14 अप्रैल : डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर विशेष – बाबासाहेब को आज समझने की जरूरत है .................. डॉ. चन्दर सोनाने

सरोकार
14 अप्रैल : डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर विशेष –
बाबासाहेब को आज समझने की जरूरत है
- डॉ. चन्दर सोनाने
भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के इन्दौर के पास महू छावनी में हुआ था। पिता रामजी सूबेदार और माता भीमाबाई कै चौदहवें रत्न थे भीवा। मात्र 65 वर्ष की आयु में 6 दिसम्बर 1956 को भीमराव अम्बेडकर का परिनिर्वाण हुआ। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपनी अल्पआयु में देश के लिए इतने काम किए कि उसको लिखने बैठे तो वह अन्तहीन रहेगा। आज जरूरत है बाबासाहेब के कार्यों और उनके उद्देश्यों को समझने की। संकेत में ये कहा जा सकता है कि बाबासाहेब के योगदान को कभी देश भूल नहीं पायेगा।
शिक्षा के प्रति समर्पित
बड़ौदा महाराजा द्वारा जून 1913 से जून 1916 तक 3 साल के लिए प्रतिभाशाली भीमराव को विदेश में शिक्षा के लिए स्कॉलरशीप दी गई। 15 जून 1913 को बम्बई से पानी के जहाज द्वारा युवा भीमराव अमेरिका के लिए रवाना हुए। उन्होंने 21 जुलाई 1913 को न्यूयार्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया। भीमराव ने अमेरिका की चकाचौंध से बचते हुए शिक्षा प्राप्त करने के लिए घोर साधना की। सन 1915 में उन्हें प्राचीन भारत मे व्यापार विषय पर थीसीस लिखकर कोलम्बियो यूनिवर्सिटी से एम.ए की डिग्री प्राप्त की। मई 1916 में डॉ. गोल्डन वेजर के मानववंश शास्त्र सेमिनार में अपना लंबा रिसर्च पेपर भारत में जातिप्रथा पढ़ा। भीमराव एक साथ दो थीसीस पर काम कर रहे थे। उनका दूसरे रिसर्च प्रबंध का विषय था भारत के राष्ट्रीय मुनाफे का बंटवारा : एक ऐतिहासिक और विवेचनात्मक अध्ययन। इसे जून 1916 में पीएचडी के लिए स्वीकृत किया गया।
एक साथ दो डिग्री
न्यूयार्क में अपनी शानदार सफलता के बाद डॉ. अम्बेडकर का मन लंदन की ओर आकर्षित हुआ, जो उस समय दुनिया में अध्ययन का प्रमुख केन्द्र था। डॉ. अम्बेडकर ने अक्टूबर 1916 में इकोनोमिक्स में स्टडी के लिए लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में और बैरिस्टर के लिए कानून में स्टडी में लिए ग्रेज इन में प्रवेश लिया। उस समय दुनिया के प्रसिद्ध कानून विशेषज्ञ यहीं पर पढ़ने जाते थे। किन्तु आर्थिक तंगी के कारण उन्हें पढ़ाई बीच में छोड़कर 21 अगस्त 1917 को वापस भारत आना पड़ा।
ऐतिहासिक महाड़ आंदोलन
1924 में कोलाबा जिले के महाड़ गांव की नगरपालिका ने चवदार तालाब के पानी का उपयोग करने का अधिकार अछूतों को दिया। लेकिन, सवर्ण हिन्दुओं के डर के कारण अछूत लोग तालाब के पानी को छूने की हिम्मत भी नहीं कर पाते थे। सवर्ण हिन्दूओं ने तय कर दिया था कि किसी भी हालत में अछूतों को तालाब का पानी पीना तो दूर छूने भी नहीं देंगे। आखिर इस अधिकार को पाने के लिए कोलाबा जिले के प्रमुख अछूत नेताओं ने 19 और 20 मार्च 1927 को महाड़ में डॉ. अम्बेडकर की अध्यक्षता में दलित जाति परिषद की ओर से एक सभा का आयोजन किया। उसमें तय किया गया कि 20 मार्च की सुबह चवदार तालाब से पानी पीने के अधिकार को व्यवहारिक रूप दिया जाए। डॉ. अम्बेडकर और अछूतों के लिए एक महत्वपूर्ण और क्रान्तिकारी घटना थी। हजारों लोगों का यह जुलूस शांतिपूर्वक तालाब के किनारे पहुंचा और उन्होंने तालाब का पानी पिया। इस प्रकार उन्होंने तालाब का पानी पीकर अमानवीय, अन्याय और भेदभाव की बेड़ियों को तोड़ डाला। इस महाड़ सत्यागृह से अछूतों में संगठन और संघर्ष का बिगुल बज गया। हालांकि महाड़ सत्यागृह के आद अछूतों पर हमला भी किया गया। डॉ. अम्बेडकर ने 3 अप्रैल 1927 को बहिष्कृत भारत नामक एक दूसरे साप्ताहिक अखबार की शुरूआत की। इस अखबार के जरिए डॉ. अम्बेडकर ने विरोधियों को करारा जबाव दिया।
*मनु स्मृति को जलाया -*
भारत के इतिहास में 25 दिसम्बर 1927 का दिन हमेशा याद रखा जायेगा। उस दिन डॉ. अम्बेडकर ने मनु के काले कानूनों की किताब मनु स्मृति को आग के हवाले कर हिन्दूओं के सामाजिक ढांचे में बदलाव लाने की पुरजोर मांग की। महाड़ के सम्मेलन और मनु स्मृति को जलाने के दूरगामी परिणाम हुए। भारत के इतिहास में अछूतों में सामाजिक जागृति के लिहाज से यह एक ऐतिहासिक दिन था। इसी प्रकार डॉ. अम्बेडकर ने नासिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश के लिए भी 2 मार्च 1930 को सत्यागृह किया और सफलता प्राप्त की।
पूना पैक्ट
गाँधी जी को जब कम्युनल अवार्ड का पता चला तो उन्होंने 20 सितम्बर 1932 से यरवदा जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया। गांधी जी के आमरण अनशन से देशभर में हाहाकार मच गया। गांधी जी के प्राण बचाने के लिए चारों ओर से बाबा साहब पर दबाव आना शुरू हो गया। डॉ. अम्बेडकर ने समझोते के लिए 10 शर्तें रखी। इस पर काफी चर्चा हुई। गांधी जी और अम्बेडकर की भेंट भी हुई। हिन्दू नेताओं की अनेक बार बैठकें हुई। 24 सितम्बर 1932 को पूना के यरवदा जेल में गांधी जी और अम्बेडकर के बीच समझोता हुआ, वह पूना पैक्ट के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस पूना पैक्ट में छुआछूत के खात्में का प्रस्ताव भी था। लेकिन दुखद यह है कि छूआछूत का कोढ़ आज भी किसी न किसी रूप में कायम है। किन्तु इस पूना पैक्ट से अछूतों को राजनैतिक, सामाजिक और शैक्षणिक सुविधा प्राप्त हुई।
शिक्षित करें, संघर्ष करें और संगठित हो
वर्ष 1942 में जून माह में भारत के वायसराय ने अपनी एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया और उसमें सर सी.पी रामास्वामी अय्यर, सर मुहम्मद उस्मान, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, सर जे.पी. श्रीवास्तव और सर जोगिन्दर सिंह को शामिल किया गया। 2 जुलाई 1942 को वायसराय ने इन नियुक्तियों की घोषणा की। इसमें डॉ. अम्बेडकर को श्रम मंत्री का दायित्व सौंपा गया। उन्होंने श्रम मंत्री रहते हुए मजदूरों की दयनीय दशा में सुधार के अनेक कार्य किए। 18 और 19 जुलाई को ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास का नागपुर में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें 3 मूलमंत्रों का एक संदेश दिया गया। उन्होंने कहा आप स्वयं शिक्षा प्राप्त कर समाज को शिक्षित करें, संघर्ष करें और अपने कल्याण के लिए संगठित हो। उनके ये तीन मूलमंत्र देशभर में खूब प्रसिद्ध हुए।
संविधान निर्मात्री सभा में पहुंचे डॉ. अम्बेडकर
कैबिनेट मिशन की योजना के अनुसार स्टेट विधानसभाओं द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों और सदस्यों द्वारा संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया जाना था। इसके लिए चुनाव शुरू हुआ। इसमें बंगाल विधान परिषद से डॉ. भीमराव अम्बेडकर भी चुने गए। वे निर्दलीय उम्मीद्वार के रूप में चुनाव लड़े थे। 20 जुलाई 1946 को चुनाव का नतीजा आ गया और दलितों की मेहनत रंग लाई। बाबासाहेब न सिर्फ जीते बल्कि देश में निर्दलीय उम्मीद्वारों में सबसे ज्यादा वोट उन्हें ही मिले।
स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री
स्वतंत्र भारत के पहले कैबिनेट में डॉ. अम्बेडकर को देश के पहले कानून मंत्री की जिम्मेदारी दी गई। यही नहीं इस मंत्रीमंडल के गठन में दलगत राजनीति से परे देश के नवनिर्माण को ध्यान में रखते हुए योग्य व्यक्तियों को मंत्रीमंडल में लिया गया। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को भी मंत्रीमंडल में स्थान दिया गया। स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रीमंडल में डॉ. अम्बेडकर और डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे योग्य लेकिन गैर कांग्रेसी नेताओं को शामिल करना पंडित जवाहरलाल नेहरू की योग्यता और राजनैतिक परिपक्वता का उदाहरण था। नए मंत्रीमंडल ने 15 अगस्त 1947 को शपथ ली।
संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बने डॉ. अम्बेडकर
29 अगस्त 1947 को भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए प्रारूप समिति बनाई गई, जिसका अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर को बनाया गया। यह भारत के इतिहास में एक महान घटना थी। प्रारूप समिति के कुल 7 सदस्य थे। उनके नाम है - सर अलादी कृष्णास्वामी, सर वी.एन. राव, सैयद एम. सादुल्ला, सर एन. गोपालास्वामी अयंगर, डॉ. के.एम. मुंशी, सर बी.एल. मित्तर और श्री डी.पी. खेतान। बाद में इस समिति में सर बी.एल. मित्तर की जगह एल. माधवाराव और डी.पी खेतान की जगह टी.टी. कृष्णामाचारी को सदस्य बनाया गया था। बाबा साहब को संविधान निर्माण की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली थी जिसे उन्होंने दिन रात मेहनत कर देश को बेहतरीन संविधान दिया।
बाबासाहेब की उन दिनों सेहत खराब थी लेकिन उन्होंने संविधान निर्माण में रात दिन एक कर दिया। उन्हें संविधान शिल्पी या संविधान निर्माता क्यों कहा जाता है ? इसका उत्तर 5 नवम्बर 1948 को संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष टी.टी. कृष्णामाचारी ने बाबासाहेब का आभार जताते हुए दिया, जिसमें उन्होंने -डॉ. अम्बेडकर ही मुख्य संविधान के निर्माता है। प्रारूप समिति के सदस्यों में से एक का निधन हो गया, लेकिन उनके स्थान पर किसी को मनोनीत नहीं किया गया। एक ने इस्तीफा दे दिया तो वह जगह भर दी गई। एक सदस्य अमेरिका चला गया, उनकी जगह पर भी किसी की नियुक्ति नहीं की गई । एक सदस्य अपने रियासतदारों संबंधी काम काज में ही व्यस्त रहते थे। उनका स्वास्थ्य बिगड़ने से वह भी उपस्थिति नहीं दे पाते थे। अन्य एक दो सदस्य दिल्ली से बाहर के थे और वे इस काम में बहुत कम समय दे पाते थे। आखिर संविधान बनाने की सारी जिम्मेदारी अम्बेडकर को ही निभानी पड़ी।
