ओलंपिक में अहिंसक “शूटिंग”

ओलंपिक में अहिंसक “शूटिंग”
* लक्ष्मीकांत शर्मा✍
शूटिंग और वो भी अहिंसक ! है न अचरज भरा ! हाल ही में आगज़नी और हिंसा की लपटों में पेरिस सहित फ़्रांस के कई शहर तबाह हो गये थे। उसी फ़्रांस की राजधानी पेरिस में ओलंपिक खेलों का आग़ाज़ हो चुका है । स्पोर्ट्स स्पिरिट तो देखिए ! एक ओर सीन नदी पर उद्घाटन हो रहा है और उसी पल पुल पर तोड़फोड़! लेकिन स्पिरिट के सामने बाधाओं की क्या बिसात ! इधर जबलपुर में ओलंपिक स्तर के एक लेखक हुए जो अपने लेखन की विधा को स्पिरिट कहते थे । वो विधा थी व्यंग्य विधा जिसमें सुविधा असुविधा का न कोई ख़याल और न कोई परवाह रखनी पड़ती है । उस व्यंग्यकार का नाम था हरिशंकर परसाई । परसाई अहिंसक हिंसा के पुजारी थे । यद्यपि वे अपने जीवन में पूजा पाठ से आजीवन दूर रहे । वे अपने शब्दों से अभेद्य शूटिंग करते थे । ग़ज़ब की अहिंसक हिंसा ! पाखंडी खिलाड़ी तिलमिला जाते थे और जैसा कि एक बार ओलंपिक खेल में तिलमिलाए हुए खिलाड़ियों ने विजेता टीम के खिलाड़ियों को सचमुच की हिंसा का शिकार बना लिया था , उसी तरह से परसाई के साथ भी हुआ ! लेकिन मन में स्पिरिट हो तो जीत तय है , जीत ही नहीं बल्कि कालजयी बनने की संभावना सिद्ध हो सकती है ।और अगर विजय न भी हो तो यह खेल भावना चित्त में योग भाव बनाए रखती है : क्या हार में क्या जीत में / किंचित् नहीं भयभीत मैं / संघर्ष पथ पर जो मिला / यह भी सही वह भी सही । शूटिंग भी ओलंपिक में शामिल है । कभी जबलपुर सहित मध्य भारत के जंगलों में बेतहाशा शूटिंग होती थी । इस तरह की शूटिंग अंग्रेज अधिकारी और राजे रजवाड़े किया करते थे । शूटिंग के अपने सनकी शौक़ में उन्होंने वन्यजीवन की शानदार समृद्धि का अंधाधुंध विनाश किया । मध्य भारत के उसी जबलपुर में दो उत्साही व्यक्तियों ने एक शूटिंग एकेडमी की स्थापना की । और नाम रखा “गन फॉर ग्लोरी” । अंग्रेजों और राजे महाराजों के गन से हुई शूटिंग में तो ज़हर की गोली निकलती थी जो किसी निर्दोष वन्य जीव की ज़ान लेती थी लेकिन इस शूटिंग एकेडेमी की गोली में “ग्लोरी” निकलती है । ट्रिगर वहाँ भी दबता था और ट्रिगर यहाँ भी दबता है । यहाँ शूटिंग के हीरे तराशे जाते हैं जो यश और कीर्ति की किताब में “पन्ना दर पन्ना” जोड़ते जाते हैं । हिन्दी के ग़ज़लग़ो ज़हीर क़ुरैशी फ़रमाते हैं : जो तराशे गए वो बतियाए / कितने हीरे खदान में बोले ! अच्छी ख़ासी पढ़ाई कर चुके थे प्रशांत जैन । चाहते तो शानदार नौकरी कर सकते थे । लेकिन जज़्बा था जबलपुर शहर को एक सौग़ात देने की, सो चल पड़े अकेले ! उधर एक बैंक में काम करती थीं मोनिका रेचल अग्रवाल स्पोर्ट्स स्पिरिट से भरी हुई । मन ने एक दिन विद्रोह कर दिया । नौकरी छोड़ी और उस राह चल पड़ीं जिस पर प्रशांत जैन नाम का युवक अकेले चल रहा था । दोनों ने मिलकर उद्यमिता का एक उनवान रचा जिसके सपनों का रेंज बहुत बड़ा है । यह शूटिंग एकेडमी ओलंपिक शूटिंग विजेता गगन नारंग की राष्ट्रीय शूटिंग एकेडमी से संबद्ध है ।यहाँ से तराशे गये हीरों ने देश विदेश में खूब चमक बिखेरी है। जबलपुर नगर निगम ने यहाँ के दो अंतरराष्ट्रीय शूटर्स का अभिनव नागरिक अभिनंदन तो किया लेकिन सरकार से एक बड़े शूटिंग रेंज के सहयोग की बहुत ज़रूरत है गन फॉर ग्लोरी को । संयोग से आज पेरिस ओलंपिक में भारत को शूटिंग का गोल्ड मेडल मिलने की उम्मीद है ।
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