नये युवा मतदाता : लोकतंत्र के सजग प्रहरी
भारत में आगामी अप्रैल – मई माह में 18 वीं लोकसभा के आम चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सूची का प्रकाशन कर दिया है। आयोग द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार भारत में 96.88 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं जो इस चुनाव में अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। सभी मतदाताओं द्वारा अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिये जागरूक करने के उद्देश्य से चुनाव आयोग ने इस बार ‘मेरा पहला वोट - देश के लिए’ अभियान शुरू किया है। हालाकि चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं को अपने मताधिकार का उपयोग करने के प्रति जागरूक करने के लिये “सुव्यवस्थित मतदाता शिक्षा एवं निर्वाचक सहभागिता कार्यक्रम” – (स्वीप’) अभियान चलाया जा रहा है। यह कार्यक्रम भारत में मतदाता शिक्षा, मतदाता जागरूकता का प्रचार-प्रसार करने एवं मतदाता की जानकारी बढ़ाने के लिए एक प्रमुख कार्यक्रम है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले माह 25 फरवरी को मन की बात कार्यक्रम में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किये गये ‘मेरा पहला वोट - देश के लिए’ अभियान की सराहना करते हुये पहली बार मतदान करने वाले युवा मतदाताओं से अपील की है कि वे अधिक से अधिक संख्या में मतदान करें। उन्होने कहा कि भारत को जोश और ऊर्जा से भरी अपनी युवा शक्ति पर गर्व है। हमारे युवा-साथी चुनावी प्रक्रिया में जितनी अधिक भागीदारी करेंगे, इसके नतीजे देश के लिए उतने ही लाभकारी होंगे। श्री मोदी ने नये मतदाताओं से कहा कि 18 वर्ष का होने के बाद आपको 18वीं लोकसभा के लिए सदस्य चुनने का मौका मिल रहा है। यानि ये 18वीं लोकसभा भी युवा आकांक्षा का प्रतीक होगी। इसलिए आपके वोट का महत्व और बढ़ गया है। आम चुनावों की इस हलचल के बीच, आप, युवा, ना केवल, राजनीतिक गतिविधियों का हिस्सा बनिए, बल्कि, इस दौरान चर्चा और बहस को लेकर भी जागरूक बने रहिए। और याद रखिएगा – ‘मेरा पहला वोट - देश के लिए’।
चुनाव आयोग के साथ जिला प्रशासन और अनेक स्वयं सेवी संस्थाओं के तमाम प्रयासों के बावजूद भारत में मतदान का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम ही रहता है। सन 2019 में सम्पन्न हुये लोकसभा के आम चुनाव में करीब 91 करोड़ मतदाता थे जिनमें से रिकार्ड 67.11 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था जबकि इसके पहले सन 2014 के लोकसभा के आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत 66.40 था। आगामी लोकसभा के आम चुनाव के लिये करीब 96.88 करोड़ मतदाता पंजीकृत है। इनमें 1.85 करोड़ मतदाता 18-19 आयु वर्ग हैं जिन्हें मतदान करने के लिये प्रेरित करना बेहद जरूरी है। हालाकि यह कुल मतदाताओं का केवल 1.91 प्रतिशत ही है जो कुल संख्या का मात्र 2 प्रतिशत से भी कम है लेकिन चुनाव में हार – जीत तो एक मत से भी होती है। इसलिए मत के महत्व को केवल हार –जीत तक ही सीमित नहीं रखना चाहिये बल्कि यह बताने की भी जरूरत है कि आपका एक मत एक योग्य जन प्रतिनिधि को चुनने का अवसर प्रदान करेगा जिससे देश की दशा और दिशा भी तय होगी।
