गूगल डॉक्टर – एक अद्भुत विधा... डा. अनिल भदोरिया का आलेख
यह सोशल मीडिया का जमाना है. सोशल मीडिया पर हर दिन ही स्वास्थ्य सहित सभी विषयों पर बहुत सारी जानकारी आते रहती है। अनेक दावे गलत भी होते हैं। हर व्यक्ति, जो इंटरनेट का उपयोग करता है, कोई भी जानकारी की आवश्यकता होती है तो तुरन्त ही गूगल पर सर्च करने लग जाता है। गूगल पर एक ही विषय पर सैकड़ों जानकारी मिल जाती है, तब यह निर्णय करना मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में प्रामाणिक जानकारी कौन सी है? अन्य जानकारी से उतना नुकसान नहीं होता लेकिन स्वास्थ्य सम्बंधी जानकारी घातक हो सकती है। इन्ही सब बातों को लेकर डा. अनिल भदोरिया ने गूगल डाक्टर – एक अद्भुत विधा आलेख में सतर्क रहने की सलाह दी है.
गूगल डॉक्टर – एक अद्भुत विधा
- डॉ अनिल कुमार भदोरिया
चिकित्सा विज्ञान का जो पाठ्यक्रम छात्र 5 से 10 साल पढ़कर भी अनिश्चित चिकित्सा विज्ञान में 2 धन 2 का 4 के नियम का सदैव सिद्ध नहीं कर पाते उसे स्वयंभू गूगल डॉक्टर चंद पंक्तियां पढ़कर अपना पूरा ज्ञान उड़ेल कर सुपर कंसलटेंट साबित होने की कोशिश करते हैं। इस पर हर्बल औषधि, मलहम, तेल, जूस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं प्रिंट मीडिया पर विज्ञापन ने हर व्यक्ति को स्वयंभू चिकित्सक बनने पर मजबूर ही कर दिया है। |
डॉक्टर साहब, 3 दिन से बुखार है। मैंने पहले दिन पेरासिटामोल खा ली थी। 2 दिन से बिल्कुल आराम नहीं है तो सोचा आपको भी दिखा दूं।
डाक्टर - ओ.के. ।
डॉक्टर साहब ने पूरा क्लिनिकल इतिहास जाना, लक्षण पूछे, शारीरिक परीक्षण किया। रक्तचाप, गले की जांच, पेट की तिल्ली-लीवर, पैरों में सूजन आदि की जांच की और कहा - वायरल फीवर प्रतीत होता है। यह दर्द की दवाई का सेवन प्रारंभ कर दें।
पर्चा देखकर रोगी बोल उठा – अरे, आपने तो इसमें मलेरिया की क्लोरोक्विन की गोली लिख दी है जबकि आपने खून की जांच तो कराई ही नहीं। मलेरिया पैरासाइट तो पहले पकड़ाई में आ जाए फिर क्लोरो की दवा लें।
हां बेटा, आप जांच करा सकते हैं और उसके बाद दवाई शुरू कर सकते हैं लेकिन तब तक बुखार आपको अशक्त कर देगा। डॉक्टर ने सलाह दी लेकिन मरीज फिर बोला - और आपने एंटीबायोटिक्स भी लिखे हैं जो मैं 3 दिन से खा रहा हूं।
डॉक्टर आश्चर्यचकित हुए। पूछ बैठे - किस डॉक्टर ने लिखी है और कौन सी एंटीबायोटिक खा रहे हैं आप ?
अब रोगी ने कहा - नहीं नहीं। मैंने किसी डॉक्टर को नहीं दिखाया था सर।
डॉक्टर ने फिर पूछा - अपने मन से ही दवाई प्रारंभ कर दी थी क्या ?
