आपका दिन शुभ हो... मंगलमय हो... आज का चिंतन.......................... ............... संजय अग्रवाल

आपका दिन शुभ हो... मंगलमय हो...
आज का चिंतन
* संजय अग्रवाल
रिश्ते और क्लेश
आपसी रिश्तों में
प्यार होता है तो तकरार भी
मधुरता होती है तो क्लेश भी
संवाद होता है तो विवाद भी
निकटता होती है तो दूरी भी
और भी सब कुछ होता है।
कैसे कैसे रिश्ते
जो रिश्ते व्यवसायिक
या अनिवार्य होते हैं,
जैसे ऑफिस, परिवार,
पड़ोस आदि,
उनके नियम अलग होते हैं।
लेकिन जो रिश्ता हम अपनी
स्वेच्छा से बनाते हैं
जैसे मित्र, परिचित इत्यादि
उसमें हम अपनी सुविधा
और अनुकूलता देख लेते हैं,
सामंजस्य बना लेते हैं
अनिवार्य रिश्तों में समस्या
ऐसे रिश्तों में हम माता-पिता
भाई बहन, पुत्र पुत्री
अधिकारी एवं अधीनस्थ
(Boss and subordinate)
और इसी प्रकार के
सभी रिश्तों को ले सकते हैं।
हम यह देखते हैं कि
जो रिश्ता हमारा
सबसे करीबी होता है
उनसे ही हमारा अधिकतम
विवाद या क्लेश होता है।
The amount of conflict is directly proportional to the degree of nearness in relation
क्लेश के कारण
वस्तुत: हमने
अपना अधिकांश समय
अपने माता-पिता
या जीवन साथी
या बच्चों के साथ
गुजारा होता है
और उनके बारे में
छोटी से छोटी बात,
उनकी हर एक आदत,
उनकी सोच,
हर स्थिति में उनका व्यवहार,
हमें भली भांति ज्ञात होता है,
और हमारे मन में
उनकी सोच और
व्यवहार को लेकर
हमारी अपनी
मजबूत धारणाएं
बन जाती है।
और यही पूर्वाग्रह उनके प्रति
हमारे आगे के व्यवहार को
बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
क्लेश का निवारण
हमें प्रकृति की,
अनजान लोगों की,
और परिस्थितियों की,
सब बातों की,
संपूर्ण स्वीकार्यता होती है
उनसे हमारा कभी
कोई क्लेश नहीं होता
क्योंकि उनसे हमें
कोई अपेक्षा नहीं होती है
जबकि करीबी रिश्तों में
हमारी अपेक्षाएं
असीमित होती है
हम उन पर अपना
पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं।
अपने हिसाब से उनका
कथन और व्यवहार चाहते हैं
जो कि हमेशा संभव नहीं है
हो भी नहीं सकता
और यही समस्या की
मूल जड़ है।
तो यहां यह आवश्यक है कि
हम उनसे अपनी अपेक्षाओं
को समाप्त कर दें
उन्हें उनके मूल स्वरूप में
पूरी तरह स्वीकार करें
उनसे वैसा ही सामंजस्य रखें
जैसा कि प्रकृति के
अन्य अवयवों के साथ
हम सहज रूप में रखते हैं।
हां हम अपनी बात को
उनके सामने
प्रस्ताव के रूप में
अवश्य ही रख सकते हैं
रखना भी चाहिए
किंतु उसको पूरी मान्यता मिले
यह जिद कभी नहीं होनी चाहिए।
अस्वीकार्यता ही दुख है
और स्वीकार्यता,
पूर्व स्वीकार्यता ही सुख है।
मुझे जांचना होगा कि
मैं अपने करीबी रिश्तों में
पूर्ण स्वीकार्यता को
अपना रहा हूं क्या?
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श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं। इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं। मानवीय मूल्यों और सम्बंधों के सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं।