कुंवारी कन्याओं का उत्सव “संजा पर्व”
कुंवारी कन्याओं का उत्सव “संजा पर्व”
देवास. वर्तमान समय में मनोरंजन के अनेक माध्यम हो गये हैं. गांव – गांव में अब टेलीविजन की पहुंच हो गई है। चौबीसों घंटे अपनी रूचि के अनुसार ज्ञान, विज्ञान, मनोरंजन, पर्यटन, राजनीति सहित तमाम विषयों पर बेशुमार जानकारी आसानी से उपलब्ध हो रही है। मोबाईल पर सोशल मीडिया के जरिये भी कही भी कभी भी कोई भी जानकारी, मनोरंजन का आनंद ले रहे हैं। भारत सहित विश्व के अधिकांश मोबाईलधारी औसतन तीन से चार घंटे सोशल मीडिया पर ही व्यस्त रहते है। ऐसी स्थिति में पारम्परिक संजा, संझा, या सांझी के नाम से प्रचलित पूरे पंद्रह दिनों तक मनाये जाने वाले “संजा पर्व” त्यौहार को विशेषकर ग्रामीण युवतियां आज भी उत्साह के साथ मना रही हैं तो इसके सराहना की जानी चाहिये। इन दिनों मालवा निमाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों में संजा पर्व की धूम है। हालांकि समय परिवर्तन के साथ इस त्यौहार पर भी आधुनिकता का असर पड़ा है फिर भी वर्ष भर इस त्यौहार की प्रतीक्षा रहती है।
जब श्राद्ध पक्ष शुरू होता है, उसी दिन से संजा का लोकपर्व भी शुरू हो जाता है. उत्सव का शुभारम्भ भाद्रपद की पूर्णिमा से होता है। उन दिनों श्राद्धपक्ष का भी समय रहता है। सांझी माता को कुंवारी कन्याओं की देवी भी कहा जाता है। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर के लिए 16 दिन तक संजा माता की उपासना करती हैं। संजा माता का चित्र दीवार पर पीली मिट्टी या गोबर से उकेरा जाता है। उसके बाद उकेरे गये चित्र का श्रंगार किया जाता है। मान्यता है कि सोलह दिनों के लिए संजा माता अपने पीहर लौटती हैं और वहां उनकी सहेलियां उनके साथ ख़ूब हंसी-ठिठोली करती हैं। सहेलियों के बीच संजा बाई को लेकर लोकगीतों के माध्यम से हास परिहास भी किया जाता है । यह भी मान्यता है कि शिवपुराण में सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी की पुत्री संध्या बताया गया है। संध्या ने चंद्रभाग पर्वत पर जाकर शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। श्राद्ध में इस उत्सव को मनाने के पीछे कारण यह माना जाता है कि इन दिनों देवी पार्वती अपनी मायके लौटती है।
देवास जिला की टोंकखुर्द तहसील के ग्राम हरनावदा के श्री पपलेश जोशी ने संजा बाई का एक गीत भेजा है.. आप भी पढ़िये...
मालवा निमाड़ में घराघर संजा बई आ गई है। कोयल से भी मीठी आवाज में बहन-बेटियों के गले से ये गीत सुनाई देने लगे हैं । संजाबई 28 सितम्बर तक रहेंगी।
संझा - तू थारा घर जा,कि थारी माय
मारगी,
थारी माय कूटगी कि चांद
गयो गुजरात, हिरण का बड़ा-बड़ा दांत।
कि पोर्या पोरई डर गा कि चमकगा।
छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाए,
ओ म बठी संझा बाई सासरे जाए,
घाघरो घमकाती जाए,
लूगड़ो लटकाती जाए
बिछिया बजाती जाए।
म्हारा आकड़ा सुनार,
म्हारा बाकड़ा सुनार
म्हारी नथनी घड़ई दो मालवा जाऊं
मालवा से आई गाड़ी महिसर होती जाए
एम बठी संझा बाई सासरे जाए।
संझा बाई का सासरे से, हाथी भी आया
घोड़ा भी आया, जा वो संझा बाई
सासरिए...
संजा तो मांगे लाल-लाल फुलड़ा
कां से लाउं बई लाल-लाल फुलड़ा
म्हारा बीरा जी माली घरे जाए
ले बई संजा लाल-लाल फुलड़ा
संजा तो मांगे लड्डू पेड़ा
कां से लाऊं बई लड्डू-पेड़ा
म्हारा बीरा जी हलवाई घरे जाए ले बई संजा लड्डू-पेड़ा
संजा गीत.....
संजा तो मांगे हरो हरो गोबर
कां से लाउं बई हरो हरो गोबर
संजा का पिताजी माली घर गया
वां से लाया हरो हरो गोबर
संजा तो मांगे लाल लाल फुलड़ा
कां से लाउं बई लाल लाल फुलड़ा
संजा का पिताजी माली घर गया
वां से लाया लाल लाल फुलड़ा
संजा तो मांगे मेवा मिठाई
कां से लाउं बई मेवा मिठाई
संजा का पिताजी हलवई घर गया
वां से लाया मेवा मिठाई ।
संजा का सासरे जावांगा, खाटो रोटा खावांगा, संजा की सासू दुपल्ली, चलते रस्ते मारेगी, असी कसी मारे दारिकी, चार गुलाटी खायेगी।
संजा तू बड़ा बाप की बेटी, तू खाए खाजा रोटी, तू पहने मानक मोती, पठानी चाल चले, गुजराती बोली बोले।
जीरो लो भई जीरो लो जीरो लइने संजा बई के दो, संजा को पीयर सांगानेर परण पधार्या गढ़ अजमेर। (इस गीत में वर्णित सांगानेर हमारा राजस्थान में पैतृक गांव है)
संजा बाई का लाड़ाजी, लूगड़ो लाया जाड़ाजी असो कई लाया दारिका, लाता गोट किनारी का ।
पपलेश जोशी, हरनावदा, देवास