विन्ध्य के सिद्धभूमि की विलक्षण मेधा है बीरबल! .......................... आलेख... जयराम शुक्ल .. बीरबल की जन्मस्थली की जांच पड़ताल
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि अकबर के नवरत्नों में शामिल सबसे कुशाग्र बुद्धि के हाजिरजवाबी बीरबल का असली नाम महेशदास दुबे था। बीरबल का जन्म स्थान मध्यप्रदेश के सीधी जिला का घोघरा गांव है। वरिष्ठ पत्रकार श्री जयराम शुक्ल ने छह साल पहले बी.बी.सी. के लिये बीरबल पर आधारित एक रिपोर्ताज लिखा था.. आप सब सुधी पाठकों के अवलोकनार्थ....
विन्ध्य के सिद्धभूमि की विलक्षण मेधा है बीरबल!
* जयराम शुक्ल
यह एक सुखद खबर है कि सीधी सांसद डा. राजेश मिश्र की पहल पर घोघरा के गौरव को पुनर्स्थापित करने का अभियान शुरू हुआ है। 17-18 फरवरी 2024 को मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा सांस्कृतिक उत्सव 'कजरी' का आयोजन किया जा रहा है। भारतीय इतिहास में बीरबल अमूल्य धरोहर हैं, उनकी स्मृतियों को सहेजना हमारा धर्म है। विलंब से ही सही लेकिन अब जो पहल शुरू हुई है, वह स्तुत्य है। सांसद डा. राजेश मिश्र व सीधी-सोनांचल के संस्कृतिकर्मी व साहित्यकार अभिनंदन के पात्र हैं !
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तो चलिए जानते हैं बीरबल की मातृभूमि मध्यप्रदेश के सीधी जिला स्थित उनके गांव घोघरा का हाल!
बुद्धिमान, हाज़िर जवाब और लोगों को लाजवाब कर देने वाले नवरत्नों में से एक बीरबल का नाम महेशदास दुबे था और वो मध्य प्रदेश के सीधी जिले के घोघरा में पैदा हुए थे। दिन, महीने और साल दर साल बीतते चले गए मगर आज भी मध्यप्रदेश के सीधी जिले में सोन नदी के पार बसा घोघरा कमोबेश वैसा ही है जैसा कई सौ साल पहले हुआ करता था। कच्चे मकान, टूटी फूटी सडकें और उपेक्षा मानो इस इलाके की नियति बनकर रह गयी हो।
कहा जाता है कि घोघरा गांव में ही बीरबल के पिता गंगादास का घर हुआ करता था और यहीं उनकी माता अनाभा देवी ने वर्ष 1528 में रघुबर और महेश नाम के जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। घोघरा गांव सालों से उपेक्षित ही रहा और इसके साथ-साथ उपेक्षित रहे बीरबल की पीढ़ी के लोग।
उपेक्षित
बीरबल की 37 वीं पीढ़ी भी इसी गांव में रह रही है और ये लोग मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं। सीधी के रहने वाले साधू यादव कहते हैं कि इस परिवार से मिलने ज़्यादातर शोधार्थी ही आते हैं। सरकारी अधिकारी और नेताओं को बीरबल के परिवार से कोई सरोकार नहीं है। लोगों को अफ़सोस है कि सालों साल दिल्ली की गद्दी पर बैठी सरकार हो या फिर प्रदेश की। किसी ने बीरबल की जन्म स्थली घोघरा के बारे में नहीं सोचा।
अलबत्ता जब अर्जुन सिंह केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री हुआ करते थे तो उन्होंने बीरबल की याद में एक सामुदायिक भवन का निर्माण करवाया। इसके अलावा घोघरा की पहचान के लिए कोई अलग पहल नहीं की गयी।
गांव के बुजुर्गों का कहना हैं कि अकबर के ज़माने में घोघरा महत्वपूर्ण रहा। मगर बाद में वक़्त बदलता चला गया और आहिस्ता आहिस्ता इस जगह की अहमियत कम होने लगी। अकबर के बाद दिल्ली और प्रदेश की सरकारों ने कभी इस गांव की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा।
एक नौजवान लड़के ने इस गांव से चलकर दिल्ली के दरबार तक का सफ़र तय किया। आज कई सालों के बाद भी दिल्ली की सरकारें घोघरा तक नहीं पहुंच पायी हैं।
बीरबल के वंशज
गांव वालों से बात करते करते, मैं बीरबल के वंशजों के घर आ पहुंचा। छोटे से बगीचे में बसा कच्चा मकान। यहां मेरी मुलाक़ात बीरबल की 36 वीं पीढ़ी के गंगा दुबे से हुई जो पेशे से किसान हैं और गांव में एक छोटी सी परचून की दुकान भी चलाते हैं।
गंगा दुबे बताते हैं कि कई सालों तक बीरबल से जुड़े कई दस्तावेज़ उनके पास पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित रहे। मगर हाल ही में उनकी दुकान में पानी भर गया और उनमें से कुछ दस्तावेज़ नष्ट हो गए।
इन दस्तावेजों में रीवा के महाराजा का पत्र और अकबर के दरबार का हुक्म-नामा शामिल थे जो फारसी में लिखे हुए थे। गंगा के परिवार के पास बीरबल की कुछ दूसरी यादगार चीज़ें आज भी मौजूद हैं। मसलन शंख, घंटा और कुछ किताबें।
कहते हैं कि बीरबल फारसी और संस्कृत के विद्वान थे और कविताएं भी लिखा करते थे। इसके अलावा उनकी शिक्षा संगीत में भी हुई थी। यही वजह है कि सबसे पहले उन्हें जयपुर के महाराज के दरबार में और बाद में रीवा के महाराज के दरबार में बतौर राज कवि रखा गया था।
गांववालों का कहना है कि दरअसल रीवा के महाराज ने ही अकबर को बीरबल तोहफे़ के रूप में दिया था। मगर इतिहासकार इससे सहमत नहीं हैं। (दरअसल अकबर बीरबल को भी तानसेन की भाँति बांधव नरेश रामचंद्र के दरबार से बलात उठवाकर आगरे में अपनी दरबार में रख लिया।)
यादें
गंगा के परिवार के पास बीरबल की कुछ यादगार चीज़ें में शंख, घंटा और कुछ किताबें मौजूद हैं। बीरबल की इस जन्मस्थली में उनसे जुड़ी यादगार चीज़ें लगभग अब नहीं के बराबर हैं। वक़्त के साथ सब कुछ ख़त्म होता चला गया। गांव के तालाब के किनारे वो घर जिसमें उनके माता पिता रहते थे, अब नहीं है।
ये जगह अब एक वीरान टीला है जहां जानवर चरते रहते हैं। कभी - कभी गांव के नौजवान तालाब के किनारे इस टीले पर बैठकर अपना समय बिताते हैं। अगर इतने सालों में इस गांव में कुछ नहीं बदला तो वो है घोघरा का प्राचीन मंदिर जहां बीरबल और उनके भाई जाया करते थे। इस प्राचीन देवी के मंदिर के वयोवृद्ध पुजारी सुखचंद्र सिंह का कहना है कि ऐसी मान्यता है कि यहीं से बीरबल को वरदान मिला था।
वो कहते हैं: "पहले ये मंदिर तालाब के किनारे था, बाद में देवी की मूर्ति को यहां स्थापित किया गया।
बीरबल का कोई बेटा नहीं था। कहा जाता है कि उनकी सिर्फ एक बेटी थी कमला, जिसने शादी नहीं की थी। इसलिए आज उनके भाई रघुबर ही उनके वंश को चला रहे हैं। घोघरा में ये विशवास है कि ऐसा देवी के वरदान की वजह से ही हुआ होगा।
सम्मान
गंगा दुबे के घर की बैठक में लोगों का आना जान लगा रहता है। बीरबल के वंशज होने की वजह से पूरे इलाके में उनका काफी सम्मान भी है। लोग उनके घर को फ़क्र के साथ देखते हैं और अक्सर इनके यहां गांव वालों की लंबी - लंबी बैठकें भी होती हैं।
इनका परिवार भी खिचड़ी का शौकीन है। मगर गंगा कहते हैं कि उनके घर पर खिचड़ी जल्दी बन जाती। वो हंसते हुए कहते हैं, "बीरबल की खिचड़ी तो कभी बन नहीं पायी। वो तो बादशाह अकबर की नसीहत के लिए खिचड़ी बना रहे थे। मगर हमारी खिचड़ी तो जल्द बन जाती है।"
घोघरा में बीरबल और अकबर की नोक - झोंक लगभग हर जुबां पर है। सीधी जिले के इस सुदूर इलाके में कभी बिजली रहती है, कभी नहीं। गांव के लोग खाली समय में अकबर और बीरबल के किस्सों से ही अपना दिल बहलाते हैं।
गंगा दुबे इस गांव में अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहते हैं। इनकी दो बेटियां भी हैं जिनकी शादी हो चुकी है। बस किसी तरह इस परिवार का गुज़र बसर चलता है।
यूं कहा जा सकता है कि बीरबल के इस गांव को आज है किसी अकबर का इंतज़ार।
(यह रिपोर्ताज़ छह वर्ष पूर्व 'बीबीसी हिंदी.काम' में प्रकाशित हुई थी)
श्री जयराम शुक्ल, वरिष्ठ पत्रकार