महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की जयंती पर प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक, लेखक  और वरिष्ठ पत्रकार श्री जयराम शुक्ल का विशेष आलेख । महाप्राण निराला की जयंती बसंत पंचमी को मनाई जाती है... तकनीकी कारणों से कल आलेख जारी नहीं कर सका.... आज आपके पठन हेतु प्रेषित है..   सम्पादक...   

 

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रखर पुंज थे महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

 

  • जयराम शुक्ल

 

भारतेन्दु ने देश की विवशता को देखते हुए इकट्ठा होकर रोने और  भारत दुर्दशाका आख्यान लिखकर जिस राष्ट्रीय चेतना की अलख जगाई, उसका परिष्कार भारत-भारती’ ‘एक फूल की चाह’ ‘विप्लव गायनसे लेकर जागो फिर एक बारऔर शिवाजी का पत्रके माध्यम से आम हिन्दी जन तक हुआ। 

 

 भारतेन्दु की अलख को अनेक कवियों ने स्वर दिया है, यथा मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन’, रामधारी सिंह दिनकरआदि अनेक कवियों के बीच छायावादी कविता में सबसे ऊँचा सुर और स्वर महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का था। 

 

जयशंकर प्रसाद ने अपने नाटकों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को झंकृत किया  तो निराला ने बस एक बार तू और नाच जा श्यामाका आह्वान किया। भारतीय स्वतंत्रता का बोध अतीत के पन्नों को पलटते हुए निराला ने कराया- जागो फिर एक बार 

 

आमतौर पर देशवासी यह मानने लगे हैं कि सर्वाइवल आफ द फिटेस्टका सिद्धांत दार्शनिक डार्विन का है। निराला इससे सहमत नहीं हैं। वे मानते हैं कि हजारों हजार वर्ष पहले कृष्ण की गीता में यह कहा गया है। 

 

 ‘निरालाकहते हैं- 

योग्य जन जीता है’/पश्चिम की उक्ति नहीं/गीता है-गीता है/ स्मरण करो बार-बार/जागो फिर एक बार। भारतीय अतीत की  गौरवशाली परंपरा का उन्हें जितना ज्ञान और बोध था, उतना अन्य किसी कवि की रचनाओं में व्यक्त नहीं हुआ। 

 

श्यामा का आहवान करते हुए वे कहते हैं- कितने ही हैं असुर चाहिए/कितने तुमको हार/लोगों को जाग्रत करते हुए कहते हैं - सिंही की गोदी से/छीनता रे शिशु कौन? मौन भी वह रहती क्या/रहते प्राण रे अजान/ 

 

निराला’  दूसरा उदाहरण भी पेश करते हैं कि एक बकरी भी अपनी संतान के छिनने पर तप्त आंसू बहाती है इसीलिए ये बार-बार जागने का संदेश देते हैं, यह संदेश विवेकानन्द का था- उत्तिष्ठ जाग्रत......। 

 

संसार में ऐसे बहुत कम कवि एवं कलाकार हुए हैं जिनका जीवन और साहित्य (कला) दोनों महान हैं। निरालाजीवन और साहित्य दोनों में महान थे। असाधारण कायिक गठन (ग्रीक देवता की तरह) असाधारण स्वर और सुर, महान् रचना कर्म, देशभक्ति, अध्यात्म, दर्शन, चिन्तन और अजीब तरह के फक्कड़ पन का नाम है निराला

 

 अपने जीवन में जितने दुख निराला ने झेले उतने दुःख किसी कलाकार कवि ने शायद ही झेले हो, परन्तु निरालाने कभी आँसूनहीं बहाए। सरोज स्मृतिउनका एक मात्र शोक गीत है और यह गीत संसार भर के शोकगीतों पर भारी है जिसमें उन्होंने आत्म भाव से स्वीकार किया है - दुख ही जीवन की कथा रही/क्या कहूं आज जो नहीं कही। धन्ये! मैं पिता निरर्थक था/कुछ भी तेरे हित कर न सका। उनकी प्रार्थनाओं में दैन्य नहीं, निराशा नहीं है। 

 

भारती की वंदना करते हुए भारती, जय विजय करेकी आकांक्षा करते हैं। वे वीणा वादिनी से प्रार्थना, अपने लिए नहीं, भारत के लिए करते हैं - प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव भारत में भर दे। निरालाने छंदों को तोड़ा, कविता को बंधन मुक्त किया लेकिन लय-ताल-रव-छन्द को नये ढंग से व्यक्त करने का आग्रह किया। 

 

वे शब्द-शिल्प कथ्य की नवीनता के एक मात्र कवि है- नव गति, नवलय, ताल-छंद नव/नवल कंठ, नव जलद मंद्र रव/ नव नभ के नव विहंग वृंद को/ नव पर नव स्वर दो। इतनी नवीनता सिर्फ निराला ने ही हिन्दी कविता को दी। कविता, कहानी, उपन्यास, रेखाचित्र, संस्मरण, अनुवाद सभी विधाओं को निराला ने नया रूप दिया।