भारतीय संविधान के शिल्पी
4 नवम्बर 1948 को बाबासाहेब द्वारा तैयार किया गया कच्चा खाका संविधान सभा में विचार के लिए प्रस्तुत किया गया। उसमें 8 परिशिष्ट और 315 अनुच्छेद थे। अपने भाषण में उन्होनें विस्तार से संविधान के बारे में सबको बताया। भाषण के अन्त में उन्होंने कहा कोई भी संविधान पूर्ण नहीं है। ये संविधान प्रत्यक्ष व्यवहार में लाने योग्य है। यह लचीला है। शांति के दिनों में हो या युद्ध के काल में हो, देश को एकता के सूत्र में बांधे रखने के लिए यह अत्यन्त प्रभावशाली और सक्षम है। संविधान की रूपरेखा पर काफी चर्चा हुई और एक के बाद एक अनुच्छेदों को मंजूर करते गए। 20 नवम्बर 1948 को संविधान की 11वीं धारा को मंजूर करते हुए छुआछूत को अपराध घोषित किया गया। यह संविधान 26 जनवरी 1950 को देश में लागू किया गया।
नागपुर में धम्म दीक्षा समारोह
14 अक्टूबर 1956 को विजयादशमी के दिन नागपुर में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपने हजारो अनुयाईयों के साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा गृहण की। इस प्रकार उन्होंने पहले यह कहा था कि हिन्दू धर्म में मेरा जन्म भले ही हुआ हो, किन्तु मैं हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं, को चरितार्थ कर दिखाया।
डॉ. अम्बेडकर ने अपने अपमान को एक चुनौती के रूप में लिया
आज समस्त राजनैतिक दलों और जनप्रतिनिधियों को यह जानने और समझने की आवश्यकता है कि बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने संविधान का जो निर्माण किया था, क्या उसका देश में सही तरह से क्रियान्वयन हो रहा है ? उनके विचार और सीख को समझने की भी आवश्यकता है। उन्होंने अपने जीवन में लगातार हुए अपमान और अन्याय को एक चुनौती के रूप में लिया और अपने लिए एक नया रास्ता बनाया। वे न केवल खुद देश में सबसे अधिक पढ़े-लिखे विद्वान बने, बल्कि अपनी पूरी शक्ति देश के विकास के लिए समर्पित कर दी। कुछ लोगों की धारणा है कि अम्बेडकर ने केवल दलितों की भलाई के लिए ही जीवन संघर्ष किया। इसी कारण उन्हें सिर्फ दलितों के मसीहा के रूप में जाना जाता है। लेकिन यह धारणा न केवल उनकी बहुमुखी प्रतिभा को एक सीमित दायरे में बांधती है बल्कि उनके व्यक्त्ति्व और कृतित्व का भरपूर लाभ लेने से भी वंचित करती है। वे एक महान अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, कानूनविज्ञ, महिलाओं और मजदूरों के उद्धारक, संविधान के शिल्पी, समाज सुधारक और सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उन्हें देश हमेशा याद रखेगा और उनके द्वारा दिए गए महान योगदान को कभी भूला नहीं पायेगा। उनके किए कार्यों को आज समझने की जरूरत है। जो किसी भी समयसीमा में नहीं बांधे जा सकते।
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डा. चंदर सोनाने मध्यप्रदेश के जनसम्पर्क विभाग से संयुक्त संचालक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उज्जैन में निवास कर रहे हैं। उनकी सामयिक और सामाजिक विषयों पर विशेष रूचि है और वे “सरोकार” स्तम्भ मे जरिये जनहित से सरोकार रखने वाले मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय व्यक्त करते हैं।