पुण्य स्मरण.. महाकवि नीरज
पुण्य स्मरण.. महाकवि नीरज
सुबेरे वाली गाड़ी से चले जाएंगे
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नीरज शैलेन्द्र को अपने से श्रेष्ठ गीतकार मानते थे। वे कहते थे- शैलेन्द्र जिस तरह गूढ से गूढ दार्शनिक तत्व को भी सरल शब्दों में सहजता से प्रस्तुत कर देते हैं, उनके जैसे गीत लिखने में मुझे अगला जनम लेना पड़ेगा।
हालांकि ऐसा नहीं था, मेरा नाम जोकर में..ऐ भाई जरा देख के चलो.. शैलेन्द्र की उपस्थिति में उन्होंने ही लिखा था। शायद शैलेन्द्र भी नीरज के बारे में कुछ वैसा ही ख्याल रखते थे जैसा कि नीरज उनके बारे में। दोनों गीतकारों का यही वैशिष्ट्य इन्हें महान बनाता है।
बहरहाल.. जानते हैं, नीरज को शैलेन्द्र का कौन सा गीत इतना प्रभावित कर गया..? नहीं..न..! तो जानिए..
सुबेरे वाली गाड़ी से चले जाएंगे
न कुछ लेकर आए हैं
न कुछ लेकर जाएंगे
सुबेरे वाली गाड़ी से चले जाएंगे।
नीरजजी प्रायः हर कवि सम्मेलन में यह दोहा जरूर पढ़ते थे-
मित्रो हर पल को जियो अंतिम पल ही मान।
है अंतिम पल कौन सा, कौन सका है जान।।
राष्ट्र के इस महान गीतऋषि को उनकी
पुण्यतिथि पर कोटिशः नमन! ( जयराम शुक्ल, वरिष्ठ पत्रकार )