गड्ढों का रहस्य... व्यंग्य आलेख.... अरूण कुमार जैन

व्यंग्य
गड्ढों का रहस्य
- अरूण कुमार जैन
घोर जंगल में विक्रमादित्य चले जा रहे थे। दिन भर प्रजाजनों से घिरे समस्याएं सुलझाते - सुलझाते राजा विक्रमादित्य थक चुके थे। अभी उनका सब्र का बांध टूटा नहीं था, वे अटूट साहस और पराक्रम के धनी होने के कारण, बिना घबराए प्रजाजन की समस्याओं का निदान तत्काल करते थे। उनके राजतंत्र में लोकतंत्र सर्वोपरि था। राजा हो या रंक, सभी के साथ समान व्यवहार की नीति, उनकी लोकप्रियता का कारण रही। मगर इधर कुछ दिनों से मौसम के अजीब व्यवहार और उसके कारण प्रजाजन के मस्तिष्क में आए बदलाव ने उन्हें हैरान कर रखा था। प्रजा हर रोज कुछ अजीब सा व्यवहार कर रही थी। कलियुग में प्रजा के व्यवहार में फर्क आना तय था, उनकी प्राथमिकताएं बदल रही थी, उनके उद्देश्य में बदलाव आ रहे थे।
पहले की बात और थी .... यथा राजा तथा प्रजा, मगर अब यह गणित भी बदल गया था, इसे अब यूं पढ़ा जाने लगा है, यथा प्रजा तथा राजा। मतलब भी उलट गया है। लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। सूचना का अधिकार भी लागू कर दिया गया है। राजा, राजा न रहा, प्रजा मालिक बन गई है। वह हर कदम पर किंतु, परन्तु करने लगी है। थोड़ा भी जवाब दाएं - बाएं हुआ नहीं कि सूचना के अधिकार के तहत सूचना प्राप्ति हेतु पत्र लिख देती है। राज शासन के कर्मचारी अतिरिक्त बोझ से परेशान हैं, हैरान हैं कि पब्लिक इतने प्रश्न क्यों पूछ रही है? पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ।
यही सब सोचते - सोचते कब लंबा रास्ता पार कर विक्रमादित्य घने जंगल के बीच उस वृक्ष तक जा पहुंचे जहां बेताल उनकी प्रतिक्षा कर रहा था। उन्हें देखते ही बेताल झट से उनके बाईं कंधे पर आ बैठा और उनसे पूछ बैठा- राजन सारे भारत में इस मौसम में रास्तों में गड्ढे क्यों हैं? सरकार क्या कर रही है? पड़ोसी राज्यों में राजाजन क्या कदम उठा रहे हैं? और राजन तुम्हारी सोच क्या है? इतने सारे प्रश्न एक साथ सुनकर विक्रमादित्य एक बारगी चौंक उठे, उन्हें बेताल के प्रश्न से आतंकवादियों की घुसपैठ की बू आने लगी, मगर तत्क्षण विक्रमादित्य ने सिर को झटका, और समझ को ताक पर रख जवाब देना शुरू किया।
विक्रमादित्य बोले - हे बेताल, इस मौसम में रास्तों में इतने गड्ढे होना आम बात है। बारिश अभी - अभी समाप्त हुई है। सड़क बनाने के लिए डामर की जरुरत होती है, मगर अभी बारिश में डामर चिपक नहीं सकता और बनाया हुआ राजमार्ग फिर उखड़ जाएगा, इसलिए हमने पद्धति भी बदल दी है। पहले हम बारिश के पूर्व संधारण कर सड़क सुधार दिया करते थे, इस कारण सड़क के गड्ढे गहरे नहीं हो पाते थे और पानी नहीं ठहरता था। इससे सड़कों का इतना नुकसान नहीं होता था और बारिश समाप्त होते ही तुरंत पेच वर्क किया जाकर दीपावली से पूर्व सड़क अच्छी हो जाती थी। मगर अब हमें ज्यादा विकास का शौक चर्रा गया है। पहले संधारण और बाद में पेच वर्क का कुल बजट जितना रहता था, उससे दुगुना से ज्यादा अभी हम खर्च कर, दीपावली के बाद ही सड़क बनाते हैं। इसके कई फायदे हैं.... जैसे जनता सड़कों पर तेज रफ्तार गाड़ी चलाने से तौबा कर लेती है जिससे सड़क दुर्घटना का औसत कम रहता है। उड़ने वाली धूल से जनता परेशान रहती है और मास्क का प्रयोग करती है जिससे मास्क की बिक्री बढ़ने से कई हाथों को रोजगार मिलता है। दुकानदार को उसे बेचकर काम मिलता है, टर्न ओवर में बढ़ोतरी होती है, जी एस टी ज्यादा मिलता है, टायर की बिक्री बढ़ती है, पंक्चर वालों की चल पड़ती है, फिर नई सड़क बनेगी। टेंडर प्रक्रिया में इंजीनियर कमाएंगे। विभागीय मंत्री की पूछ परख बढ़ेगी। अखबार वालों को विज्ञापन मिलेंगे। वे कमाएंगे तो प्रोजेक्ट की प्रशंसा करेंगे। जनता दचके और हिचकोले खाकर सड़क बनाने की मांग करेगी। हम उसकी मांग को पूरा कर सड़क बनाएंगे। विकासवादी सरकार कहाएंगे। जनता हमें लोकहित की सरकार बताएगी। हमारी नई चिकनी सड़कों को देखकर पर्यटक खुश रहेंगे। हमारी माउथ पब्लिसिटी करेगी। