भांति-भांति के लोग

  • डा. विनोद पुरोहित 

पूरी दुनिया में आमतौर पर तीन तरह के इंसान होते हैं। एक वह जो आचार-विचार से अकडू रहते हैं। दूसरे जो हर हाल में थरथर कांपते रहते हैं। इस थरथराने-कांपने में रत्ती भर खौफ और मन भर लिजलिजापन है। माने सामने वाली स्थिति-परिस्थिति और इंसान के अनुसार खुद को ढाल लेना। और जो इन दो किस्मों के हिसाब का नहीं, वो तीसरे टाइप का इंसान का पद पाता है।

पहले बात पहले किस्म के इंसान की। अकडू इंसान बड़े जिद्दी होते हैं। यह जिस वैचारिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक खूंटे से बंध जाएं, फिर वही नहीं डिगते भले ही कितना ही नुकसान हो जाए। शरीर भले ही मरियल हो, मूंछें तनी रहेंगी। टांगें सींकिया लेकिन पतलून की क्रीज़ टस से मस नहीं होने देंगे। जिद ऐसी कि कड़ाके की सर्दी में हाफ शर्ट पहनकर सैर करने निकल जाएंभले फिर बीमार होकर खटिया पकड़ लें और दिन भर पत्नी की गर्मागर्म चाय के साथ गालियां खाते रहें। ऐसे लोगों में थोड़ा अहंकार का तड़का भी लगा होता है। एक बड़े कॉरपोरेट दफ्तर के बड़े अधिकारी नाटे मझौले कद के हैं लेकिन गुरुर दफ्तर की आठ मंजिला बिल्डिंग से बड़ा है। उन्हें यह गुमान है कि उन्हें सब आता है और सामने खड़े शख्स को कुछ नहीं आता। एक आक्रांता की तरह उनका मकसद सामने वालों में खौफ फैलाना होता है। बहरहाल, ऐसे लोगों में अक्सर विरोधाभास दिखाई देता है। मसलन, घर में अकेले में ये लोग खुद को कोसते मिल जाएंगे,  भले ही दूसरों के सामने मजबूत बनने का अभिनय करते रहें। इसीलिए बाहर का यह शेर घर में पत्नी के सामने भीगी बिल्ली बना रहता है।

 

दूसरे किस्म के लोग यानी हरदम झुके-झुके से दिखने वाले लोग कभी  नरम-नरम तो कभी सख्त-सख्त से होते हैं। इनमें स्विच ऑन-ऑफ क्वालिटी होती है। चतुराई इतनी कि देखते ही देखते स्थिति-परिस्थिति के अनुरूप खुद को ढाल लें। अधिनस्थों से भले कैसे ही पेश आएं, इन्हें अपने बॉस को खुश करना आता है। बॉस का हर शब्द इनके लिए मंत्र के मानिंद होता है। बॉस के सामने तो काम से काम होता ही है। इनका लक्ष्य सिर्फ अपना फायदा लेना होता है। जी-हुजूरी का इनका हुक्का हमेशा गर्म रहता है। ये लच्छेदार भाषा के धनी होते हैं। किन शब्दों को कब, कहां, कैसा और कितना फंसाना है, ये बखूबी जानते हैं। ऐसे लोग आमतौर पर ऊंचे पदों पर सुशोभित होते हैं। ऐसे लोगों की तंत्र-मंत्र, ज्योतिष इत्यादि में खूब आस्था रहती है। एक महाशय अपने बॉस का सार्वजनिक तौर पर खासा स्वस्तिगान करते थे। एक बार इस रस में इस कदर डूब गए कि बॉस को गोद में उठाकर नाचने लगे। दरअसल, इनमें हर रस भरपूर होता है। जितना प्रेम रस, उतना ही काइयाँपन भी इनमें समाया होता है। ऐसे लोग भरोसेमंद नहीं होते, लेकिन उपयोगी होते हैं। ये शर्म और बेइज्जती से परे होते हैं। इनमें विरोधाभास भी गजब का होता है। मसलन, चतुर होने के साथ ही ये प्रचंड अंधभक्त भी  होते हैं। माना जाता है कि अंधभक्त होने के लिए मूर्ख होना जरूरी है लेकिन ये इस धारणा को तोड़ते हैं। इस टाइप के लोगों के लिए सियासी पार्टियों और कॉर्पोरेट दफ्तरों में बाकायदा पीके चल रहे हैं। पीके यानी प्रशिक्षण केंद्र। इन लोगों के चेहरों पर हमेशा मुस्कान चिपकी रहती है और हर हाल में खुद को सक्रिय दिखाते रहते हैं।

 

 इनके अलावा एक तीसरे किस्म का इंसान होता है। यह जो होता है, वही कहता है और वही दिखाता है। जो नहीं जानता, वह मानता है कि मैं नहीं जानता। ऐसे शरीफ टाइप के लोग अपने काम से काम रखते हैं। पहले और दूसरे टाइप के लोग इन्हें बेवकूफ समझते हैं और ये बेवकूफ बनते भी हैं। कोई ना कोई इनका दोहन - शोषण करता रहता है। ये अक्सर दूसरों का बोझ उठाते रहते हैं। अपवाद के तौर पर ऐसे लोग भी कई क्षेत्रों में शिखर पर हैं। हालांकि अब यह विलुप्त प्रजाति मानी जाती है। आपको कोई ऐसा मिले तो बताइए।

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