मंदिर: हिंदू समाज की आत्मा.... आलेख.... डॉ. बालाराम परमार 'हॅंसमुख'
मंदिर: हिंदू समाज की आत्मा
- डॉ. बालाराम परमार 'हॅंसमुख'
वर्तमान भारत में हिंदू धर्म के विरोध में कई तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हिंदू धर्म मंदिर और आराध्य देवी देवताओं के प्रति नकारात्मक चित्रण किया जा रहा है। यह नकारात्मक चित्रण नयी पीढ़ी के बीच हिंदू धर्म के प्रति गलत धारणाओं को बढ़ावा दे रहा है।
ऐसा अनर्थ हिंदू धर्म के ही पढ़े लिखे कुछ मुठ्ठी भर लोग षड्यंत्रकारी ताकतों के बहकावे में आकर अपने ही पूर्वजों के धर्म के प्रति असहिष्णुता बढ़ा रहे हैं। यह असहिष्णुता हिंदू धर्म के अनुयायियों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव को बढ़ावा दे रही है। आजकल सोशल मीडिया पर "मंदिर मानवता के दुश्मन", वीडियो प्रसारित हो रहा है जिसमें बौद्ध दर्शन का प्रचार - प्रसार करते हुए हिंदू धर्म के आराध्य प्रभु श्री राम के अस्तित्व पर सवाल खड़े किए गए हैं। देवी देवताओं को काल्पनिक बताया जा रहा है।
हिंदू धर्मावलंबी लोगों में गौरव और सम्मान का भाव जागृत हो। उत्तरोत्तर प्रगाढ़ हो। इस उद्देश्य से "मंदिर: हिंदू समाज की आत्मा" है का विश्लेषण किया जा रहा है।
मंदिर एक धार्मिक स्थल होते हैं, जहां पूजा-अर्चना और प्रार्थना की जाती है। मंदिर को देवस्थान या देवालय भी कहा जाता है। मंदिर में किसी आराध्य देवता की मूर्ति रखकर पूजा की जाती है। क्योंकि हिन्दू मूर्ति पूजक सनातन समाज हैं और सनातन धर्म में अवतार का सिध्दांत मान्य है। मंदिर में धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक नियमों का पालन में पदवेश उतारकर प्रवेश किया जाता है। आराध्य देव के सामने शीश झुकाने से मन को शांति मिलती है और अहंकार भाव विनम्र हो जाते हैं और परमार्थ सेवा के भाव जागृत होने लगते हैं।
पौराणिक ग्रंथों में विद्यमान साक्ष्यों के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में आराध्य देवी -देवताओं की पूजा अर्चना के लिए मंदिरों की स्थापना लगभग 10 हज़ार साल पहले से मानी जाती है। भारतीय उपमहाद्वीप पर पदार्पण सनातन हिंदू धर्म में मंदिर, जैन धर्म में देरासर, बौद्ध धर्म में चैत्य, सिख धर्म में गुरुद्वारा आदि पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह पर देवस्थान स्थापना का प्रचलन है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिन्तन किया जाए वह मंदिर है।
सनातन भारतीय संस्कृति की मान्यता है कि "हर घर एक मंदिर है। मंदिर को हिंदू समाज की आत्मा कहे जाने एवं होने के कई कारण हैं।
पहला - मंदिर हिंदू समाज के लिए एक धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र होते हैं। यहाँ लोग पूजा-अर्चना, प्रार्थना और मन की शांति के लिए अपने देवी-देवताओं की आराधना करते हैं। मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर कृतज्ञता प्रगटीकरण स्वरूप दान-पुण्य करते हैं। चढ़ावा चढ़ाते हैं।
दूसरा - मंदिर हिंदू समाज के लिए एक सामाजिक और सांस्कृतिक केंद्र होते हैं। यहाँ लोग एकत्रित होकर एक दूसरे के साथ दुःख - सुख की बातचीत करते हैं और अपने समाज की एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का बीजारोपण करते हैं।
तीसरा - मंदिर हिंदू समाज के लिए धार्मिक शिक्षा और ज्ञान के केंद्र होते हैं। यहाँ समाज के लोग वेद, पुराण, उपनिषद और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों का वाचन, अध्ययन और श्रवण करते हैं। व्याख्यान सुनते हैं, आख्यान करते हैं और अपना ज्ञान को बढ़ाते हैं। ऐसा मंदिर में वातावरण तैयार करने का उद्देश्य आने वाली पीढ़ी को संस्कारवान बनाना है।
चौथा - मंदिर हिंदू समाज के लिए एक कला और संस्कृति के केंद्र होते हैं। यहाँ लोग स्थापत्य कला का प्रदर्शन करते हुए पद, उत्कृष्ट देवालय की रचना को आकार देते हैं । गीत, नृत्य, चित्रकला और अन्य कलाओं का प्रदर्शन करते हैं और अपनी संस्कृति को जीवंत रखते हैं। युगों - युगों से अविरल धारा प्रवाह से बहती आयी इसी संस्कृति और सभ्यता को नई पीढ़ी आगे बढ़ाती है। सनातन बनाती हैं। अजर, अमर, अविनाशी और शाश्वत बनाती हैं।
पांचवां - मंदिर हिंदू समाज के लिए एक सामाजिक सेवा का केंद्र होते हैं। हिंदू धर्म में दूसरों की मदद को उच्च कोटि का मानवीय मूल्य माना गया है। यहाँ लोग गरीबों, असहायों और जरूरतमंदों की मदद दान दक्षिणा देकर करते हैं । यही जन सेवा है। यही ईश्वर भक्ति है।
समतामूलक समरसता रचने की दृष्टि से अन्य धर्मालंबियों के संज्ञान में लाया जाता है कि यदि आपको लगता है कि हिंदू धर्म के भगवान काल्पनिक है तो आप मत मानिए। हिंदू के भगवान और देवी देवता कैसे हैं, वह हिंदू धर्मावलंबी का विषय है। आप अपने धर्म के हिसाब से अपने आराध्य की पूजा अर्चना कीजिए । संविधान के अनुच्छेद 10 में विचार, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है । अनुच्छेद 25 में अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार-प्रसार की स्वतंत्रता है । इस स्वतंत्रता का सीधा अर्थ यह है कि नागरिक को दूसरे धर्म की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने का किसी भी स्तर पर अधिकार नहीं है। जो दूसरे धर्म पर उंगली उठाता है, वह मूर्ख किस श्रेणी में गिना जाता है। दूसरे हिंदू धर्म की आलोचना कर रहे हैं। भला बुरा कह रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है दूसरे धर्म पर उंगली उठाना । भारत का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है। दूसरे धर्म का विरोध और देवी देवताओं को भला बुरा कहकर आप संविधान का अपमान कर रहे हैं, जिसे बामसेफ, अवाक्स और भीम आर्मी अपने आराध्य बाबा साहब की देन मानते हैं। बाबा साहब ने कभी किसी धर्म का अपमान नहीं किया। उन्हें लगा कि 'मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ लेकिन हिंदू में मारूंगा नहीं।' इसलिए उन्होंने अपने अंतःकरण से दूसरा धर्म अंगीकार किया। अतः बाबा साहब के अनुयायी बाबा साहब के द्वारा अंगीकार किए गए धर्म के अनुसार अपना सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक विकास करें। हिंदू धर्म के अनुयायी ही नहीं है तो फिर आप हिंदू धर्म की मान्यताओं भला बुरा कह कर किस धर्म का निर्वाह कर रहे हैं? जब आप हिंदू धर्म के मंदिर की ओर एक उंगली उठा रहे हैं तो तीन उंगली आपकी ओर भी उठ रही है? डॉ भीमराव अम्बेडकर और उनके संविधान का अपमान कौन कर रहे हैं, भारत की 140 करोड़ जनता देख - सुन रही है। संविधान कहता है कि 'भारत की धरती पर जन्म हर बच्चा मूल निवासी है। इस धरती के संसाधन के उपयोग करने का सबको बराबर अधिकार है'।
मंदिर हिंदू समाज के पवित्र स्थान थे, हैं और अनंत काल तक रहेंगे। हिंदू देवी-देवता हिंदू समाज के आराध्य हैं। सनातन धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार पूजा अर्चना करते हैं। यह हिंदुओं का संवैधानिक अधिकार है।
अतः मंदिर, हिंदू समाज के लिए एक धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शिक्षात्मक और सामाजिक सेवा का केंद्र बिंदु होने की वजह से मंदिर हिंदू समाज की आत्मा है। क्योंकि मंदिर में परमात्मा का वास होता है। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा, विष्णु और महेश सृष्टि आरंभकर्ता हैं। उन्हीं पालनहार की इच्छा और योजना के अनुसार मंदिर बने हैं। मंदिर खड़े हैं। मंदिर अड़े हैं। मंदिर अटल हैं।
अनवरत धर्म ध्वजा फहरा रही है। फहराती रहेगी।
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डा. बालाराम परमार "हंसमुख" सामाजिक समरसता क्षेत्र में कार्यरत हैं।