राष्ट्रीय समाचार पत्र "कृषक जगत", भोपाल  में प्रकाशित आलेख आप सुधी पाठकों के अवलोकनार्थ .........  

कलयुग केवल योग आधारा….   

·       * मधुकर पवार

गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के उत्तराखंड में कलयुग की महिमा में एक चौपाई कलयुग केवल नाम आधारा । सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा.।।”  लिखकर यह संदेश दिया है कि कलयुग में केवल राम नाम का जाप करने मात्र से ही जीवन की नैया को पार लगाया जा सकता है।  केवल भगवान का नाम लेने मात्र से ही भवसागर पार करना आसान हो जाता है। इस चौपाई को वर्तमान परिपेक्ष्य में योगाचार्य स्वामी रामदेव ने इस तरह प्रस्तुत किया है – “कलयुग केवल योग आधारा. करत करत नर उतरहिं पारा.”  योग गुरू रामदेव कहते हैं कि वर्तमान समय का खान-पान, अनियमित दिनचर्या, पर्यावरण प्रदूषण और शारीरिक श्रम की कमी आदि के कारण आबादी का अधिकांश हिस्सा किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है। रोग ग्रस्त होने पर उपचार के लिए चिकित्सकों को दिखाना और दवाइयों  का सेवन करना होता है।  कभी-कभी इन दवाइयों के दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते हैं।  इसलिए प्रयास यह करना चाहिए कि बीमार ही ना हो। नियमित दिनचर्या, संतुलित आहार और इन सब के साथ योग, प्राणायाम, ध्यान और आयुर्वेद की दवाईयों के सेवन से यह संभव है।

 सन 2020-21 में कोरोना के प्रकोप से पूरा विश्व ही सहम गया था। लाखों जानें उचित इलाज के अभाव में काल के गाल में समा गई। कोरोना ने पूरे विश्व का परिदृश्य ही बदल दिया था। कोरोना का नाम लेने से ही आज भी भुक्तभोगियों के शरीर में सिरहन सी दौड़ जाती है। उस दौरान जब पूरा विश्व कोरोना की दहशत में जी रहा था तब स्वामी रामदेव ने सार्वजनिक रूप से योग और आयुर्वेद को कोरोना से बचाव का एकमात्र उपाय बताया था। उस समय भले ही इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था लेकिन यह भी सत्य है कि जिन्होंने योग और आयुर्वेद का उपयोग किया था, वे कोरोना से सुरक्षित रहे। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रही। यदि यह कहा जाए कि योग की वजह से ही वे कोरोना के प्रकोप से बच पाए हैं तो इस दावे को अतिशयोक्ति नहीं कहा जाना चाहिए। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में कुछ बीमारियां जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड जैसी बीमारियों का समाधान केवल यह है कि जीवन पर्यंत दवाइयां खाते रहना है। लेकिन जो इन बीमारियों से पीड़ित हैं और वे नियमित योग, प्राणायाम और आयुर्वेद की दवाइयां का सेवन करते हैं तो वे ना सिर्फ इन बीमारियों को नियंत्रित करने में सफल रहे हैं बल्कि वह इन बीमारियों से मुक्त भी हो जाते हैं।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की रिपोर्ट के अनुसार सन 2022 में कैंसर 14 लाख 61 हजार से अधिक नये मामले दर्ज किये गए थे। सन 2022 में ही कैंसर से 8 लाख 80 हजार से अधिक मरीजों की मौत हो गई थी। एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक 9 भारतीय में से एक को अपने जीवन काल में कैंसर होता है।  अनियमित दिनचर्या, खानपान, शारीरिक श्रम की कमी और तनाव के चलते मधुमेह के रोगियों की संख्या में भी काफी वृद्धि हो रही है।  सन 2023 में भारत में करीब 10 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित पाए गए थे।  भारत में हृदय रोग की भी गंभीर समस्या है। कोरोना के बाद तो यह और घातक हो गई है। देश में 6 करोड़ से अधिक लोग हृदय रोग से पीड़ित हैं। इसी तरह मोटापा भी पूरे विशे की एक बड़ी समस्या बन गया है। मोटापा से अनेक बीमारियां होने की सम्भावना बनी रहती हैं । भारत में सन 2022 में करीब सवा करोड़ बच्चे, दो करोड़ 60 लाख पुरुष और चार करोड़ 40 लाख महिलाएं मोटापा की शिकार थीं। अनियमित दिनचर्या, जंक फूड, शारीरिक श्रम में कमी मोटापा होने का प्रमुख कारण है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अनुसार भारत में उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के मरीजों की संख्या भी 20 करोड़ से अधिक है। इसके अलावा थायराइड, अर्थराइटिस, किडनी जैसे रोगियों की भी अच्छी खासी संख्या है। इन सबको मिला दिया जाए तो करीब तीन चौथाई आबादी किसी न किसी रोग से पीड़ित होगी।

