फर्जी मतदाता सूची : जिम्मेदार कौन ?
(मधुकर पवार)
चुनाव आयोग ने हाल ही में हैदराबाद संसदीय क्षेत्र के करीब 5 लाख 41 हजार से अधिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए हैं। जिन मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं, उनमें मृतक मतदाता, हैदराबाद से बाहर चले गए मतदाता और फर्जी मतदाताओं के नाम शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी की हैदराबाद निर्वाचन क्षेत्र की प्रत्याशी माधवी लता ने आरोप लगाया था कि हैदराबाद संसदीय क्षेत्र की मतदाता सूची में करीब 6 लाख फर्जी मतदाता हैं। एक अखबार में खबर प्रकाशित हुई है, जिसमें बताया गया है कि कोयंबटूर के मतदान केंद्र संख्या 214 पर जब मतदाता, मतदान केंद्र मतदान करने पहुंचे तब पता चला कि सूची में उनके नाम ही नहीं हैं। मतदाता सूची से गायब मतदाताओं की संख्या करीब 830 थी। इधर भोपाल में भी नरेला विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि यहां 15,810 फर्जी मतदाता हैं। फर्जी मतदाताओं के मामले में हैदराबाद संसदीय क्षेत्र की मतदाता सूची से हटाए गए नामों से आसानी से समझा जा सकता है कि इसमें बी.एल.ओ. के साथ निर्वाचन कार्य से जुड़े जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही हो सकती है। इसी तरह पात्र मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाने में भी उक्त अधिकारियों की लापरवाही मानी जा सकती है। लेकिन सूची में नाम जुड़वाने अथवा कटवाने में मतदाताओं की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है।
चुनाव आयोग और राज्यों के चुनाव पदाधिकारियों द्वारा अखबारों में समाचार प्रकाशित करवाये जाते हैं कि मतदान केंद्रों पर बी.एल.ओ. मौजूद रहेंगे जो मतदाताओं के नाम जुड़वाने और हटाने के साथ नए मतदाताओं के परिचय पत्र बनवाने की प्रक्रिया पूरी करेंगे। इसके अलावा चुनाव आयोग की वेबसाइट पर भी यह सुविधा उपलब्ध रहती है लेकिन इस सुविधा का लाभ कम मतदाता ही उठाते हैं। प्रत्येक संसदीय विधानसभा क्षेत्र में मतदाता केंद्रवार मतदाता सूची का प्रकाशन भी किया जाता है। मतदाता सूची में सम्बंधित क्षेत्र के मतदाता अपना नाम देख सकते हैं। लापरवाही का नतीजा यह होता है कि मतदाता सूची में पात्र मतदाताओं के नाम नहीं रहते हैं और वे मतदान करने से वंचित रह जाते हैं। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है... भोपाल के एक जागरूक मतदाता ने अपना निवास बदल दिया था. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले जब मतदाता सूची अद्यतन करने और मतदाता परिचय पत्र बनवाने का कार्य शुरू हुआ तब श्री धर्माधिकारी ने अपनी पत्नी और पुत्री का नया मतदाता परिचय पत्र बनवाने के लिये निर्धारित फार्म भरकर बी.एल.ओ. के पास जमा कर दिया । करीब दो माह बाद उनकी पुत्री का मतदाता परिचय पत्र प्राप्त हो गया लेकिन श्री धर्माधिकारी और उनकी पत्नी का मतदाता परिचय पत्र प्राप्त नहीं हुआ। मतदाता सूची में भी उनका नाम नहीं था। चाहते हुये भी वे मतदान करने से वंचित रह गए। इसकी जिम्मेदारी किसी पर तो होगी लेकिन मतदाताओं का दोष कतई नहीं है।
दरअसल नए मतदाताओं के परिचय पत्र, मृतक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाने और स्थानांतरित होकर आने-जाने वाले मतदाताओं के नाम नए स्थान पर स्थानीय मतदाता सूची में जुड़वाने अथवा हटाने की प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता है। इसमें कंप्यूटर / सॉफ्टवेयर / एप का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। जब चुनाव आयोग के निर्देशानुसार मतदाता परिचय पत्र को आधार के साथ जोड़ दिया गया है तो मतदाता सूची में गलतियां होने की बहुत कम संभावना होनी चाहिए। कहीं संयोग ही हो सकता है कि एक ही नाम के मतदाता और उनके पिता, पति अथवा पत्नी का नाम मिलता हो। सॉफ्टवेयर के जरिए पता लगाया जा सकता है कि एक ही नाम के यदि अनेक मतदाता हैं तो आधार कार्ड में दर्ज मोबाइल नंबर से पुष्टि की जा सकती है। यदि एक ही मतदाता के एक से अधिक स्थान पर मतदाता सूची में नाम दर्ज है तो आसानी से पता लगाया जा सकता है। इस प्रक्रिया से मतदाता की इच्छा अनुसार चाहे गए स्थान पर मतदाता सूची में नाम दर्ज कर अन्य स्थानों से उसका नाम हटाया जा सकता है। इसी तरह यदि किसी मतदाता की मृत्यु हो जाती है तो परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी होती है कि वे मृतक का नाम मतदाता सूची से हटवाए के लिये चुनाव कार्यालय अथवा बी.एल.ओ. को जानकारी दे ताकि समय रहते नाम हटाया जा सके। मृतकों के नाम नगर निगम द्वारा भी चुनाव कार्यालय में नियमित रूप से भेजे जाने चाहिए जिससे मृत्यु प्रमाण पत्र के आधार पर मतदाता सूची से नाम हटाए जा सके। मतदाता सूची को सॉफ्टवेयर के जरिए हर माह अद्यतन (अपडेट) किया जा सकता है। यह कोई कठिन कार्य नहीं है केवल इच्छा शक्ति की कमी हो सकती है।