प्रयागराज का ऐसा शक्तिपीठ जहां 'पालना' की होती है पूजा....
प्रयागराज। भारत एक ऐसा देश है जिसकी जड़ें धर्म से जुड़ी हैं। यहां हर शहर में कुछ ना कुछ अनोखा है। ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो पूरे देश में अनोखी कलाकृतियों और मान्यताओं के लिए जाने जाते हैं। कई मंदिर ऐसे हैं जो अपने रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। कई मंदिर ऐसे हैं जो अपनी मान्यताओं के लिए जाने जाते हैं। एक ऐसा ही मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हैं। इस मंदिर का नाम है अलोपी मंदिर।
प्रयागराज स्थित अलोपी बाग में देवी का एक ऐसा मंदिर है, जहां कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। वैसे तो मंदिरों में भगवान की मूर्ति की जाती है, लेकिन इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। यहां भक्तों का तांता लगता है और इस मंदिर की मान्यता देश भर में है। यह मंदिर कोई साधारण सा मंदिर नहीं है, बल्कि शक्तिपीठ है। तो आईए जानते हैं अलोपीबाग में स्थित 'अलोपी देवी मंदिर' के बारे में और जानते हैं क्या है इस मंदिर का माता सती से संबंध।
अलोपी मंदिर के नाम पर पड़ा मोहल्ले का नाम
इलाहाबाद के अलोपीबाग में अलोपी देवी मंदिर स्थित है। इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। यहां केवल एक पालना बनाया गया है, जिसे श्रद्धालु देवी का रूप मानकर पूजा करते हैं। इस मंदिर का नाम अलोपी देवी है। बताया जाता है कि इस देवी के नाम पर ही इस मोहल्ले का नाम अलोपी बाग पड़ा। इस मंदिर में भक्तों का तांता लगता है। भक्त मंदिर की परिक्रमा नंगे पैर करते हैं। मान्यता है कि यहां परिक्रमा करने से लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है।
मान्यता है कि यहां रक्षा-सूत्र बांधने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। ऐसे में यहां सामान्य दिनों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। वहीं, इन दिनों नवरात्रि को लेकर माता के दर्शन के लिए यहां हजारों की संख्या में भक्तों का तांता लगा हुआ है। भारी भीड़ को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने यहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं।
यहां नहीं है कोई मूर्ति
इस मंदिर की खासियत ये है कि इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। यहां बस एक पालना है, जो लटका हुआ है। इस पालने को भक्त माता का रूप मानकर इसकी पूजा करते हैं। अलोपी देवी मंदिर को माँ अलोपशंकरी का सिद्ध पीठ मंदिर के रूप में भी जानते हैं। यहां मंदिर में पालने के स्वरूप में देवी विराजमान हैं। ऐसे में भक्त पालने की ही पूजा कर माता का आर्शीवाद लेते हैं। ये खास मंदिर है इसलिए इस मंदिर को माता के अलोप रूप यानी माता अलोपशंकरी के रूप में पूजा जाता है।
वैसे इस पालने वाली माता को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं। इसमें से एक पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब सुदर्शन चक्र से शिव प्रिया सती के शरीर के टुकड़े किए तो इलाहाबाद में इसी जगह पर देवी के दाहिने हाथ का पंजा कुंड में गिरकर अदृश्य हो गया। यहां पर माता सती के पंजे नहीं मिले, इसकी वजह से यहां माता के अदृश्य रुप की ही पूजा की जाती है। पंजे के अलोप होने की वजह से ही यहां इस देवी मंदिर की स्थापना हुई और प्रतीक के तौर पर पालना रखा गया। इस मंदिर में हर रोज हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
कैसे पहुंचे यहां
वैसे तो प्रयागराज से सभी वाकिफ है। संगम पर कभी न कभी तो जाना ही हुआ होगा। अलोपीबाग मंदिर जाने के लिए आपको पहले प्रयागराज जाना होगा। ट्रेन से जाने के लिए पहले प्रयागराज जंक्शन रेलवे स्टेशन पहुंचे। वहां पहुंचकर किसी भी ऑटो की मदद से आप आसानी से अलोपीबाग पहुंच जाएंगे। आप बस से भी प्रयागराज आ सकते हैं और यहां ऑटो करके अलोपीबाग मंदिर पहुंच सकते हैं।
दर्शन का समय और शुल्क
प्रयागराज के प्रसिद्ध अलोपीबाग मंदिर में हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। माता के दर्शन का समय सुबह 6.00 बजे से शाम 800 बजे तक का है। ये मंदिर सुबह 6 बजे से ही खुल जाता है और रात आठ बजे ये बंद किया जाता है। बता दें कि अलोपी देवी मंदिर में प्रवेश और अलोपी देवी के दर्शन के लिए कोई भी शुल्क नहीं है यहाँ आप बिना किसी शुल्क के प्रवेश और देवी के दर्शन कर सकते है।