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एकजुटता के नारों के बीच गुटबाजी

 

  •  श्याम यादव

 

इन दिनों मध्यप्रदेश भाजपा में जोर आजमाइश का दौर चल रहा है। पार्टी में एकजुटता दिखावटी है। जबकि, हर इलाके में स्थानीय नेता आपस मे ही गुत्थम-गुत्था हो रहे है। नए अध्यक्ष ने आते ही सख्ती का माहौल जरूर बनाया, पर उसे दरकते देर नहीं लगी। ग्वालियर, रीवा, इंदौर से लगाकर बुंदेलखंड तक में अलग-अलग गुट बन गए। ये हालात भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

 

        भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश की राजनीति में लंबे समय से एक मजबूत आधार बना रखा है। संगठनात्मक मजबूती, कार्यकर्ताओं की जमीनी पकड़ और केंद्रीय नेतृत्व का लगातार मार्गदर्शन पार्टी को अन्य दलों से अलग बनाता रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह साफ दिखने लगा है कि पार्टी की भीतरी खींचतान और गुटबाजी लगातार तेज होती जा रही है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय नेतृत्व की सख्त नसीहतों के बावजूद प्रदेश की राजनीति में आपसी मनमुटाव, अहंकार और विरोधाभासी रुझान खुले तौर पर दिखाई दे रहे हैं। यह स्थिति केवल छोटे कार्यकर्ताओं तक सीमित नहीं है बल्कि डिप्टी सीएम से लेकर मंत्रियों, सांसदों और विधायकों तक फैली हुई है।

     ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर उठी हलचल इसका ताज़ा उदाहरण है। मुरैना दौरे के दौरान सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक पोस्टर ने पूरी राजनीति को हिला कर रख दिया। पोस्टर में साफ लिखा गया कि सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाए, अन्यथा 'अपनी खैर मनाओ' इस प्रकार का संदेश न केवल संगठनात्मक अनुशासन के विपरीत है बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि पार्टी के भीतर अभी भी सत्ता की होड़ जारी है। प्रदेश में जब भी कोई बड़ा कार्यक्रम होता है, किसी न किसी रूप में ऐसी पोस्टरबाजी सामने आ ही जाती है। शिकायतें पार्टी मुख्यालय तक पहुंचती हैं और उसके बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही की चेतावनी दी जाती है। लेकिन हकीकत यह है कि इस तरह की घटनाएं थमती नहीं हैं।

      रीवा में जो वाकया सामने आया, उसने स्थिति को और स्पष्ट कर दिया। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी की जन्मशताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री तो शामिल हुए लेकिन स्वागत पोस्टरों से डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल की तस्वीर गायब रही। यह केवल साधारण चूक नहीं मानी जा सकती क्योंकि पूरे शहर में लगाए गए पोस्टरों से किसी एक वरिष्ठ नेता की तस्वीर का गायब होना यह संदेश देता है कि स्थानीय स्तर पर आपसी खींचतान कितनी गहरी है। डिप्टी सीएम की नाराजगी इस हद तक बढ़ गई कि उन्होंने कार्यक्रम में ही शिरकत नहीं की। इस तरह की घटनाएं केवल व्यक्ति विशेष को चोट नहीं पहुंचातीं बल्कि संगठन की एकजुटता पर भी गहरा सवाल खड़ा करती हैं।

      देवास में विधायक गायत्री राजे पवार के पोस्टरों को हटाए जाने का मामला इसी श्रृंखला की एक और कड़ी है। नवरात्रि से पहले शहर में उनके पोस्टर लगाए गए थे, लेकिन नगर निगम ने इन्हें हटवा दिया। इससे स्थिति इतनी बिगड़ी कि विधायक का पुत्र विक्रम राव अपने समर्थकों के साथ सड़क पर उतर आये और निगम अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस दौरान खुली धमकियां दी गईं और माहौल तनावपूर्ण हो गया। सवाल यह है कि आखिर किस आधार पर जनप्रतिनिधियों के पोस्टर हटाए जाते हैं और क्यों बार-बार ऐसे विवाद सामने आते हैं। यह केवल प्रशासनिक कदम नहीं लगता बल्कि इसके पीछे भी कहीं न कहीं राजनीतिक द्वेष और गुटबाजी का असर साफ झलकता है।

     इन तीन घटनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा के भीतर अनुशासन की स्थिति कमजोर पड़ रही है। पचमढ़ी में हुए चिंतन शिविर में राष्ट्रीय नेताओं ने बार-बार संदेश दिया कि संगठन सबसे ऊपर है और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करना जरूरी है। इसके बावजूद प्रदेश में लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जो दर्शाती हैं कि व्यक्तिगत वर्चस्व की लड़ाई संगठनात्मक मूल्यों पर भारी पड़ रही है। गुटबाजी की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि कोई भी नेता अब पीछे हटने को तैयार नहीं दिखता।

      मध्यप्रदेश भाजपा की ताकत हमेशा से उसका संगठनात्मक अनुशासन और चुनावी मैनेजमेंट रहा है। लेकिन जब खुद विधायक, मंत्री और सांसद अनुशासन तोड़कर आपसी टकराव सार्वजनिक रूप से दिखाने लगें तो यह संगठन के लिए गंभीर संकट का संकेत है। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में सिंधिया समर्थकों और पुराने भाजपा नेताओं के बीच खींचतान किसी से छुपी नहीं है। इसी तरह महाकौशल और मालवा-निमाड़ में भी कई नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा का असर पार्टी की छवि पर पड़ता है।

आने वाले समय में यह गुटबाजी केवल आंतरिक असंतोष तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह चुनावी समीकरणों पर भी असर डाल सकती है। जनता ऐसे हालातों को बारीकी से देखती है और जब पार्टी के भीतर ही एकता नहीं दिखती तो मतदाता का भरोसा भी डगमगाता है। विपक्ष हमेशा ऐसे मुद्दों को भुनाने के लिए तत्पर रहता है। कांग्रेस पहले ही कई बार यह आरोप लगा चुकी है कि भाजपा केवल सत्ता की लालसा के लिए एकजुट दिखती है, लेकिन भीतर से बंटी हुई है। इन ताजा घटनाओं ने विपक्ष को और मजबूती से यह कहने का मौका दिया है।

     पार्टी नेतृत्व के लिए यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण है। संगठन को मजबूत बनाए रखने के लिए केवल चेतावनी देना या नाराजगी जताना काफी नहीं होगा। अनुशासनहीनता पर ठोस कार्रवाई करनी होगी ताकि एक सख्त संदेश जाए कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं संगठन के ऊपर नहीं रखी जा सकतीं। साथ ही यह भी जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर नेताओं के बीच संवाद और समन्वय बढ़ाया जाए। अगर हर कार्यक्रम और हर पोस्टर विवाद का कारण बनने लगे तो इससे पार्टी की साख पर गहरा असर पड़ेगा।

      प्रदेश भाजपा ने लंबे समय तक सत्ता में रहकर यह धारणा बनाई थी कि वह कांग्रेस से कहीं अधिक संगठित और अनुशासित है। यही कारण रहा कि मतदाता ने बार-बार उसे अवसर दिया। लेकिन यदि यही भाजपा आपसी कलह और खींचतान का अड्डा बनती गई तो उसकी यह विशेषता कमजोर हो जाएगी। संगठन को इस खतरे को समय रहते पहचानना होगा। अन्यथा यह स्थिति भविष्य में गंभीर संकट का रूप ले सकती है।

      भाजपा का इतिहास बताता है कि जब भी उसने गुटबाजी को नियंत्रित नहीं किया, तब पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। चाहे दिल्ली हो या अन्य राज्य, जहां-जहां आपसी खींचतान बढ़ी, वहां-वहां पार्टी की चुनावी ताकत प्रभावित हुई। मध्यप्रदेश में भी अगर यही स्थिति बनी रही तो संगठन की मजबूती और कार्यकर्ताओं का मनोबल दोनों प्रभावित होंगे। आने वाले समय में पार्टी को केवल विपक्ष से ही नहीं, बल्कि अपने ही घर के भीतर की चुनौतियों से जूझना होगा।

 

   

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वरिष्ठ पत्रकार श्री श्याम यादव लम्बे समय तक भारत संचार निगम लिमिटेड,  इंदौर में जन सम्पर्क अधिकारी का दायित्व निभाते रहे हैं। सेवानिवृत्त होने के पश्चात वे राजनीति और समसामयिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। साहित्यानुरागी श्री यादव कहानी और  व्यंग्य लेखन में भी सिद्धस्त हैं।