समृद्ध को नहीं दोष गोसांई.... व्यंग्य आलेख... पपलेश जोशी

समृद्ध को नहीं दोष गोसांई
* पपलेश जोशी
तुलसीदास जी ने चौपाई लिखी थी... रवि सुरसरि पावक की नाईं...जिसे वर्तमान समय में समृद्ध को नहीं दोष गोसांई भी कहा जा सकता है। आजकल लोग “समृद्ध को नहीं दोष गोसांई” चौपाई को पढ़कर फूले नहीं समा रहे हैं। व्यक्ति सोचता है कि महाकवि तुलसीदास जी ने रामायण में चौपाई लिखी हैं वे सभी सिद्ध चौपाई हैं। लेकिन औसत बुद्धि वाला व्यक्ति तो छोड़ो, अपने आपको बुद्धिमान मानने वाला व्यक्ति भी उन चौपाईयों के गूढ़ रहस्य को नहीं समझ पाता है। उन्होंने ये चौपाईयां क्यों लिखी है ? इनका क्या उद्देश्य है? व्यक्ति अपनी – अपनी सुविधानुसार उसका अर्थ अपने फायदे के लिये लगा लेता है। व्यक्ति सोचता है कि जो मैंने व्याख्या की है, समय, काल और परिस्थितियों के अनुसार एकदम ठीक है। वह चौपाईयों का अर्थ लगा लेता है। अब इसी चौपाई समृद्ध को नहीं दोष गोसांई को ही ले लीजिए। नये परिवेश में अब समृद्ध का मतलब होता है धन, धान्य से परिपूर्ण व्यक्ति। यहां भी अपनी सुविधानुसार अर्थ लगाया गया है ... जो इच्छा है, उसे पूरा करने में पूरी मेहनत लगा दो। प्रभु श्रीकृष्ण ने भी यही कहा है... कर्म करो, फल की चिंता मत करो।
समृद्ध को नहीं दोष गोसांई का सीधा सा तो यही अर्थ हुआ कि यदि आप सक्षम हैं तो जो मर्जी वो काम करो। कोई भी दोषी नहीं ठहराएगा। किसी प्रकार का आरोप - प्रत्यारोप नहीं लगेगा। इसलिए समृद्ध व्यक्ति बिनदास होकर अपनी मस्ती में हर जगह घूमता है, फिर जो जी में आए, वह करता है। इस चौपाई का युवाओं ने भी कवच धारण कर रखा है। वह जानता है कि रूपया - पैसा के आगे हर कोई बौना नजर आता है। वह हर किसी को खरीदने की कूबत रखता है। जो समर्थ और समृद्ध है, वह सोचता है दुनिया की हर खुशी को वह खरीद सकता है। समृद्धि के चक्कर में एक वर्ग ऐसा तैयार हो गया है जो समाज में वह कर रहा है जिसे करने के लिए दूसरे लोग सोचते तक नहीं हैं। गरीबों को तो समृद्धि के सपने भी नहीं आते। समृद्ध व्यक्ति की दुनिया अलग ही होती है। अनाप-शनाप खर्च करना और अपनी ठसक दिखाना ऐसे व्यक्तियों की आदत में शुमार हो जाता है। किसी को इंतजार करवाना, हर किसी को कुछ भी बोल देना और यहां तक कि अपने बहुत करीबी मित्रों की भी अवहेलना करने से नहीं चूकते। ऐसे लोग समाज को भी अपनी विचारधारा के हिसाब से चलाना चाहते हैं और इसी उधेड़्बुन में सोते- जागते-, खाते-पीते, यानी हर समय केवल एक ही सपना देखते हैं.. मैं कैसे समृद्ध बनू। टाटा – अम्बानी – अदानी न सही, जो जून की रोटी, सिर पर छत, मोबाईल और रिचार्ज करवाने के लिये पर्याप्त राशि भी मिल जाए तो अपने आप को धनवान कहकर अपनी पीठ स्वयं थपथपा सकते हैं लेकिन यह भी देखना होगा कि इस समृद्धि के चक्कर में कहीं हम अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को ही ना भूल जाए और हमारी परंपराओं से कहीं बहुत दूर ना चले जाए। इसी समृद्धि के चक्कर में व्यक्ति अंदर से इतना बेचैन और अशांत हो गया है कि शांति की तलाश में हर काम करने को तैयार है तथा वह रूपया- पैसा भी खर्च करना चाहता है खुशी की तलाश में। कितना अजीब गणित है.... समृद्ध होने के लिये सुख चैन खोया और जब समृद्ध हो गया तब भी सुख चैन नहीं। इसका तो यही अर्थ हुआ कि समृद्ध बने लेकिन अपने अच्छे काम से और अच्छे विचार से ताकि शान्ति से कह सके। इतनी समृद्धि हमें देना दाता... अपनी जरूरतें आसानी से पूरी हो जाए। बस और कुछ नहीं चाहिए।
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पपलेश जोशी देवास जिला की टोंकखुर्द तहसील के ग्राम हरनावदा के निवासी वर्तमान में टोंकखुर्द तहसील मुख्यालय में निवास कर रहे हैं। हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि (एम.ए. हिंदी) और समाज कार्य में स्नातकोत्तर पत्रोपाधि (एम.एस.डब्ल्यू) की शिक्षा प्राप्त पपलेश जन अभियान परिषद में परामर्शदाता और जल जीवन मिशन में प्रशिक्षक के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। साहित्य के विद्यार्थी हैं तो लेखन में भी रूचि है।