लोकतंत्र में चुनाव की इस प्रक्रिया में मतदाताओं की भूमिका सबसे अहम होती है। चुनाव आयोग का पूरा जोर मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर होता है और पिछले चुनावों के मतदान प्रतिशत पर नजर डालें तो मतदान के प्रतिशत में आंशिक वृद्धि हुई है लेकिन यह नाकाफी है। स्वतंत्र भारत में सन 1951 में हुये लोकसभा के चुनाव में मात्र 44.87 प्रतिशत मतदान हुआ था। सन 1984 में प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की मृत्यु से उपजी सहानुभूति लहर के बाद भी मतदान का प्रतिशत 64.01 को छू पाया था। लेकिन पिछले दो चुनावों, सन 2014 और 2019 में मतदान का प्रतिशत क्रमश: 66.44 और 67.40 रहा जबकि चुनाव आयोग और तमाम एजेंसियां मतदाताओं को अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिये भरसक प्रयत्न करते रहे। इन परिस्थितियों में यह यक्ष प्रश्न है कि मतदाताओं की मतदान के प्रति उदासीनता को कैसे कम किया जाये और वे स्वत: ही मतदान केंद्र पर जाकर मतदान करें।
चुनाव आयोग ने मतदाताओं को जागरूक करने के लिये ‘मेरा पहला वोट - देश के लिए’ अभियान शुरू किया है। निश्चित ही यह अभियान मतदाताओं को मतदान करने के लिये प्रेरित करेगा क्योंकि इस संदेश में देश के विकास में मतदान का महत्व समाहित है। राष्ट्र सर्वोपरि की भावना से ओतप्रोत यह संदेश युवा मतदाताओं को भी अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेगा। पहली बार मतदान करने वाले इन युवा मतदाताओं की रूचि मतदान और आस्था लोकतंत्र में है, यह इस बात से भी सिद्ध होता है कि उन्होने मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवाया है और मतदाता परिचय पत्र बनवाया है। मतदाता परिचय पत्र केवल पहचान पत्र है और इसका उपयोग अपनी पहचान के लिये ही होता है। मतदाता परिचय पत्र के बिना भी व्यक्ति का काम चल सकता है क्योंकि आधार, पी.ए.एन., राशन कार्ड, पासपोर्ट सहित अनेक दस्तावेज हैं जिनका उपयोग पहचान पत्र के रूप में किया जाता है। चुनाव आयोग भी मतदान के समय मतदाता परिचय पत्र के अलावा उपर्युक्त सहित अन्य पहचान पत्रों को भी मान्यता देता है।
पहली बार मतदान करने वाले युवाओं के लिये यह अवसर है कि वे आगामी लोकसभा के आम चुनाव में अपना प्रतिनिधि का चुनाव करने के लिये मतदान कर लोकतंत्र की सबसे जरूरी प्रक्रिया में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। इनमें से प्राय: सभी नये मतदाता अध्ययन कर रहे हैं। हो सकता है अध्ययन के लिये अपने शहर से बाहर भी हो सकते हैं। अपने शहर / गांव में रहने वाले नव मतदाता तो मतदान करेंगे लेकिन शहर के बाहर रहने वाले मतदाताओं को मतदान करने के लिये अपने शहर / गांव आना होगा। इसके लिये अभिभावकों की महत्वपूर्ण भूमिका हो जाती है कि वे अपने बच्चों को मतदान करने के लिये अपने घर अथवा वहां भेजें जहां उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज है। यदि वे ऐसा कर सकें तो इससे ऐसे नव मतदाताओं को मतदान का महत्व समझ में आयेगा। 18-19 वर्ष की आयु के युवाओं को राजनीति की समझ तो कम ही होती है लेकिन उन्हें मतदान का महत्व बताने की जरूरत है और यह जिम्मेदारी शिक्षण संस्थानों के साथ अभिभावकों को भी निभानी चाहिये। ये ही नव मतदाता भविष्य के जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनकर स्वस्थ लोकतंत्र बनाये रखने में अपनी – अपनी भूमिका निभायेंगे चाहे वे किसी भी सेवा, व्यवसाय अथवा राजनीति में अपना केरियर बनायें। स्वस्थ लोकतंत्र का आधार ये ही युवा मतदाता हैं। (मधुकर पवार )