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। टैक्सी वाले, हाईटेक होटल वाले, खाने वाले , सबका धंधा बढ़ेगा और सबको कमाई का मौका मिलेगा। जीडीपी बढ़ेगी, तांगे, रिक्शा वालों को काम मिलेगा, फूल वाले, माला वाले, मंदिर के प्रसाद वाले, सबकी बिक्री बढ़ेगी। पर्यटन स्थलों पर भीड़ बढ़ेगी। बेतरतीब वाहन खड़े होंगे। पुलिस चालान बनाकर खुश होगी । सरकारी कमाऊ पूत खुद भी कमाएंगे। जनता विरोध करने वाले विपक्षियों को कोसेगी जो नई सड़क बनाने का विरोध करेंगे तो उनकी विकास के विरोधी की छबि निर्मित होगी जो उप चुनाव जीतना हमारे लिए आसान करेगी।
हमारे हर निर्णय के पीछे व्यापक लोकहित की भावना सर्वोपरि होती है। फिर हम इस गड्ढा तकनीक का विकास करने की तैयारी में हैं। इस विचार को हम विश्व भर की सरकारों को बेचेंगे। विदेशी मुद्रा कमाएंगे। इसकी अर्थव्यवस्था से सरकार सुदृढ़ीकरण का नया फार्मूला बताएंगे। इसके लिए दूसरी सरकारों को प्रशिक्षित करने हेतु हमारे विशेषज्ञों की टीम तैयार कर, अच्छे दामों पर सुविधा शुल्क लेकर उसे नया मॉडल बनाकर पेश करेंगे। सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय, हमारा ध्येय वाक्य है। इसी के अनुरुप हमारा विज़न और मिशन है। लोकल फॉर वोकल है। इसी के आधार पर हम राष्ट्रीय पुरस्कार पाएंगे और फिर अंतरराष्ट्रीय सम्मान के लिए नामांकित होंगे और उसे भी जीतकर लाएंगे।
वेताल मौन था, उसकी चुप्पी देख राजन ने कहा - बताओ बेताल, तुम्हीं बताओ । राज्य और राष्ट्र मजबूत होगा कि नहीं। अरे जब सड़कें मजबूत होगी तब देश भी मजबूत होगा। यह कोई मजबूर देश की निशानी नहीं है, यह मजबूत देश की निशानी है। सभी का लाभ इसमें छुपा है। नई चमकदार सड़कें देखकर उस पर चलने वाला अपनी किस्मत को धन्यवाद देता है, उसका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। प्रधान सेवक का छप्पन इंच सीना उसे याद आएगा । राम जी की कृपा से वह जो भूल जाता है, वह उसे फिर याद आएगा। अयोध्या के दिन फिरे, वैसे हमारे फिरेंगे। वहां सवा पच्चीस लाख दिये जले, हम भी सवा लाख दिये जलाएंगे। कई कुम्हारों को काम दिलाएंगे। एक नया मंदिर प्रोजेक्ट बनाकर नया माहौल बनाएंगे। सबको काम का काम, बाकी जो बचे वह जय सियाराम।
मंदिर विराजे रघुवीर देख
हनुमान बहुत खुश होंगे
पवन पुत्र पवित्र रह फिर
नया नया काज हमे देंगे
सबकी उन्नति के दाता
प्रकट प्रकृति करे सब
हम कहां भाग्य विधाता
उज्ज्वल "अरुण" दाता
वेताल अब मौन था। उसका ज्ञान गौण था। वह विक्रमादित्य की दृष्टि और होने वाली सृष्टि सुनकर चकित था। उसे विक्रमादित्य की भक्ति और शक्ति पर पूर्ण विश्वास हो गया और उसका भार न बढ़ाते हुए, वह विक्रमादित्य की पीठ छोड़कर पुनः पेड़ पर जा बैठा।
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भारतीय राजस्व सेवा से सहायक आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त श्री अरुण कुमार जैन साहित्य की विभिन्न विधाओं व्यंग्य, कविता, कहानी, समसामयिक विषयों पर लगातार लिख रहे हैं। सेवा के दौरान हिंदी के प्रचार प्रसार में भी महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन किया है। वर्तमान में इंदौर में निवास ।