नौ रात्रि त्यौहार और शेरावाली की महत्ता... आलेख... डा. बालाराम परमार "हंसमुख"
नवरात्रि त्यौहार और शेरावाली की महत्ता
* डा. बालाराम परमार "हंसमुख"
भारतीय संस्कृति को तीज त्यौहारों की जननी माना जाता है। भारत - भारती के पंचांक में प्रति दिन कोई न कोई उत्सव मनाने का उल्लेख मिलता है। कुंवार महीने में भारत के साथ साथ विश्व के अधिकांश भागों में शक्ति की देवी- दुर्गा, अंबिका, सर्वेश्वरी और त्रिदेव जननी की पूजा अर्चना का त्यौहार "नौ रात्रा" बड़े ही धूमधाम और उत्साह से मनाया जाता है। नारी शक्ति का प्रतीक यह त्यौहार दशहरे के 9 दिन पहले शुरू होता है और प्रतिदिन किसी न किसी देवी रूपा के रूप में मना कर मनुष्य अपने को धन्य मानता है। हिंदू और सनातन धर्म में मान्यता है कि 'दुर्गा' आदि अनादि शक्ति है। यह ब्रह्मांड की उत्पत्ति के पूर्व में भी थी । यह शक्ति अकेले ही प्रकट हुई मानी जाती है। आगम शास्त्र के अनुसार
जब ब्रह्मांड में कुछ नहीं था, तब देवी को केवल अपनी छाया ही दिखती थी। इसी स्वबिंब से माया और माया से मानसिक शिव की उत्पत्ति हुई। "तदिब्म्वं तू कवेन्माया- तत्र मानशिव"। अतः 'दुर्गा' पराशक्ति, सर्वव्यापी एवं सत् चित आनंदरूपा है ।
सत्य का सत्यार्थ भी यही कहता है कि शक्ति स्वयं प्रकाशित होती है। जो प्रकाशमान है, वह चलाए मान है और जो चलाए मान है,वही आत्मा है । और वही शक्ति नित्य निर्विकार चेतना के कारण परमात्मा है । चेतना का प्रकाश पुंज होने के कारण दुर्गा महात्रिपुर सुंदरी है। शायद यही कारण है कि भारतीय वेदों और पुराणों में वर्णित आदि अनादि पराशक्ति को काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, मातंगी, कमला, पत्यंगिरी, दुर्गा, चंडी, गायत्री, सावित्री, सरस्वती तथा ब्रह्मानंदकला आदि के रूप में पूजा जाता है। वेदों के अनुसार अदिति समस्त ब्रह्मांड की आधार है। इसलिए इसे समस्त प्राणियों, देवताओं, गन्धर्वो, मनुष्यों और असुरों की जननी माना जाता है। अतः दुर्गा सनातनियों और हिंदुओं की सर्वमान्य देवी है और इस पराशक्ति को सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन को "कुल देवी" के रूप में पूजते हैं।
नवदुर्गा का त्यौहार पश्चिमी बंगाल तथा गुजरात में देखते ही बनता है । पश्चिमी बंगाल में इस नौ दिन के त्योहार को 'काली पूजा' तथा गुजरात में 'नवरात्रि गरबा' के रूप में जाना जाता है। भारतीय पौराणिक मान्यताओं में सुर और असुर के बीच लड़ाई झगड़े की अनेकों किवदंतियां प्रचलित हैं। कहते हैं कि 100 वर्षों की लड़ाई लड़ने के बाद विजयी महिषासुर घमण्ड के साथ इंद्र के आसन पर बैठकर देवताओं के साथ मनमानी करने लगा था। जिससे विष्णु और शिव क्रोधित होने लगे। क्रोधित शरीर से स्वेत निकलने लगा और यही स्वेत दिव्य सुंदर नारी के रूप में परिवर्तित हो गया। मान्यता के अनुसार इसी नारी शक्ति के हाथों महिषासुर का विनाश लिखा था। इस देववाणी से प्रसन्न होकर असुरों को नाश करने की गरज से देवताओं ने अस्त्र-शस्त्र, समुद्र ने कमल और हिमालय ने वाहन के रूप में सिंह को उपहार में दिया था। "अददज्जलधिस्तस्चै पङक्जं चातिशोभम्। हिमावन वाहनं सिंह रत्नानि विविधानि च।।" इन्हीं अस्त्र शस्त्र की मदद से चामुंडा ने सिंह पर सवार होकर गर्जना करते हुए महिषासुर का वध किया था। मां दुर्गा के वाहन सिंह ने भी युद्ध में आसुरी सेना को तितर-बितर करने में अहम योगदान दिया। "हिनस्तीति सिंह" की व्युत्पति के अनुसार सिंह एक हिंसा निपुण प्राणी है। गठीला शरीर, त्वरित स्पूर्ति, अदम्य साहस व शिकार करने में निपुणता के कारण गजराज भी उसकी चपेट में आकर अपने प्राणों से हाथ धो बैठते हैं। सिंह को चालाक, बुद्धिमान, धैर्य तथा हिंसक प्रवृत्ति होने के कारण वह वन का राजा कहलाता है। विद्वानों के अनुसार इंद्रियों के द्वारा नाना प्रकार के विषयों में भटकने वाले मन को भी सिंह कहते हैं । मन रूपी सिंह समस्त शरीर को मथ डालता है। अतः मन को नियंत्रित करने की युक्ति अत्यंत आवश्यक है। शक्ति की प्रतीक दुर्गा जब सिंह पर विराजमान होती है तो सिंह वश में होकर दूर्गा का आदेश मानने को विवश हो जाता है। प्रकार सर्वशक्तिमान आदि अनादि शैलपुत्री भगवत दुर्गा के वाहन 'सिंह' की महत्ता भी सिद्ध है। मां दुर्गा की 9 दिन आराधना करने के बाद दशहरे को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।
नारी शक्ति को अपरंपार माना गया है । शास्त्रों में भी और विश्व के अधिकांश संविधान में भी। विश्व के अधिकांश शक्तिशाली राजाओं को सिंह पर आरूढ़ अथवा सिंह के बीच विराजमान दर्शाया गया है । यही कारण है कि राजाओं के बैठने के स्थान को सिंहासन की संज्ञा दी गई है। दक्षिणे पूर्णतः सिंहं समग्र धर्मभिश्वरम। वाहनों पूजमेत्देव्या धृतं येनचराचरम।। अर्थात सिंह धर्म का स्वरूप है, जो संसार की समस्त शक्ति धारण करने की क्षमता रखता है। सत्य का उद्घाटन भी यही है कि जिसके भी पास धर्म सम्मत शक्ति है। उसके सामने कुछ भी असंभव नहीं । अधर्म पर धर्म की विजय की बात हिंदू धर्म में बार-बार कहीं गई है। अधर्मी शक्तियों के उपद्रव को दुर्गा जी धर्म रूपी सिंह पर विराजमान हो कर आलौकिक पराक्रम का पट्टी पहाड़ा पढ़ना सिखाती है। दुर्गा और सिंह दोनों शक्ति के प्रतीक होने के कारण नौ दुर्गा का त्यौहार पावन है। शक्ति प्रदत है। भक्ति मार्ग का अप्रतिम पथ है । मां, बहन, पत्नी और पुत्री के रूप में नारी शक्ति की ध्वजा का वाहक है। नौ रात्रा का त्यौहार सुखमय तथा शान्तिमय जीवन जीने की कला सिखाता है।
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डॉ बालाराम परमार 'हंसमुख'
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