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आज का चिंतन

                                                  * संजय अग्रवाल

 

लगाव और अलगाव

 

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह।

इनमें मोह यानी लगाव।

लगाव या अटैचमेंट

मनुष्य की

स्वाभाविक भावना होती है।

 

लगाव कैसे होता है

लगाव से ही

प्रेम की

शुरुआत होती है

और यदि लगाव में

एकाधिकार की

चेष्टा या भावना

आ जाए तो वह

मोह के रूप में

बदल जाता है।

वहीं दूसरी ओर

लगाव हो,

किंतु उसमें

स्वार्थपूर्ण अपेक्षा या

एकाधिकार का दंभ

ना हो तो

वह प्रेम में

बदल जाता है।

मोह में व्यक्ति अंधा

हो जाता है

किंतु प्रेम में व्यक्ति

आनंद की स्थिति में

पहुंच जाता है।

 

लगाव कब घातक होता है

लगाव यदि मोह में

बदल जाए,

ऐसा मोह

जो स्वार्थी हो,

तो वह घातक

हो सकता है।

 

किंतु लगाव की परिणति

यदि निर्मल और निस्वार्थ

प्रेम में होती है तो

वह अलौकिक हो जाता है।

प्रेम समर्पण का दूसरा नाम है,

ईश्वर का मूर्त रूप है।

निष्णात प्रेम,

लगाव और अलगाव,

दोनों से ही

परे होता है।

 

लगाव और अलगाव

यदि लगाव है

और

उसमें अपेक्षा भी है,

तो यह स्वाभाविक

और अनिवार्य होता है

कि उस रिश्ते में हरेक

अपेक्षा की पूर्ति

नहीं हो पाती है

सदैव हो भी नहीं सकती।

और जब भी स्वयं की

अपेक्षा के अनुसार

कार्य नहीं होगा

तो सामने वाले

व्यक्ति के प्रति

वैसा लगाव भी

बना नहीं रहेगा।

और तब वह स्थिति

धीरे धीरे लगाव से

अलगाव में बदल जाएगी।

 

अलगाव से कैसे बचें?

जैसे प्रकाश की

अनुपस्थित ही

अंधकार की स्थिति

पैदा कर देती है

वैसे ही लगाव की

क्रमिक न्यूनता और

अंततः रिक्तता,

अलगाव को जन्म

दे देती है।

अतः लगाव ऐसा हो

जो निर्मल निस्वार्थ

प्रेम में बदल जाए,

समर्पण में बदल जाए,

अपेक्षा रहित हो जाए,

बदले में पाने की भावना

से रहित हो जाए,

तो ही अलगाव

की स्थिति से

बचा जा सकता है।

 

मुझे जांचना होगा कि

सामने वाले से

मेरे लगाव की

परिणति

निस्वार्थ और निर्मल

प्रेम में हो रही है?

या अपेक्षा और

मेरा ही एकाधिकार है,

के दंभ में?

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  •  श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं. वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों के सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं