कबीर साहेब की वाणी का पश्चिमी देशों में प्रभाव

आलेख -  डॉ बालाराम परमार 'हॅंसमुख

 

आश्चर्य किंतु सत्य का उद्घाटन यह है कि कबीर साहब के जमाने में पूरब और पश्चिम की अवधारणा नहीं थी, क्योंकि उस समय तक भारत में यूरोपीय लोगों का आगमन नहीं हुआ था। फिर भी कबीर साहब

 के विचार और शिक्षाएं सार्वभौमिक होने के कारण न केवल एशिया महाद्वीप में बल्कि पश्चिमी देशों में भी प्रसिद्ध हैं।     

        पश्चिमी देशों को आमतौर पर यूरोप : जैसे - ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, और स्पेन। उत्तरी अमेरिका: जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, और मेक्सिको।ऑस्ट्रेलिया और ओशिनिया के देश जैसे- ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, और पापुआ न्यू गिनी। दक्षिण अमेरिकी देश जैसे- ब्राजील, अर्जेंटीना, और चिली आदि समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो मुख्य रूप से पश्चिमी संस्कृति, मूल्यों, और राजनीतिक प्रणालियों को साझा करते हैं। 

       पश्चिमी देशों के साहित्य जगत में कबीर साहब की वाणी-विचार के प्रभाव को इस प्रकार समझा जा सकता है:

1. आध्यात्मिकता और व्यक्तिवाद: कबीर के विचारों ने पश्चिमी देशों में आध्यात्मिकता और व्यक्तिवाद को प्रभावित किया है, जिसमें व्यक्तिगत अनुभव और आत्म-ज्ञान पर जोर दिया गया है।

 

2. सामाजिक न्याय और समानता: कबीर के विचारों ने पश्चिमी देशों में सामाजिक न्याय और समानता की भावना को प्रभावित किया है, जिसमें जाति और वर्ग के भेदभाव के खिलाफ बात की गई है।

 

3. प्रेम और करुणा: कबीर के विचारों ने पश्चिमी देशों में प्रेम और करुणा की भावना को प्रभावित किया है, जिसमें मानवता के प्रति प्रेम और सहानुभूति पर जोर दिया गया है।

 

4. विश्व शांति और एकता: कबीर के विचारों ने पश्चिमी देशों में विश्व शांति और एकता की भावना को प्रभावित किया है, जिसमें मानवता की एकता और शांति पर जोर दिया गया है।

 

5. साहित्य और संगीत: कबीर के विचारों ने पश्चिमी देशों में साहित्य और संगीत को प्रभावित किया है, जिसमें उनके दोहे और भजनों को पश्चिमी साहित्य और संगीत में शामिल किया गया है।

 

       "कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।

ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।।" जैसे सार्वभौमिक विचारों ने पश्चिमी देशों में एक गहरा प्रभाव डाला है और मानवता के लिए एक नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है।

      जिस समय कबीर साहब भारत में अपने समकालीन 'राम भक्ति और कृष्ण भक्ति' काव्य धारा के संतो के बीच अपने शबद के माध्यम से  धार्मिक बुराइयों: कर्मकांड और रीति-रिवाजों, मूर्ति पूजा और धर्मों के बीच भेदभाव और सामाजिक बुराइयाँ: जाति प्रथा,सामाजिक अन्याय,लालच और स्वार्थ,महिलाओं की दुर्दशा जैसी बुराइयों की आलोचना करके मानवता को सही रास्ते पर लाने का प्रयास कर रहे थे। लगभग उसी समय यूरोप में विलियम शेक्सपियर , जॉन मिल्टन (इंग्लैंड), जीन-जैक्स रूसो (फ्रांस), इमैनुएल कांट एवं फ्रेडरिक नीत्शे (जर्मनी) अपनी कविताओं और नाटक के माध्यम से कबीर साहब की शिक्षाओं के समान ही मानवता की स्थिति, जीवन के अर्थ, और नैतिकता पर प्रकाश डालते दिखाई देते हैं। जॉन मिल्टन की कविता "पैराडाइज लॉस्ट" (खोया हुआ स्वर्ग) में वह लिखते हैं कि "बेहतर है शासन करना नरक में, बजाय स्वर्ग में पराधीन रहने के।" कबीर साहब की शिक्षाओं के समान ही युरोपीयन समाज को जगाते प्रतीत होते हैं।  

       जब अमेरिका 1776 में यूनियन जेक से आजाद हुआ तब वहां भी अंग्रेजों द्वारा मानवीय भेदभाव होने के कारण मानवतावादी दृष्टिकोण से ओतप्रोत लेखन शुरू हुआ। राल्फ वाल्डो एमर्सन , हेनरी डेविड थोरो, वाल्ट व्हिटमैन,एमिली डिकिंसन और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे समाज सुधारकों ने अपनी लेखनी में कबीर वाणी रूपी स्याही भर कर व्यक्तिवाद, स्वतंत्रता, प्रकृति के महत्व, मानवता की समानता, न्याय, प्रेम, सरल जीवन, प्रकृति के महत्व, और नागरिक अवज्ञा पर अपने विचार उड़ेलते दिखाई पड़ते हैं।

      भारत के कई लेखकों और विद्वानों ने कबीर साहब की शिक्षाओं को पश्चिमी देशों में फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिनमें प्रमुख नाम हैं:

1. रबीन्द्रनाथ टैगोर: टैगोर ने कबीर साहब की शिक्षाओं का अनुवाद अंग्रेजी में किया और उन्हें पश्चिमी देशों में प्रस्तुत किया।

2.विवेकानंद: विवेकानंद ने कबीर के विचारों को अपने व्याख्यानों में शामिल किया और उनके दोहों को उद्धृत किया। 

3. आर के नारायण: नारायण ने कबीर साहब की शिक्षाओं पर आधारित पुस्तकें लिखीं और उन्हें पश्चिमी देशों में प्रकाशित किया।

4. उमाशंकर जोशी: जोशी ने कबीर साहब की शिक्षाओं का अनुवाद अंग्रेजी में किया और उन्हें पश्चिमी देशों में प्रस्तुत किया।

5. प्रेमचंद: प्रेमचंद ने कबीर साहब की शिक्षाओं को अपनी कहानियों में शामिल किया और उन्हें पश्चिमी देशों में फैलाया।

6. विनोबा भावे: विनोबा भावे ने कबीर के विचारों को पश्चिमी देशों में फैलाया और उनके भजनों को गाया।

7. जे. कृष्णमूर्ति: कृष्णमूर्ति ने कबीर के विचारों को अपने व्याख्यानों में शामिल किया और उनके दोहों को उद्धृत किया।

8. ओशो (रजनीश): ओशो ने कबीर के विचारों को अपने व्याख्यानों में शामिल किया और उनके दोहों को उद्धृत किया।

9. महात्मा गांधी: गांधी जी ने कबीर साहब की शिक्षाओं को अपने लेखन और व्याख्यानों में शामिल किया और उन्हें पश्चिमी देशों में प्रसिद्ध किया।

10. पार्थसारथी राजगोपाल: राजगोपाल ने कबीर के विचारों को अपने व्याख्यानों में शामिल किया और उनके दोहों को उद्धृत किया।

11. पिछले एक दशक से मालवा क्षेत्र के प्रसिद्ध कबीर भजन गायक एवं विचारक पद्मश्री प्रह्लाद सिंह टिपानिया और उनकी शिष्या बहन लीन्डा द्वारा अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में कबीर भजन गायन और प्रचार प्रसार के कारण विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थाओं में विस्तार हो रहा है।

      कबीर साहब की शिक्षाएं जैसे कि " अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप "; ने पश्चिमी देशों में भी लोगों को प्रभावित किया है। पाश्चात्य संस्कृति में कर्म को प्रधानता दी गई है और कबीर साहब कर्म समाज के समर्थक थे। उनकी रचनाओं में इसकी झलक साफ़ झलकती है। इसलिए पाश्चिम समाज कबीर को जागरण युग का अग्रदूत मानता है।

        पश्चिमी देशों में कबीर साहब की शिक्षाओं को जिन तरीकों से प्रस्तुत किया वे इस प्रकार है ।

 1.अनुवाद: कबीर साहब की शिक्षाओं का अनुवाद अंग्रेजी और अन्य पश्चिमी भाषाओं में किया गया है, जिससे वे पश्चिमी देशों में भी पढ़े  जाते हैं।

2. संगीत: कबीर साहब की शिक्षाओं को संगीत के माध्यम से भी प्रस्तुत किया गया है, जिससे वे अधिक आकर्षक और यादगार बन जाती हैं।

3. पुस्तकें: कबीर साहब की शिक्षाओं पर आधारित पुस्तकें पश्चिमी देशों में भी प्रकाशित की गई हैं, जिनमें उनकी शिक्षाओं का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।

4. व्याख्यान: कबीर साहब की शिक्षाओं पर व्याख्यान पश्चिमी देशों में भी दिए जाते हैं, जिनमें उनकी शिक्षाओं का अर्थ और महत्व समझाया जाता है।    

          इस तरह हम देखते हैं कि कबीर साहब की विश्व समुदाय को झकझोर देने वाली वाणी "तू कौन है, तेरा क्या है, तेरी क्या है माया?

जगत में तेरा क्या है, तू क्या लेकर आया?"

के संबोधन से मानव को अपनी असली पहचान और मूल्यों को समझाया । यह दोहा विश्व समुदाय को आत्म-विचार और आत्म-मूल्यांकन के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार, कबीर साहब की शिक्षाएं पश्चिमी देशों में भी प्रसिद्ध हैं और लोगों को प्रभावित कर रही हैं।

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डा. बालाराम परमार "हंसमुख" 

सेवानिवृत प्राचार्य, केंद्रीय विद्यालय संगठन