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आज का चिंतन

  • संजय अग्रवाल  

संघर्ष, शांति, संतुष्टि

 

संघर्ष क्या है

एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध।

जीवन में रुकावट दूसरों के कारण कम,

और स्वयं के विचारों के कारण

ज्यादा होती है।

स्वयं के विचार, कार्य और

मानसिकता को हर क्षण,

सजग और सचेत रहते हुए,

 पूर्ण रूप से,

सही रूप में हम रख पाएं,

यह सार्थक जीवन जीने के लिए

बहुत आवश्यक होता है।

 

शांति

जीवन में क्लेश और अशांति

हमारी प्रगति के

सबसे बड़े व्यवधान होते हैं।

दूसरों से क्लेश ना हो

और आंतरिक शांति बनाए रखने में

हम सक्षम हों,

इतनी क्षमता हमारे अंदर

अवश्य ही होनी चाहिए।

अनावश्यक विरोध से हम

स्वयं को बचाकर और

मन की शक्ति को

एकाग्र कर के ही शांत और

स्थिर अवस्था में रह सकते हैं।

 

संतुष्टि

यह हमारे मन की

वह अवस्था होती है,

जब हम अपने कार्यों के प्रति

पूर्ण प्रतिबद्धता और समर्पण से

अपना अधिकतम प्रयास करते हैं।

यदि हमारी ओर से प्रयास में

कुछ भी कमी रह जाए तो

हमें संतुष्टि की प्राप्ति

नहीं होती है।

 

क्या करें

अपने संघर्षों में,

अपनी आंतरिक शांति को

बनाए रख कर,

हम अपना अधिकतम

प्रयास करते हुए,

अपना सर्वस्व अर्पण कर दें,

तभी हमें

संतुष्टि प्राप्त हो सकती है

और यही अभीष्ट होता है।

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श्री संजय अग्रवाल आयकर विभागनागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्कसंवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों के सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं