आज का चिंतन

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सोच का अंतर

 

दो व्यक्तियों की सोच 

कभी भी 💯 % एक समान 

हो नहीं सकती।

कारण यह होता है कि 

हर व्यक्ति की पारिवारिक

शैक्षणिक, सामाजिक 

स्थिति और पृष्ठभूमि 

भिन्न-भिन्न होती है।

 

समझ और स्वीकार्यता

यदि हमारी समझ इतनी 

विकसित हो गई है कि 

दो लोगों में सोच का अंतर 

तो रहेगा ही, तो दूसरे की 

सोच को स्वीकार करना 

हमारे लिए आसान 

हो जाएगा और फिर 

उससे तालमेल बनाना 

और भी आसान 

हो जाता है।

 

थोपना

कोई भी अपनी सोच 

और समझ को व्यक्त 

ही कर सकता है किंतु 

वह दूसरे को पूरी तरह 

समझ में आ जाए और 

वह पूरी तरह इसे 

मान्यता दे, यह हर बार 

संभव नहीं होता है।

अपनी सोच को दूसरे पर 

थोपने के निरर्थक प्रयास में

हम अपनी ढेर सारी ऊर्जा को 

व्यर्थ कर देते हैं और 

इसका हासिल कुछ नहीं

क्योंकि दूसरे की सोच में बदलाव 

हमारे समझाने से नहीं बल्कि 

उसकी स्वयं की समझ में 

वृद्धि होने से ही हो सकता है

इसका और कोई दूसरा 

उपाय नहीं होता है।

 

सम्मान 

दूसरे की सोच के 

कारण और स्थितियों को

समझना और फिर उसका 

यथोचित सम्मान करना ही

हमारी परिपक्वता

की निशानी है। 

दूसरे की पूरी बात 

धैर्य से सुनना, उसे समझना 

और फिर अपनी बात को 

विनम्रता और दृढ़ता से 

रख देना ही पर्याप्त 

और उचित होता है।

 

आईए देखते हैं कि 

सोच के अंतर को लेकर

हमारा व्यवहार कैसा होता है ?

 

संजय अग्रवाल

*संपर्क संवाद सृजन*

श्री संजय अग्रवाल आयकर विभाग, नागपुर में संयुक्त आयकर आयुक्त हैं

 वे हमेशा लोगों से सम्पर्क और संवाद करने के लिये इच्छुक रहते हैं

 इसीलिए वे संपर्क, संवाद और सृजन में सबसे अधिक विश्वास करते हैं

  मानवीय मूल्यों और सम्बंधों का सूक्ष्म विश्लेषण के चितेरे श्री अग्रवाल "आज का चिंतन" नियमित रूप से लिख रहे हैं