प्रोस्टेट कैंसर की प्रारंभिक और सटीक पहचान के लिए

एम्स भोपाल में नवीन शोध जारी  

 

     भोपाल। प्रोस्टेट कैंसर दुनिया भर में पुरुषों में दूसरा सबसे आम कैंसर है । वर्तमान में, डॉक्टर स्क्रीनिंग के लिए प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन (PSA) टेस्ट का उपयोग करते हैं, लेकिन प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन स्तर, संक्रमण या प्रोस्टेट ग्रंथि के बढ़ने जैसी गैर- कैंसर संबंधी स्थितियों के कारण भी बढ़ सकता है। इससे अनावश्यक बायोप्सी और रोगियों में अनावश्यक मानसिक तनाव उत्पन्न हो सकता है। इस समस्या के समाधान के लिए भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में प्रोस्टेट कैंसर एंटीजन-3 (PCA3) नामक अधिक सटीक परीक्षण का मूल्यांकन किया जा रहा है। प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन के विपरीत, प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन-3 विशेष रूप से प्रोस्टेट कैंसर से संबंधित होता है और इसे यूरिन परीक्षण के माध्यम से पहचाना जा सकता है, जिससे यह अधिक विश्वसनीय स्क्रीनिंग विधि साबित हो सकती है। अनुसंधान से संकेत मिलता है कि प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन-3 अनावश्यक बायोप्सी को कम करने और कैंसर की गंभीरता को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है। यह अध्ययन, जिसका शीर्षक "पीसीए3 का उपयोग करके प्रोस्टेट कैंसर के विभिन्न चरणों का निदान: मध्य भारत-आधारित पायलट अध्ययन" है, डॉ. देबप्रोसित कर्माकर के नेतृत्व में किया जा रहा है, जिसमें बायोकैमिस्ट्री विभाग से डॉ. सुखेस मुखर्जी और यूरोलॉजी विभाग से डॉ. केतन मेहरा मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं।

     एम्स भोपाल की शोध टीम इस अध्ययन के माध्यम से प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन-3 और पारंपरिक प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन परीक्षण की तुलना कर रही है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि भारतीय मरीजों के लिए कौन सा परीक्षण अधिक प्रभावी है। यदि यह परीक्षण सफल होता है, तो यह भारत में प्रोस्टेट कैंसर की स्क्रीनिंग और उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, जिससे हजारों पुरुषों को लाभ होगा और कैंसर की प्रारंभिक एवं सटीक पहचान संभव हो सकेगी। इस महत्वपूर्ण अध्ययन पर भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह का मानना है कि प्रोस्टेट कैंसर का प्रारंभिक और सटीक निदान अनगिनत लोगों की जान बचा सकता है। यह शोध भारत में कैंसर स्क्रीनिंग विधियों को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस अध्ययन के निष्कर्षों से बेहतर निदान प्रोटोकॉल विकसित करने में मदद मिलेगी, जिससे अनावश्यक बायोप्सी और चिकित्सीय हस्तक्षेप से जुड़ी जटिलताओं को कम किया जा सकेगा। उन्होने विश्वास व्यक्त किया कि एम्स भोपाल की शोध टीम भारत में कैंसर निदान के क्षेत्र में नवाचार और रोगी देखभाल में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है और इस शोध कार्य में सफलता जरूर मिलेगी।