सरोकार -           

  इन्दौर उज्जैन 6 लेन की निर्माण लागत में भ्रम ?

  • डॉ. चन्दर सोनाने

 

    देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मु ने 19 सितम्बर 2024 को 1692 करोड़ रूपये की लागत की इंदौर-उज्जैन 6 लेन निर्माण का भूमिपूजन उज्जैन में किया। इस अवसर पर मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी उपस्थित थे। यह प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट है। मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन को अनेकों सौगातें दी है। उन्हीं में से यह एक प्रमुख सौगात है। 

      किन्तु 8 फरवरी 2024 को प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री श्री राकेश सिंह ने भोपाल मंत्रालय में सिंहस्थ 2028 के आयोजन एवं इन्दौर-उज्जैन हाई-वे पर बढ़ते हुए यातायात दबाव को देखते हुए इन्दौर-उज्जैन हाई-वे को 6 लेन बनाने की लोक निर्माण विभाग द्वारा तैयार कार्य योजना की प्रस्तुतीकरण को देखा। प्रस्तुतीकरण में इस कार्य की लागत 988 करोड़ रूपए की बताई गई। यह 6 लेन इन्दौर के अरबिन्दो मेडिकल कॉलेज गेट से उज्जैन के हरिफाटक चौराहे तक 48 किलोमीटर में बनाई जायेगी। इसमें सर्विस रोड, दो बड़े पुल सहित उज्जैन शहर में फ्लाय ओवर भी बनाने की जानकारी दी गई। इस बैठक में विभाग के प्रमुख सचिव श्री डी.पी आहूजा, 6 लेन की निर्माण एजेंसी सड़क विकास निगम के प्रबंध संचालक श्री अविनाश लवानिया और संबंधित वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

          यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि जब विभाग के मंत्री के समक्ष उज्जैन-इन्दौर 6 लेन की लागत 988 करोड़ रूपए बताई गई तो भूमि पूजन के समय इसकी लागत 704 करोड़ रूपए बढ़कर 1692 करोड़ रूपए कैसे हो गई ?  यहाँ यह भी प्रश्न उत्पन्न होता है कि जब विभाग के प्रस्तुतीकरण में उज्जैन-इन्दौर 6 लेन की लागत 988 करोड़ रूपए बताई गई थी और भूमिपूजन के समय बढ़कर 1692 करोड़ रूपये  हो गई, तो योजना के लोकार्पण के समय क्या इसकी लागत 2000 करोड़ रूपये हो जाएगी ?

          ऐसा क्यों होता है कि जब कोई योजना बनाई जाती है तो उसकी लागत कम होती है, भूमिपूजन के समय बढ़ जाती है और निर्माण कार्य के लोकार्पण के समय उसकी लागत और भी बढ़ जाती है। इसके क्या कारण हैं? सहज ही समझ में आने वाली बात यह है कि कार्य योजना ही सही नहीं बनाई गई थी। अधिकारी द्वारा जो इस पर शुरूआत में जो मेहनत करनी होती है, वह शायद नहीं की गई। और जब काम शुरू होता है और पूरा होता है तब तक निर्माण कार्य की लागत कई गुना बढ़ जाती है। दूसरी समझ में आने वाली बात यह है कि किसी भी निर्माण कार्य में राजनीति और अधिकारियों के गठबंधन से खुलकर भ्रष्टाचार होता है। उन्हीं के ये उदाहरण मात्र है।

          आइये, निर्माण कार्यों की लागत क्रमशः कैसे बढ़ती है ? इसके दो और उदाहरण देखते हैं। उज्जैन में ही कुछ साल पहले नगर निगम के पास में एक स्वीमिंग पुल बनाया गया। शुरूआत में इसकी लागत करीब 4 करोड़ रूपये थी। बाद में बढ़कर करीब 8 करोड़ रूपये हो गई और जब   स्वीमिंग पुल पूर्ण हुआ तो उसकी लागत करीब 12 करोड़ रूपये बताई गई। उस  समय इस स्वीमिंग पुल के निर्माण लागत की शहर में काफी चर्चा भी हुई थी। आज यह बिना उपयोग के बेकार पड़ा हुआ है। यह एक अलग प्रश्न है।

          उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर में भव्य महाकाल लोक का निर्माण किया गया। कांग्रेस शासन के समय महाकाल लोक की मूल लागत करीब 300 करोड़ रूपये बताई गई थी। फिर भाजपा सरकार आ गई तो लागत बढ़कर करीब 600 करोड़ रूपये हो गई। 11 अक्टूबर 2022  को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इसके प्रथम चरण का भव्य लोकार्पण किया। तब इस प्रथम चरण की लागत करीब 350 करोड़ रूपए बताई गई। दूसरे चरण का निर्माण अभी भी चल रहा है। इसकी लागत उस समय करीब 450 करोड़ रूपये  बताई गई थी। यानी दोनों चरण की लागत करीब 800 करोड़ रूपए बताई गई। आज यह राशि करीब 1000 करोड़ रूपए से अधिक की बताई जा रही है। यह चमत्कार कैसे हो रहा   है ?  यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 11 अक्टूबर 2022 को महाकाल लोक के लोकार्पण के बाद पहली ही आँधी और बारिश में सप्त ऋषियों की मूर्तियाँ धराशायी हो गई थी। तब ताबड़तोड़ नई मूर्तियाँ लगाई गई। यह भ्रष्टाचार का एक ज्वलंत उदाहरण है। अब सप्त ऋषियों की मूर्तियाँ पत्थर की बनाई जा रही है।

आए दिन विभिन्न निर्माण एजेंसियों द्वारा निर्माण कार्यों में लागत बढ़ने का चमत्कार सहज ही देखने में आ रहा है। ऐसा क्यों होता है ? इस पर राज्य सरकार को सोचना चाहिए। उज्जैन के विधायक और प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव युवा और स्वप्नदृष्टि वाले मुख्यमंत्री है। उन्हें इस पर गौर करने की आवश्यकता है और व्यवस्था में सुधार करने की जरूरत है, ताकि फिर किसी अन्य निर्माण कार्य में कार्य योजना बनाने के समय, भूमिपूजन के समय और निर्माण कार्य पूर्ण होने के समय तक लागत करीब-करीब एक जैसी रहे। बढ़े भी तो आंशिक रूप़ से बढ़े, ना कि दो से तीन गुना बढ़े। अन्यथा जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा...

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               डा. चन्दर सोनाने