सरोकार

आरक्षण में कोटे में कोटा : सुप्रीम कोर्ट का क्रांतिकारी निर्णय

*डॉ. चन्दर सोनाने 

                सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की पीठ ने 6:1 के बहुमत से हाल ही में ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसला सुनाया है।  चीफ जस्टिस डी.व्हाय. चन्द्रचूड़ ने इस संबंध में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कैटेगरी के भीतर नई सब कैटेगरी बनाकर इस श्रेणी में अति पिछड़ों को अलग से कोटा दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय ऐतिहासिक और क्रांतिकारी निर्णय है। इसका अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को स्वागत करना चाहिए।

                         सुप्रीम कोर्ट का कोटे में कोटा का फैसला 7 जजों की संविधान पीठ ने 565 पृष्ठ में 6 फैसलें लिखे हैं। इनमें से 5 फैसले सहमति के हैं और 1 फैसला असहमति का है। यह फैसला 6:1  के बहुमत का है।  असहमति वाला फैसला जस्टिस सुश्री बेला एम. त्रिवेदी ने लिखा है। सीजेआई श्री डी.व्हाय. चन्द्रचूड़ और जस्टिस श्री मनोज मिश्रा ने संयुक्त रूप से फैसला लिखा है। जस्टिस श्री बी. आर. गवई, जस्टिस श्री विक्रम नाथ, जस्टिस श्री पंकज मित्तल और जस्टिस श्री सतीश चन्द्र शर्मा ने अपने-अपने फैसले लिखे हैं।

               सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ के उक्त निर्णय से अब राज्य सरकारों को ये अधिकार होगा कि वे एससी और एसटी वर्ग में शामिल सभी समुदायों के लिए आरक्षित कोटे में से जातियों के पिछड़ेपन के आधार पर कोटा तय कर सकते हैं। अभी देश में एससी वर्ग के लिए 15 प्रतिशत और एसटी वर्ग के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण है। इस प्रकार देश में कुल 22.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। राज्य सरकारें एससी और एसटी के उन कमजोर वर्गों का कोटा तय कर सकेंगे, जिनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है। अब यह राज्य सरकारों को तय करना है कि वह इसका किस तरह से पालन सुनिश्चित करें। किस वर्ग को कितना आरक्षण देना है, उसे तय करने के लिए राज्य सरकारें विशेषज्ञ पैनल बना सकती है। ये पैनल रिसर्च और डेटा के माध्यम से बतायेगा कि कौन सा वर्ग आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक स्तर पर कितना पिछड़ा है ? इसके लिए जरूरी है कि विशेषज्ञ पैनलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो।

                        अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वर्गां के लोगों को भी अब यह सोचने की आवश्यकता है कि उन्हीं के बीच की अभी भी ऐसी अनेक उपजातियाँ हैं, जो अत्यन्त गरीब हैं और वे सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक दृष्टिकोण से अत्यन्त पिछड़े हैं। इसलिए उनकी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वे अब अपने उन भाईयों पर भी ध्यान केन्द्रित करें, जो उनसे भी ज्यादा दयनीय स्थिति में है। उन्हें आगे बढ़ाने के लिए और प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी है कि जिन्होंने आरक्षण लाभ ले लिया है, वे त्याग करें। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अभी भी कुछ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग ऐसे हैं, जिन्होंने समर्थ होने पर स्वेच्छा से आरक्षण का लाभ नहीं लिया है, ताकि उनके अन्य भाई आरक्षण का लाभ ले सके। यह करके उन्होंने सबके सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है।

                          उदाहरण के लिए मध्यप्रदेश के संदर्भ में यदि बात करें तो प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग की 48 उपजातियाँ है और अनुसूचित जनजाति वर्ग की 46 उपजातियाँ है। किन्तु इन उपजातियों में से कितने कर्मचारी वर्तमान में कार्यरत है ? यह जानकारी उपलब्ध नहीं है। अन्य राज्यों में भी यही स्थिति है। इसलिए बहुत जरूरी है कि राज्य सरकार बहुत सोच समझ कर इस संबंध में पूरी जानकारी एकत्रित करने के बाद ही निर्णय लें कि कोटे के अंदर कोटा किनका और कितना दिया जाना है ?

                 मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण है। किन्तु इसका सर्वाधिक लाभ जाटव, महार, मेहरा, अहिरवार आदि को मिला है। इसी वर्ग की अन्य उपजाति में बेड़िया, बंसोर, बेलदार, भंगी, मेहतर, चड़ार, झमराल, पासी, कुछबंदिया, खंगार, झइझर, कालबेलिया, सपेरा, नवदीगार, कोटवाल, चितार आदि को आरक्षण का पर्याप्त लाभ नहीं मिला है। इस कारण इन्हें भी आरक्षण में लाभ मिलना ही चाहिए।

                          इसी प्रकार मध्यप्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्रदेश में 20 प्रतिशत आरक्षण है। इस वर्ग में सरकारी नौकरियों में गोंड, कौल, भील, भिलाला, बारेला, डामोर आदि जाति का सर्वाधिक कब्जा है। किन्तु सहरिया, उरांव, नगेसिया, मवासी, धनुका, धनगड़, पनिका आदि उपजातियों में तुलनात्मक रूप से बहुत कम प्रतिनिधित्व है। इस कारण इन्हें भी आरक्षण में लाभ मिलना ही चाहिए।

                         सुप्रीम कोर्ट का उक्त फैसला सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए ही है। इससे ओबीसी और सामान्य जाति वर्ग के आरक्षण पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यहाँ यह जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सब पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। अर्थात अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए कोटे में कोटा का फैसला हुआ है। किन्तु इसे तब तक लागू नहीं किया जाना चाहिए, जब तक ओबीसी और सामान्य वर्ग के आरक्षण में भी कोटे में कोटा का आरक्षण का प्रावधान नहीं हो। उदाहरण के लिए पिछड़े वर्ग में यादव, पाटीदार, आंजना आदि भी आते है जो राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न हैं। जबकि पिछड़ी जाति में वास्तव में ऐसी अनेक उप जातियाँ हैं, जो वास्तव में पिछड़ी है, इन्हें भी आरक्षण में कोटे में कोटा का लाभ मिलना चाहिए। इसी प्रकार सामान्य वर्ग के आरक्षण में भी कोटे में कोटा का प्रावधान किया जाना चाहिए। क्योंकि सामान्य वर्ग में भी कई उप जातियाँ ऐसी हैं, जो गरीब है। उसे भी कोटे में कोटा का लाभ मिलना चाहिए।

                         यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संविधान ने आरक्षण का प्रावधान इसलिए किया था कि अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोग मुख्य रूप से सामाजिक दृष्टि से अत्यन्त पिछड़े हैं। अभी भी इन दोनों वर्ग के ऐसे अनेक व्यक्ति मिल जायेंगे जो आर्थिक रूप से तो सम्पन्न हो गए हैं, किन्तु अभी भी सवर्ण वर्ग के लोग विवाह के लिए अनुसूचित जाति और जनजाति के वर्ग के लोगों से बेटी देने या लेने के बारे में नकारात्मक सोच रखते हैं। इसलिए अनुसूचित जाति और जनजाति के वर्गों पर क्रीमीलेयर लागू नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय देने वालों में एक जस्टिस श्री बीआर गवई ने अपने फैसले में यह कहा है कि क्रीमीलेयर को एससी एसटी पर भी लागू किया जाना चाहिए। किन्तु अभी इसका समय नहीं आया है। उल्लेखनीय है कि अभी ओबीसी और सवर्ण आरक्षण में सालाना 8 लाख रूपए से ऊपर कमाने वाले लोग क्रीमीलेयर के अर्न्तगत आते हैं। (आलेख में लेखक के अपने विचार हैं)

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   हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग में एक नई उप श्रेणी बनाकर एक महत्वपूर्ण निर्णय देकर अति पिछड़ों को अलग से आरक्षण देने का सुझाव दिया है उच्चतम न्यायालय के इस सुझाव के बाद देश में आरक्षण को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है इस सुझाव के समर्थन और विरोध में बयानबाजी भी चल रही है हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि उच्चतम न्यायालय के इस सुझाव पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी और वर्तमान में चल रही आरक्षण की व्यवस्था यथारूप लागू रहेगी फिलहाल यह मुद्दा थम सा गया लगता है, फिर भी इस विषय पर राष्ट्रीय बहस की जरूरत है इस संवेदनशील मुद्दे पर सामाजिक परिवर्तन पर गहरी नजर रखने वाले डा. चंदर सोनाने ने भी अपने आलेख में सूक्ष्म विश्लेषण कर विचार व्यक्त किये हैं सरोकार स्तंभ के माध्यम से डा. सोनाने सामाजिक और समसामयिक मुद्दों पर नियमित लेखन कर रहे हैं समय – समय पर डा. सोनाने के विचारोत्तेजक आलेख आपको पढ़ने को मिलते रहेंगे. धन्यवाद.... मधुकर पवार, सम्पादक