राष्ट्रकवि सत्तन ने सतीश जोशी की

किताब लोकार्पण में सुनाए रोचक किस्से

रामचंद्र गुरुजी ने छह महीने तक लगाया छात्र की बुशर्ट का बटन 

 

कीर्ति राणा, इंदौर।    राष्ट्रकवि सत्यनारायण सत्तन जिस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता हों तो आमंत्रित श्रोता यही चाहते हैं कि बस “गुरु” बोलते रहें और हम ठहाके लगाते रहें। गुरु जितनी देर बोले, जितना बोले, उसमें कोई भी बात बेकाम की तो होती ही नहीं। 

आज की पीढ़ी को तो पता भी नहीं होगा कि इंदौर शहर में एक ऐसे भी शिक्षक हुए हैं जो रिटायर होने के बाद तंग बस्तियों के बच्चों को उनकी बस्तियों, कृष्णपुरा की छतरी पर एकत्र कर उन्हें पढ़ाते और अपनी पेंशन की राशि इन बच्चों की शैक्षणिक जरूरतें पूरा करने पर लुटा देते थे। यही सारे कारण थे कि शिक्षक रामचंद्र जोशी जी को इंदौर के गांधी के नाम से भी पुकारा जाता था। इन्हीं रामचंद्र जोशी के पुत्र-पत्रकार सतीश 

जोशी (6पीएम) की दो किताबों के लोकार्पण समारोह के मुख्य वक्ता सत्तन गुरु थे। मंच से बोलते हुए खुद को रामचंद्र जोशी का निकृष्ट छात्र बताने वाले सत्तन गुरु ने एक तरह से खुद को अपने गुरु भाई के समारोह में शामिल होना बताया। 

    सत्तन गुरु ने खुद ही खुलासा भी किया कि वो निकृष्ट छात्र इसलिये कहते हैं कि गुरु जी से मैं हिमाविक्र 1 कृष्णपुरा स्कूल में 6 से 8 वीं तक पढ़ा हूं। मुझे पहलवानी का शौक था, कसरती बदन, गले के गंडे-ताबीज, चौड़ा सीना दिखाना भी अपनी अदा थी। स्कूल जाता तो शर्ट का पहला बटन खुला रखता था। प्रार्थना में पहलवानी लटके-झटके के साथ लाइन में खड़ा हो जाता। 

प्रार्थना शुरु करने के पहले गुरु जी लाइन में लगे छात्रों के बीच से होते हुए मेरे पास आते। अपनी जेब से बटन निकालते और कमीज में लगा कर चले जाते, फिर प्रार्थना शुरु करते। मैं रोज पहला बटन खोल कर जाता, गुरुजी आते, मेरी शर्ट का बटन लगाते, फिर प्रार्थना शुरु होती। गुरुजी ने कभी एक शब्द नहीं कहा, ना समझाइश दी, मेरी आदत और उनकी सदाशयता। लगातार छह महीने ये क्रम रोज चला। आखिरकार  एक दिन मैंने गुरुजी का हाथ पकड़ा, मेरी आंखों में आंसू थे। उनसे कहा... गुरुजी कल से आप को बटन नहीं लगाना पड़ेगा, मैं लगा कर आऊंगा। उन्होंने पूछा-  बेटा सच बोल रहा है।  मैंने पांव छू कर कहा - आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगा।

      ऐसे शिक्षक अब कहां मिलते हैं ? उन्होंने पूरा जीवन त्याग किया और बस्तियों के बच्चों को शिक्षा दान किया। उनका पुत्र ये सतीश पत्रकार से कवि-लेखक होकर हमारी जमात में आ गया है। पत्रकारिता आसान हो सकती है लेकिन कविता करना आसान नहीं। कवि वहां तक सोच लेता है जहां रवि (सूर्य) भी नहीं पहुंच पाता। अब किसी कार्यक्रम में कवि ने अति सुंदर महिला को ताड़ लिया। वो सुंदरी बेखबर, कविराज के मन में विचार उमड़ने-घुमड़ने लगे, काव्य कल्पनाएं आसमान छूने लगी, सुंदरी को पता ही नहीं। मैं इसे कवि की भाव हिंसा मानता हूं। 