योग विश्व की सबसे प्राचीनतम विधा है। भागवत गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को योग का महत्व बताते हुए कहा था – “योग से कार्य में कुशलता आती है। मन नियंत्रित रहता है और योग इंद्रियों को भक्ति से जोड़ता है। योग से शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन और सामन्जस्य बना रहता है। योग से निस्वार्थ कार्य करने की प्रेरणा मिलती है और व्यक्ति कर्म करते हुए भी बुरे कर्मों से दूर रहता है। योग से व्यक्ति को मूढ़ता, अज्ञानता, जड़ता, नश्वरता, दिव्यता और शास्वतता के भेद का ज्ञान होता है। योग से ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति होती है और वह 16 कलाओं में संपन्न संपूर्ण निर्विकारी, संपूर्ण अहिंसक और मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप बन जाता है।

 

 योग के बारे में एक ब्रह्म वाक्य है करो योग - रहो निरोग”.  इन चार शब्दों में योग की महिमा को बताया गया है कि योग करके निरोग रहा जा सकता है। जो नियमित योग, प्राणायाम और ध्यान करते हैं वे बहुत कम बीमार पड़ते हैं। वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं। सभी व्यक्ति निरोगी रहना चाहते हैं और वे यह भी चाहते हैं कि स्वस्थ रहकर जीवन का लुत्फ उठाएं। लेकिन काम की व्यस्तता, अनियमित दिनचर्या, असंतुलित भोजन, तनाव, पर्यावरण प्रदूषण, मिलावटी और रसायनयुक्त खाद्य पदार्थ आदि के कारण बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। वर्ष 2020-21 में वैश्विक महामारी कोरोना का अब आंशिक मात्र ही असर है लेकिन कोरोना के बाद हृदयघात की ऐसी अनेक घटनाएं हो रही हैं जिनको देख और सुनकर रूह कांप जाती है। अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि स्वस्थ कैसे रहा जाए ? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर तो सब जानते हैं लेकिन उस पर अमल करने में कोताही बरतने के कारण बीमारियों के शिकंजे में फंस रहे हैं। क्या योग से निरोग रहा जा सकता है, इसका उत्तर हां और नहीं भी  हो सकता है।  यदि विधि नियम पूर्वक योग किया जाए और खानपान का ध्यान रखा जाए तो व्यक्ति निश्चित ही निरोगी रह सकता है। लेकिन किसी प्रशिक्षित योग गुरु के मार्गदर्शन के बिना योग करेंगे तो इसके दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। योग करने के लिए योगाचार्य से सीखना जरूरी होता है ताकि किसी तरह की गलती ना हो।

 जो लोग नियमित योग प्राणायाम और ध्यान करते हैं, उनके आचार, विचार, व्यवहार, दिनचर्या, खान-पान आदि में आश्चर्य जनक रूप से परिवर्तन दिखाई देता है। उनमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है। वे तनाव से मुक्त रहते हैं जिससे तनाव जन्य बीमारियां नहीं होती। नियमित योग करने से शरीर में लचीलापन रहता है जिससे मांसपेशियां, जोड़, त्वचा, ग्रंथियां, आंतरिक अंग, हड्डियां, श्वसन और मस्तिष्क पर सीधा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। योग करने वाला व्यक्ति स्वस्थ और प्रसन्नचित रहता है। योग से शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक रूप से अनेक फायदे मिलते हैं जो मनुष्य के व्यक्तित्व विकास के साथ समाज के लिए भी उपयोगी होता है। व्यक्ति बीमार ही ना हो, योग इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए योग को जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बना लें तो व्यक्ति न केवल स्वस्थ रह सकता है बल्कि समाज और देश के लिए भी अपने कर्तव्य को ईमानदारी से पूरा करने के साथ अपने परिवार की उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त कर सकता है। (साभार कृषक जगत )

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