"डाक्टर शंकरदयाल शर्मा की मेधा विनम्रता, शालीनता, मूल्यपरक राजनीति और उज्जवल आचरण से हमारे राजनेताओं की पीढ़ी कुछ सीख ले..तो देश स्वमेव धन्य हो जाए"

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  डा.शंकरदयाल शर्मा: राजनीतिक सुचिता के शलाका पुरुष 
                                                                             * जयराम शुक्ल

देश के नवें राष्ट्रपति डा.शंकर दयाल शर्मा के स्वागत का यह सुअवसर (चित्र में दृष्टव्य) तब मिला था जब वे सितंबर 1989 को रीवा के श्यामशाह मेडिकल कालेज की रजत जयंती व दीक्षांत समारोह में पधारे थे। डाक्टर साहब तब देश के उपराष्ट्रपति थे।



डाक्टर साहब जैसा मेधावी राजनेता मैंने अब तक के जीवन में नहीं देखा। मेडिकल आडिटोरियम में उनका भाषण मंत्रमुग्ध करने वाला था। मुझे याद है कि मनोविनोद के साथ एक सुभाषित श्लोक के माध्यम से उन्होंने चिकित्सकों को बड़ी नसीहत दे डाली..वह श्लोक मुझे आज तक याद है-

वैद्यराज नमस्तुभ्यं यमराजसहोदर ।
यमस्तु हरति प्राणान् वैद्यो प्राणान् धनानि च ॥

(हे वैद्यराज, यम के भाई, मैं आपको प्रणाम करता हूँ .यम तो सिर्फ प्राण हर लेते है पर आप धन और प्राण दोनों हर लेते हो !!)

डाक्टर साहब ने कहा था कि चिकित्सक ईश्वर के अवतार हैं पर जब वे अपने आदर्श, आचरण और कर्तव्य से विमुख हो जाते हैं तब स्वमेव यमराज के सहोदर बन जाते हैं।

डाक्टर साहब 1992 में देश के राष्ट्रपति बने। यद्यपि कुछ नेताओं ने दलित एजेंडा उठाकर उनकी राह रोकने की कोशिश की थी लेकिन वे भी अटलजी की भाँति अजातशत्रु थे। भाजपा और कम्युनिस्ट दोनों ही उन्हें आदर देते थे।

संविधान और संसद की मर्यादा को लेकर वे इतने संजीदा थे कि सभापति के रूप में राज्यसभा का संचालन करते हुए रो पड़े..। वजह कतिपय सदस्य बेमतलब के मुद्दे उछलकर सदन को चलने ही नहीं देते थे। डाक्टर साहब के आँसुओं ने सदन व संविधान की मर्यादा को बचाने का काम किया।

राष्ट्रपति बनने के बाद पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में राष्ट्र और धर्म की जो व्याख्या की वह छद्मधर्मनिरपेक्षियों के लिया आँखें खोलनें वाली थी।

डाक्टर साहब से सवाल पूछा गया कि एक ऐसे वक्त में जब देश कठिन हालात से गुजर रहा है (अयोध्या प्रकरण के समय का) और धर्मनिरपेक्षता निशाने पर है, आप राष्ट्रपति पद की जिम्मेवारी कैसे निभाएंगे?

धर्मशास्त्रों के ज्ञानी डा. शंकर दयाल शर्मा का उत्तर था- 'ईश्वर में अपनी आस्था के सहारे, देश पर अपने विश्वास के सहारे।'

अगर आप सेक्युलरिज्म का वही अर्थ समझते हैं जो पश्चिम की दुनिया में बना तो शंकरदयाल शर्मा का जवाब आपको अचरज में डालेगा और अगर आप मानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का एक ठेठ भारतीय अर्थ है तो देश के नौंवे राष्ट्रपति के जवाब में आपको पूरी भारतीय धर्म-परंपरा बोलती हुई जान पड़ेगी।

डाक्टर साहब बार एट लाँ थे। कैंब्रिज में पढ़े। नौ साल प्राध्यापक थे। मध्यक्षेत्र के मुख्यमंत्री से लेकर मध्यप्रदेश के प्रथम शिक्षा मंत्री। 1971 में वे केंद्र की राजनीति में गए और समय-समय पर इंदिराजी के संकटमोचक की भूमिका निभाई।

वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल होते हुए उपराष्ट्रपति बने और फिर देश के नवें राष्ट्रपति। राष्ट्रपति के रूप में उनके समक्ष उनकी ही पुत्री-दमाद गीतांजलि व ललित माकन के हत्यारों की दया याचिका आई। डाक्टर साहब ने मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया।

डाक्टर साहब की मेधा विनम्रता, शालीनता, मूल्यपरक राजनीति और उज्जवल आचरण से हमारे राजनेताओं की पीढ़ी कुछ सीख ले..तो देश स्वमेव धन्य हो जाए।

डा. शर्मा की जन्म जयंती के अवसर पर मध्यप्रदेश की माटी के इस महान सपूत के चरणों में शत-शत नमन। 

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  जयराम शुक्ल

आज देश के नवें राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा की जयंती है वरिष्ठ पत्रकार श्री जयराम शुक्ल ने डा. शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकसह डालते हुये लिखा है कि डाक्टर साहब की मेधा विनम्रता, शालीनता, मूल्यपरक राजनीति और उज्जवल आचरण से हमारे राजनेताओं की पीढ़ी कुछ सीख ले..तो देश स्वमेव धन्य हो जाए। बात सौ फीसदी सही। आप क्या सोचते हैं  ? अपने विचारों से अवगरत करायें ... धन्यवाद ...  .. मधुकर पवार