पर्वतारोहियों की दुनिया में

गुंजायमान हो रहा है गुंजन का नाम

 

वाराणसी. कहा जाता है कि यदि  इरादे फौलादी  हों  और मन में कुछ कर गुजरने का जुनून सवार हो तो  मनुष्य सभी बाधाओं को पार कर मंजिल तक पहुंच ही जाता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है वाराणसी की 48 वर्षीय गुंजन अग्रवाल ने। गुंजन ने यूरोप ( रूस ) की सबसे बड़ी पर्वत की चोटी एलब्रश पर फतह हासिल की है। इसके पहले वे 20600 फुट           ऊंची लद्दाख की चोटी पर भी चढ़ चुकी हैं।  सबसे खास बात ये है कि गुंजन की आयु 48 साल की है और इनका बड़ा बेटा उच्चतम न्यायालय में वकील है तथा छोटी बेटी भी अपने भाई के नक्शे कदम पर चलने की तैयारी कर रही हैं।  वैसे गुंजन बेकरी और फ्लावर की दुकान का संचालन करती हैं लेकिन पर्वतारोहण के शौक ने उन्हें आम से खास बना दिया है।  खेल और पर्वतारोहण में उनकी विशेष रूचि है।

       गुंजन पहली बार लद्दाख की चोटी पर 2022 मेंदूसरी बार भी लद्दाख की चोटी पर 20600 फ़ीट की ऊचाई पर चढ़ चुकी हैं। दो बार पर्वत की ऊँची चोटी पर चढ़ने के बाद उनके मन में आगे भी पर्वतारोहण की जिज्ञासा हुई और पूना की एडवेंचर संस्था 'एडवेंचर पल्स पूना” में कुछ समय प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् इन्होने 'रसियन क्लाइंबर एसोसिएशन' संस्था से संपर्क किया। इस संस्था ने यूरोप ( रूस ) की सबसे बड़ी पर्वत की चोटी एलब्रश पर पर्वतारोही समूह के साथ अगस्त, 2024 में जाने की अनुमति दे दी। गुंजन ने सबसे ऊंची चोटी एलब्रश  पर 6:30 घंटे में 5642 फीट  की ऊंचाई  तय की। गुंजन 30 अगस्त, 2024 को रात्रि में 11.30 बजे चढ़ाई शुरू की और 31 अगस्त को सुबह 6.30 बजे यूरोप की सबसे ऊँची चोटी एलब्रश पर पहुंचने में सफल रहीं।

       गुंजन ने बताया कि ऊँची चोटी के एक तरफ काला सागर और दूसरी  तरफ कैस्पियन सागर था। स्थिति बड़ी ही डरावनी और खतरनाक थी, क्योंकि वहां तापमान शून्य से 30 डिग्री कम था । उन्होंने बताया कि चोटी पर चढ़ाई के दौरान लगातार बर्फबारी हो रही थी। जिससे कभी भी दुर्घटना होने की आशंका बनी रही। साथ ही उतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की भी कमी थी।

     गुंजन अग्रवाल इस उपलब्धि का श्रेय बनारस रेल इंजन कारखाना  के फुटबॉल कोच हीरा सिंह को देती हैं ।  वे बताती हैं कि हीरा सिंह ने प्रतिदिन सुबह 5 से 6 घंटे ग्राउंड में फिजिकल ट्रेनिंग देकर  इस लायक बनाया कि मैं ऊँची से ऊँची पर्वत की चोटी पर चढ़ सकूं। गुंजन की  हार्दिक इच्छा है कि वह एवरेस्ट चोटी को भी फतह  करूँ । इसके लिए वह अभी से ही  अपनी तैयारी शुरू कर दी हैं। गुंजन की उपलब्धि इसलिए और सराहनीय है कि पूरी पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए बिना किसी विशेष प्रशिक्षण के उन्होंने यह अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य किया है। वाराणसी में न तो पर्वतारोहण के प्रशिक्षण की सुविधा हैं न ही यहाँ कोई माहौल है। उन्हें परिवार का तो पूरा सहयोग मिला है लेकिन सरकारी प्रोत्साहन या आर्थिक सहयोग प्राप्त नहीं हुआ है।