व्यक्तित्व विकास ...  

 

 

 

 

 

 

 

जैसे रहे विचार, वैसा बने किरदार

  •  कमल किशोर दुबे

       विगत दो-तीन दशक पहले तक अधिकांश लोग यह मानते रहे हैं कि धनाढ्य या अमीर लोगों के "लाड़ले पुत्रों" को जो सुख-सुविधाएँ और उत्तम पदार्थ मिले हुए हैं, हम उनके अधिकारी नहीं हो सकते ! इसके लिए एक जुमला दिया जाता था कि "वे मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं।" अपने व्यक्तित्व को हीन समझने की यह मनोवृत्ति मध्यम एवं निम्नवर्गीय युवक-युवतियों को ऐसा निर्बल बनाती रही है कि इससे वे अपने व्यक्तित्व पर पूरा भरोसा नहीं रख पाते और आत्मविश्वास की कमी के कारण वे अभीष्ट प्राप्त करने से वंचित रह जाते थे।

       अगर आप एक "बौने व्यक्ति" का ही अभिनय करते रहे तो "भीमसेन" कभी नहीं बन सकते ! प्रकृति का कोई नियम ऐसा नहीं है कि जिसके आधार पर बौनापन का विचार करते रहने से भीमसेन की उत्पत्ति हो सके। हमारा जैसा आदर्श या लक्ष्य होता है, वैसी ही प्रतिभा निर्मित होती है। मन में जैसा बनने का "विचार" होता है, वही "मनुष्य" का "लक्ष्य" निर्धारित करता है।

       वर्तमान काल में भी मध्यम वर्ग और निम्नवर्गीय बच्चों को बचपन से यही सिखाया जाता है कि संसार की उत्तमोत्तम वस्तुएँ उनके लिए नहीं हैं। इसलिए उन लोगों के मस्तिष्क में बचपन से ही यह बात बैठ जाती है कि वे ग़रीब परिवार में पैदा हुए हैं अतः निम्नश्रेणी के हैं। इसका परिणाम यह होता रहा कि अनेक स्त्री-पुरुष जो बड़े काम कर सकने की क्षमता सम्पन्न होते हुए भी छोटे-छोटे मामूली कामों में ही अपना जीवन बिता देते हैं। वे अपने व्यक्तित्व से न तो पूरी आशा रखते हैं और न तन-मन से उतना उद्योग कर पाते हैं। इसी हीनभावना के फलस्वरूप उनका व्यक्तित्व एवं बौद्धिक क्षमता होते हुए उनकी प्रतिभा दब कर रह जाती है।

      इसका एकमात्र कारण यह रहा कि अधिकांश लोग अपने जन्मसिद्ध अधिकार को पूरी तरह नहीं समझ पाते और वे कितनी उन्नति करने के लिए उत्पन्न हुए हैं, कितने अंशों में अपने स्वामी बन सकते हैं, इस बात को भी नहीं जानते। अगर हम चाहें तो अपने भाग्य पर पूरा अधिकार प्राप्त कर सकते हैं, जो कार्य अन्य लोगों के लिए संभव है, उनको हम भी प्राप्त कर सकते हैं। हम जैसा बनना चाहें, वैसा बन सकते हैं, यह बात अब पूरी तरह से सिद्ध हो चुकी है।

          अगर आप श्रेष्ठ एवं उच्च विचार रखेंगे, अपना लक्ष्य ऊँचा बनायेंगे, तभी आप मनचाही एवं अभीष्ट प्रगति कर सकते हैं। आपका जीवन स्तर अपने उच्चविचार, सुनियोजित प्रयास एवं निष्ठापूर्वक सतत कर्म से ही श्रेष्ठतम बन सकता है। इसमें साधनों की कमी या परिस्थितियों के अवरोध ( बैरियर्स) भी आड़े नहीं आते। जैसा कि हम जानते हैं कि पहले, व्यवसाय उद्योग-धंधे चलाना या प्रशासनिक अधिकारी बनने का श्रेय उच्चतम या धनाढ्य वर्ग के लोगों को ही प्राप्त होता था। लेकिन विगत कुछ दशकों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार के निम्नवर्गीय युवक-युवतियों ने सुविधा एवं वित्तीय साधनों के इन अवरोधों को सफलता पूर्वक पार करके इस मिथक को तोड़कर अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किये हैं।

