अधपका मांस खाने से परजीवी कीड़ा

कर सकता है शरीर में प्रवेश

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एम्स भोपाल में मरीज की आंख से निकाला

एक इंच लंबा जीवित परजीवी

     भोपाल। यदि आप मांसाहारी हैं तो ध्यान रखिए कि मांस पूरी तरह पका हुआ हो। यदि मांस अधपका रह गया है तो हो सकता है कि परजीवी कीड़ा शरीर में प्रवेश कर जाए जिससे स्वास्थ्य सम्बंधी समस्या उत्पन्न होने सम्भावना बढ़ सकती है।

हाल ही में भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)  भोपाल के नेत्र विज्ञान विभाग में एक मरीज भरती हुआ जिसकी आंखों  बार-बार लाली होने और दृष्टि कमजोर होने की समस्या हो रही थी। मध्य प्रदेश के निवासी 35 वर्षीय मरीज ने एम्स में भरती होने से पहले अनेक चिकित्सकों से परामर्श लिया और स्टेरॉयड आई ड्रॉप्स तथा टैबलेट्स का उपयोग किया, जिससे उन्हें केवल अस्थायी राहत मिली। जब उसे काफी कम दिखाई देने लगा तो वह एम्स भोपाल में भरती हुआ जहां जांच में उनकी आंख के कांचीय द्रव (विट्रियस जेल) में एक जीवित परजीवी कीड़ा पाया गया। इस परजीवी की पहचान ग्नाथोस्टोमा स्पिनिजेरम के रूप में हुई, जो आंख के अंदर बहुत ही दुर्लभ रूप से पाया जाता है। अब तक दुनिया में केवल 3-4 मामलों में ही इस परजीवी लार्वा के आंख के विट्रियस कैविटी (कांचीय द्रव) में पाए जाने की रिपोर्ट दर्ज हुई है। यह परजीवी कच्चे या अधपके मांस के सेवन से मानव शरीर में प्रवेश करता है और त्वचा, मस्तिष्क और आंखों सहित विभिन्न अंगों में प्रवास कर सकता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

 मुख्य रेटिना सर्जन डॉ. समेंद्र करखुर  ने बताया कि आंख से एक बड़े और जीवित परजीवी को निकालना अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है। यह कीड़ा पकड़ने से बचने की कोशिश करता है, जिससे सर्जरी और भी मुश्किल हो जाती है। इसे सुरक्षित रूप से निकालने के लिए हमने उच्च-सटीकता वाली लेजर-फायर तकनीक का उपयोग किया, जिससे परजीवी को बिना आसपास की नाजुक रेटिना संरचनाओं को नुकसान पहुंचाए निष्क्रिय कर दिया गया। करीब एक इंच लंबा परजीवी को निष्क्रिय करने के बाद, हमने इसे विट्रियो-रेटिना सर्जरी तकनीक का उपयोग करके सफलतापूर्वक हटा दिया। डॉ. कर्कुर ने बताया कि मरीज अब स्वस्थ हो रहा है और जल्द ही उसकी दृष्टि में सुधार होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अपने 15 वर्षों के करियर में उन्होंने पहली बार इस प्रकार का मामला देखा और सफलतापूर्वक इलाज किया है।

       एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने  चिकित्सा टीम को इस उपलब्धि पर बधाई देते हुये कहा कि यह उपलब्धि परजीवी संक्रमण और उनकी संभावित जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

न्यूज़ सोर्स : एम्स भोपाल