रोगी ने कहा - नहीं सर, गूगल पर पढ़ लिया था।
यह एक छोटी कहानी है गूगल डॉक्टर की। सोशल मीडिया और इंटरनेट के युग में किस - किस तरह के ज्ञानचंद और रायचंद से सामना होता है उसकी सही बानगी है गूगल डॉक्टर। गूगल डॉक्टर वह होता है जो किसी भी विषय विशेष की जानकारी गूगल या इन्टरनेट से एकत्र कर विषय - विशेषज्ञ के सामने परोस देता है जैसे वह न केवल विषय विशेष की सैद्धांतिक बातें जानता है बल्कि प्रायोगिक बारीकियां भी वो उसके 5 इंच की स्क्रीन पर देख पढ़कर सीख आ गया है।
सूचना के आसान उपायों की उपलब्धता से सुपर कंसलटेंट की भरमार हो गई है। फील्ड कोई भी हो... गूगल सर्च करके अर्ध सत्य का ज्ञान लेकर विषय-विशेषज्ञ के सामने प्रस्तुत होना इस कलयुग की घोर अवमानना है। सामान्य सिर दर्द में भी गूगल ज्ञान अर्जित कर सी.टी. स्कैन हेड की सलाह देने वाले सलाह-वीर अनगिनत उपलब्ध है। और गूगल डॉक्टर तो और भी अनमोल है। चिकित्सा विज्ञान का जो पाठ्यक्रम छात्र 5 से 10 साल पढ़कर भी अनिश्चित चिकित्सा विज्ञान में 2 धन 2 का 4 के नियम का सदैव सिद्ध नहीं कर पाते उसे स्वयंभू गूगल डॉक्टर चंद पंक्तियां पढ़कर अपना पूरा ज्ञान उड़ेल कर सुपर कंसलटेंट साबित होने की कोशिश करते हैं। इस पर हर्बल औषधि, मलहम, तेल, जूस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं प्रिंट मीडिया पर विज्ञापन ने हर व्यक्ति को स्वयंभू चिकित्सक बनने पर मजबूर ही कर दिया है। घुटने के दर्द की पुड़िया की दवाई, टाइफाइड की दवाई, पेट से पथरी ऑपरेशन निकालने का नाटक, जहर उतारना, नजर उतारना, पीलिया उतारना जैसे कालजई उपायों से मानव का हित कम, अहित अत्यधिक हो रहा है। कह सकते हैं कि महंगी मेडिकल सेवा के कारण यह हुआ है लेकिन चिकित्सा के महंगे होने के कारण महंगी मेडिकल शिक्षा, सटीक डायग्नोसिस के लिए महंगे उपकरण, वैधानिक लाइसेंसों की अनिवार्यता है और इतने जंजीरों से तो बेहतर है कि गूगल डॉक्टर ही बन जाए। जोखिम लेने का खतरा गूगल ज्ञान से कम हो जाएगा। क्या गूगल ज्ञान की रही सही कसर over-the-counter मेडिसिन वितरण ने पूरी कर दी है जो दवा विक्रेता अपने सेल काउंटर से करते हैं ? मधुमेह, उच्च रक्तचाप की औषधियां भी किराने की दुकान की भांति बिना डॉक्टरी सलाह पत्र के उपलब्ध हैं। हाल तो इतना बुरा हो गया है कि बिना डॉक्टर की सलाह के बैठक लेते रहने से जीवाणु और विषाणु की एक राक्षसी सेना खड़ी हो गई है जो साधारण दवाइयों से नियंत्रित नहीं होती है और नई औषधियों का रिसर्च कॉपीराइट उत्पादन मार्केटिंग कतई सस्ता नहीं पड़ता है। देश में शोध की निरंतर कमी बनी हुई है।
और अंत में... गूगल डाक्टर की सलाह को प्रामाणिक नहीं मान सकते हैं। यदि बुखार अथवा अन्य किसी भी शारीरिक तकलीफ है तो किसी चिकित्सक को दिखायें या अस्पताल जाएं। चिकित्सक की सलाह से ही दवाई का सेवन करें। और हां... बिना चिकित्सक की पर्ची के सीधे दवाई की दुकान से कभी भी दवाई लेकर नही खाएं। जब भी दवाई खरीदें.. उसकी एक्सपायरी तारीख जरूर देख लें और बिल लेना कतई न भूलें।
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डा. अनिल भदौरिया एम.बी.बी.एस. (एम.जी.एम. मेडिकल कॉलेज, इंदौर ), एम.पी.टी. (स्पोर्ट्स), एम.बी.ए.। वे सहायक संचालक, कर्मचारी राज्य बीमा सेवाएँ, श्रम विभाग, मध्य प्रदेश शासन में सेवारत है तथा वर्तमान में मुख्यालय, इंदौर में पदस्थ हैं।
डॉ भदौरिया की सेक्स एजुकेशन ( पीकॉक पब्लिकेशन, नई दिल्ली ) से एक पुस्तक प्रकाशित हुई है। उनके नई दुनिया, दैनिक भास्कर, अहा दुनिया, पत्रिका, जीमा (कलकत्ता) में अपने स्वास्थ्यपरक, यात्रा वृतांत, कविताओं व व्यंग्य आधारित आलेखों से प्रकाशित होते रहे हैं। इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन की इंदौर शाखा के अध्यक्ष रहे हैं तथा राष्ट्रीय स्तर पर भी विभिन्न पदों पर कार्य कर रहे हैं।