्राथमिकताओं पर ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन सवाल उठता है कि दान का पैसा कहां जा रहा है? खादिमों के हुजरों का पैसा कहां है? इसका कोई हिसाब क्यों नहीं?” यह शर्मनाक है कि पवित्र दरगाह की ऐसी दुर्दशा हो रही है, और कमेटी पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. क्या इस धरोहर को बचाने की जिम्मेदारी कोई लेगा, या सिर्फ सियासत और आरोपों का खेल चलेगा?
500 साल पुराने हुजरे मांग रहे मरम्मत
पीर सैयद फखर काजमी चिश्ती ने दरगाह के इतिहास और संरचना के बारे में बताया कि परिसर में 500 साल पुराने हुजरे हैं, जो अकबर के शासनकाल में बने थे. इन दीवारों को उस समय गारा, चूना और बालू से तैयार किया गया था, जो अब कमजोर हो चुके हैं. पिछले साल 60 और 61 नंबर के हुजरे गिर चुके हैं. जिस 60-61 नंबर हुजरे के गिरने की बात की जा रही है, उसका निर्माण तो 2023 में हो चुका है. दरगाह कमेटी ने कहा था कि आपको मूल स्वरूप नहीं बदलना है, इसके बावजूद उसे बदला गया. जिस चीज पर बवाल किया जा रहा है, वह तो आम सूचना का नोटिस है. यह उन सभी हुजरों के लिए है, जिनकी हालत गंभीर बनी हुई है. अगर वे इन्हें खाली करेंगे, तो हम बनाकर देंगे ताकि कोई हादसा न हो. जिन हादसों का हवाला वे दे रहे हैं, वह 60-61 नंबर के हुजरे के गिरने पर आधारित है. दरगाह कमेटी माइनॉरिटी ऑफ इंडिया की ऑटोनोमस बॉडी है, जो दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट 1955 के तहत संचालित होती है.