कविता को जितना आसान माना जा रहा है, उतनी आसान नहीं है। कविता दिल की हूक से यदि नहीं उठती तो तड़पते क्रोंच पक्षी को देखकर डाकू रत्नाकर का दिल नहीं रोता और न ही पहली कविता का जन्म होता। कविता ने डाकू को महर्षि वाल्मिकी बना दिया। संत कबीर-तुलसी जैसे कवि हैं क्या आज? सैकड़ों साल पहले उस मां ने तुलसी जैसा बच्चा इस संसार को दिया। तुलसी बाबा तो विदा हो गए लेकिन उनका लिखा अमर है। कुछ भी उटांग-पटांग लिख कर कवि कहलाना आसान हो सकता है लेकिन आज है क्या तुलसीदास समान कवि।

 

गीले-सूखे कचरे में पड़े रहते हैं बड़े-बड़े नेता 

     सत्तन गुरु धारा प्रवाह बोल रहे थे। अब उनके निशाने पर थे आए  दिन अखबारों में बड़े - बड़े विज्ञापन देकर महिमामंडन कराने वाले स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय नेता । गुरु ने चुटकी ली..... कौन देखना पसंद करता है इनको, दूसरी सुबह पोहे, कचोरी के तेल चढ़े अखबारी कागज वाले ये नेता कूड़े की बाल्टी का हिस्सा बन जाते हैं। आज तक रामायण के पन्ने पर, ओम जय जगदीश हरे आरती के पन्ने पर किसी को पोहे-कचोरी खाते देखा क्या। बड़े से बड़े नेता की औकात दूसरे दिन का सूरज निकलते-निकलते स्वच्छ इंदौर के गीले-सूखे कचरे में नजर आती है। 

पत्रकार सतीश जोशी के पुत्र विनय ने कहा मैंने दादाजी को तो नहीं देखा लेकिन पापा से दादी से और शहर के कई लोगों से उनके विषय में सुना है। राजबाड़े में तब पेंशन कार्यालय से दादाजी की पेंशन लाने के लिये दादी मुझे टेंपों से ले जाती, मेरी जिद रहती कि आते समय ऑटो में बिठा कर लाना। दादी हर बार कोई ना कोई बहाना बना कर टेंपो में ही लेकर आती थी। एक बार जब खूब मचल गया तो उन्होंने समझाया बेटा ये पैसा उन बस्ती के बच्चों को देते हैं, कम पड़ जाएगा। उस छोटी सी उम्र में मुझे परिवार का त्याग, दादाजी के काम और पापा के श्रमजीवी पत्रकार होने का मतलब समझ आने लगा था।

 

आत्मशोधऔर बस जिंदगी गुलजार है

   कोठारी कॉलेज में पत्रकार जोशी की दो पुस्तकों आत्मशोधऔर बस जिंदगी गुलजार है (एक मप्र साहित्य अकादमी ने प्रकाशित की है) का लोकार्पण करने के साथ ही मुख्य वक्ता सत्तन गुरु के साथ भोपाल से आए आकाशवाणी-दूरदर्शन के ख्यात पत्रकार-लेखक विनोद नागर, प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, अपने जमाने के सुप्रसिद्ध वक्ता वीरेंद्र नानावटी, पत्रकार संजय लुनावत, पीथमपुर औद्योगिक संगठन अध्यक्ष गौतम कोठारी, प्रदीप जोशी और औदुम्बर ब्राह्मण समाज के पदाधिकारियों ने भी संबोधित किया।

 

न्यूज़ सोर्स : कीर्ति राणा