 

 मिर्जा राजा जय सिंह के नाम  शिवाजी का पत्र राष्ट्रीय गौरव का अमूल्य दस्तावेज है। जिसमें पारस्परिक वैमनस्य और क्षुद्र स्वार्थ के लिए जय सिंह की भांति भारत को पराधीन बनाने वालों से सहयोग करने वाले लोगों की आँखे खोलने के लिए यह पत्र पर्याप्त भर नहीं, स्वाधीन भारत के लिए भी दिशा संकेत है। भाषा के कई स्तर इस पत्र कविता में मिलते है।

 

 ‘तुलसीदास और राम की शक्ति-पूजाउनके काव्य का चरमोत्कर्ष है। इन रचनाओं में उन्होंने आत्म-मुक्ति की साधना को नारी शक्ति-पूजा के माध्यम से व्यक्त किया है। निरालाभारतीय संस्कृति के सर्वोत्तम अंश के कवि हैं, परन्तु उन्होंने जमीन पर रहने वाले भिक्षुक, दीन, विधवा, पत्थर तोड़ने वाली, झींगुर, महगू, कुकुरमुत्ता को हासिए पर नहीं, केन्द्र में रखा।

 

 जिस दलित चेतना का परचम लहराने की कवायद आज के दलित लेखक कर रहे हैं, उनके बरक्श निरालाने उन दलितों के साथ जीवन साझा किया था। एकमेव भाव से निराला कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा और चतुरी चमार से एकात्म थे।

 

 ‘निरालाके काव्य में द्वैत नहीं है, जीवन में भी तमाम विसंगतियों के वावजूद वे द्विधा मुक्त थे। निरालाकी जीवन पद्ति रवीन्द्रनाथ के समीप थी। वे अच्छे गायक, वादक, कवि सब एक साथ थे। वे रवीन्द्र संगीत की तरह निराला-संगीत की रचना कर सके थे। परन्तु जन्मना और कर्मना विपरीत पृष्ठ भूमि के कारण वे रवीन्द्र की तरह सफल न हो सके।

 

 अपनों की दी हुई पीड़ा पर विफरे जरूर- वे कान्यकुब्ज कुल कुलांगार/ खा कर पत्तल में करें छेद/ परंन्तु हारे नहीं  इसलिए कि उनमें राष्ट्रीय चेतना के मूल भाव थे, जो वैयक्तिक्ता से परे थे।

 

 छायावादी कविता में जहाँ निराशा, करूणा और आत्म पीड़ा का साम्राज्य दिखता है, उनके बीच निराला एक मात्र ऐसा कवि हैं जिनकी कविता में ओज, प्रसाद, और सौंदर्य के गुण मौजूद हैं।

 

 ‘निरालाने पात्र और विषय के अनुसार भाषा को चुना- संध्या सुन्दरी, विधवा, जुही की कली आदि रचनाओं में जहाँ भाषा का औदार्य और गठन दिखायी पड़ता है, वही भिक्षुक तोड़ती पत्थर में खड़ी बोली का सौंदर्य दिखायी पड़ता है। 

 

तुलसीदास और राम की शक्ति पूजा में सामासिक और आभिजात्य भाषा का प्रयोग निराला को संस्कृत-साहित्य के करीब खड़ा कर देता है। आम बोल-चाल और गाली गलौज की भाषा से भी वे कुकुरमुत्ताकविता में परहेज नहीं करते- अबे, सुन बे, ओ गुलाब/खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट/डाल पर इतरा रहा कैपिटलिस्ट/घड़ों पड़ता रहा पानी/तू हरामी खानदानी।

 

निराला के काव्य पर बांग्ला साहित्य का प्रभाव है, वे रवीन्द्र, रामकृष्ण, विवेकानन्द और अरविन्द से प्रभावित हैं। उन्होंने हिन्दी अपनी पत्नी मनोहरा से सीखी थी। तुलसी के राम कभी ब्रहम ध्यान में लीन होते नहीं दिखते, निराला के राम पूरी पद्धति से ध्यान योग से शक्ति की आराधना कर वरदान प्राप्त करते हैं।

 

 ‘राम की शक्ति पूजाके राम मनुष्य अधिक हैं ईश्वर कम। यह शाक्त परंपरा का वैष्णवी परंपरा से निराला-संयोग है। निरालाभाषा, तेवर और शैली में ही प्रखर नहीं, व्यक्तित्व में भी अभी तक हिन्दी का कोई कवि उनके आगे नहीं है। अपनी बात तर्क और हठ पूर्वक मनवा लेने में  उनका कोई सानी नहीं।

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श्री जयराम शुक्ल 

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