 इन्होंने यह बात पूरी तरह सिद्ध कर दी है कि -

"उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।"

     इसका भावार्थ यह है कि उद्यम करने से ही काम सफल होते हैं, न कि मनोरथों से। यह पूरा श्लोक इस प्रकार है :-

 "उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

 न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।"

      इसका तात्पर्य यह है कि उद्यम या सही दिशा में सटीक प्रयास करने से ही मनोरथ सिद्ध होते हैं, सोये हुए शेर के मुँह में हिरण नहीं आते। इस विषय में एक उक्ति और उल्लेखनीय है -

"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।"

           अब हमारे कर्मशील, प्रतिभावान युवावर्ग ने यह सिद्ध कर दिया है कि गाँव हो या शहर प्रतिभाएँ संसाधनों की मोहताज नहीं होती, यही कारण है कि सीमित साधनों के बावजूद भी प्रतिभाएँ निखर कर सामने आ ही जाती है। निम्न उदाहरणों से यह बात पूर्णरूपेण सिद्ध हो जाती है :-

  उत्‍तर प्रदेश के जौनपुर के एक गाँव माधोपट्टी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। यहाँ 1952 में ही एक युवक ने यूपीएससी की परीक्षा पास कर इतिहास रच दिया था। जिसके बाद यह सिलसिला लगातार जारी रहा और सिर्फ 75 घरों वाले गाँव से कुल 47 आईएएस, आईपीएस अधिकारी बन चुके हैं।

        राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपने शौर्य, उत्कृष्ट शिल्प कलाओं, खानपान और संस्कृति के लिए जाना जाता है। वहीं बीते कई सालों से यह राज्य देश को आईएएस और आईपीएस देने के लिए भी जाना जाता है। राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के बामनवास गाँव ने 150 से भी ज्यादा आईएएस, आईपीएस, एवं रेवेन्यू प्रशासनिक अधिकारी दिए हैं। इनमें से कई अधिकारी बड़े आईएएस ऑफिसर भी बने हैं। वहीं कुछ अधिकारी ऐसे रहे हैं, जो बाद में विधायक, सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री तक बने। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस गाँव के एक परिवार के चारों बेटे आईएएस बने। जिसमें बड़े बेटे नमो नारायण मीना बाद में प्रशासनिक सेवा से त्यागपत्र देकर सांसद भी बने।

भारत ही नहीं, ये गाँव दुनिया भर में अपनी इस विशेषता के लिए विख्यात है।

          "सारासर" राजस्थान का ही एक सबसे अमीर गाँव है जो बीकानेर ज़िले के नोखा उपखंड में स्थित है। लगभग 15,000 जनसंख्या वाले इस गाँव के लोग ट्रांसपोर्ट का कारोबार करते हैं, इसलिए यहाँ वाहनों की भरमार है। यहाँ करोड़ों रुपये के मूल्य के 1,500 ट्रक-ट्राले और सैकड़ों बसें हैं। यहाँ के लोग प्रतिवर्ष लगभग 5 करोड़ रुपये से ज्यादा टैक्स भरते हैं। यहाँ सड़क, बिजली, पानी, चिकित्सा और अन्य ज़रूरी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

        वर्तमान समय में केन्द्र सरकार एवं अनेक राज्य सरकारों द्वारा भी स्टार्टअप के माध्यम से नवयुवकों को कौशल विकास प्रशिक्षण देने, स्वयं का व्यवसाय प्रारम्भ करने और अन्य लोगों को रोजगार देने की दिशा में सतत प्रयास कर रही है।

       उपरोक्त से यह प्रमाणित होता है कि हम उच्च विचार, श्रेष्ठ आदर्श एवं उच्च लक्ष्य रखकर सही दिशा में सुनियोजित प्रयास से अपना अभीष्ट प्राप्त कर सकते हैं।

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  ✍️ कमल किशोर दुबे

 

न्यूज़ सोर्स : कमल किशोर दुबे