अहिल्या देवी : जगत माता

 

  • अरुण कुमार जैन , स्वतंत्र लेखक

 

      माता अहिल्या सचमुच में प्रजा वत्सल थीं और उन्हें इसीलिए लोगों का आत्मीय सम्मान मिला। उनकी विशेषता थी की जहां भी वे यात्रा में रात ठहरती, आसपास के वासियों को रात में बुलाकर कुशल क्षेम पूछती और तकलीफों को सुनती,  गुनती और लोक हित में निर्णय लेकर आदेश देती।

   सबसे पहले वे पानी की व्यवस्था,  राह में पथिकों को छाया मिलती रहे अतः वृक्षारोपण का कार्य और रुकने के सुरक्षित इंतजाम का प्रबंध देखतीकमी होने पर वे इनका प्रबंधन करवाती। राज्य में जहां कहीं भी पानी, कुएं की व्यवस्था नहीं होती तो गांव वाले अहिल्या देवी को अपने गांव आने का न्यौता दे जाते और वे भी प्रजाजन को निराश न करते हुए,  ध्यान से समय मिलते ही उस गांव में अवश्य जाती और रात में वहीं ठहरतीनतीजा यह होता था कि जल्द ही उस गांव में पीने के पानी की उचित योजना बनाकर जन मानस तथा पशु धन के लिए पानी की उचित पक्की व्यवस्था वे करा देती।

    उनके बनाए हुए कई कुएं, बावड़ियां, तालाब आज भी इस गर्मी में जल के स्त्रोत हैं। ज्यादातर जगहों पर उन्होंने इसी के साथ शिव मंदिर भी बनवाए। इंदौर और इसके आसपास लगभग दो सौ बावड़ियां और कुएं, तालाब उन्होंने बनवाए।

    उनका यह कार्य केवल अपने राज्य तक सीमित नहीं था वरन उन्होंने मानव मात्र की सेवा के लिए भारत भर में ऐसे निर्माण करवाए। चाहे काशी का दशाश्वमेघ घाट हो या महेश्वर के घाट, अलंकृत रचनाएं और पक्के निर्माण उनकी और होलकर राज्य की विशेषता रही है।

   इनके प्रजावत्सल स्वरूप ने ही उन्हें सुदीर्घ शासन काल में निपुण रानी के रूप में विख्यात कर दिया था। वे अपने शासन काल में ही जीवित किंवदंती के रूप में विख्यात रहीं।

    उनके द्वारा पूजित शिवलिंग  और चालीस किलो स्वर्ण का शिवझूला आज भी महेश्वर किले में मौजूद है। वे प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग की पूजा किया करती थी.  आज भी महेश्वर में उनके समय के बने लकड़ी के पाटों पर पार्थिव पूजन प्रतिदिन विधि विधान से होता है। अहिल्या बाई खासगी ट्रस्ट के माध्यम से इसकी व्यवस्था की जाती है।

   कहा जाता है कि अहिल्या बाई को शादी के समय व्यक्तिगत धन के रूप में करीब तीन करोड़ सत्तर लाख स्वर्ण मुद्राएं मिली थीं. अपने दान पुण्य में वे इसी स्त्री धन का सदुपयोग करती थीं. राज्य के धन का उपयोग वे नहीं करती थीं।

    हमारे आज के अधिकारियों,  न्यायाधीशों,  नेताओं, विधायकों, सांसदों एवम मंत्रियों, लोक सेवकों को इससे सबक लेना चाहिए। यदि वे माता अहिल्या से प्रेरणा लें तो देश का करोड़ों रुपया बच सकेगा जो देश हित के अन्य कार्यों में सदुपयोग किया जा सकता है।

 

  • लेखक भारतीय राजस्व सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं.