महाकुंभ का वैज्ञानिक आधार .... आलेख...... सूर्य भूषण कुमार
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प्रयागराज में चल रहे महाकुम्भ में 50 करोड़ से अधिक श्रद्दालुओं ने आस्था की डुबकी लगा ली है। अभी दस दिन शेष हैं और उम्मीद है कि श्रद्दालुओं की संख्या का आंकड़ा 60 करोड़ को पार कर जाएगा। इस बार प्रयागराज में आयोजित कुम्भ को महाकुम्भ कहा जा रहा है और यह सुअवसर 144 वर्षों के बाद आया है। इस बारे में मीडिया में खूब प्रचारित किया गया और इसी का परिणाम है कि श्रद्दालुओं की भारी भीड़ प्रयागराज पहुंच रही है। सभी श्रद्धालुओं को मन में यही बात घर कर गई है कि इस जीवन काल में ऐसा अवसर फिर कभी नहीं आयेगा। वैसे हर बारह साल में प्रयागराज में कुम्भ का आयोजन होता है लेकिन इस बार महाकुम्भ के रूप में आयोजित किया गया है। श्री सूर्य भूषण कुमार ने महाकुम्भ के वैज्ञानिक आधार आलेख में विस्तार से बताया है। उम्मीद है इस आलेख से अनेक शंकाओं का समाधान होगा। सम्पादक...
महाकुंभ का वैज्ञानिक आधार
- सूर्य भूषण कुमार
प्रयागराज में जहां मुख्य केंद्र बिंदु के ऊपर बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा के साथ ही शनि की उपस्थिति में जो किरणें प्रयागराज त्रिवेणी के संगम में स्नान ( सूर्य की मौजूदगी में) करने के दौरान पड़ती हैं, वही ऊर्जा हमारे शरीर को बहुत ही ऊर्जामय बना देती है। अगर आप यहां कम से कम 30 दिनों तक रुक कर स्नान करते हैं तो इसका असर आपके शरीर पर सबसे ज्यादा होगा। अगर आप एक दिन भी स्नान करते हैं, तब भी इसका असर आपके शरीर पर बरसों तक मौजूद रहेगा । हमारे पूर्वज ऋषि-मुनि, साधु-संत पूरे महाकुंभ के दिनों में स्नान कर स्वस्थ रहते थे एवं लम्बा जीवन जीते थे।
इस वर्ष प्रयागराज का महाकुंभ एक विशेष महत्व रखता है, जिसका वैज्ञानिक कारण 12 वर्ष x 12 कुंभ =144 वर्ष के बाद महाकुंभ, इस 144 वर्षों में शनि ग्रह भी इन 42 दिनों में पृथ्वी के सामने है, खास कर प्रयागराज का क्षेत्र में। वैसे बाकी के वर्षों में बृहस्पति एवं शनि के सामने कोई ना कोई ग्रह या उपग्रह मौजूद रहता है, जो इनकी ऊर्जा को रोक देता है। इन तीनों ग्रह-उपग्रह के साथ-साथ शनि ग्रह भी अपना विशेष ऊर्जा पृथ्वी के ऊपर प्रवाहित कर रहा है। इन ग्रहों के अलावा 27 नक्षत्र एवं 12 राशि भी अपने विशेष स्थिति में आकाश में मौजूद हैं जो 144 वर्ष बाद ही बनते हैं।
इस वर्ष 2025 में तीनों ग्रह एवं उपग्रह साथ में शनि ग्रह लगभग 42 दिन तक इस स्थिति में रहेंगें। इस त्रिकोणीय स्थिति में महाकुंभ स्नान के बाद शरीर को प्राप्त ऊर्जा सभी मृअॅत कोशिकाओं को भी सक्रिय कर देता है। शरीर में मौजूद बड़े-बड़े रोगों को नष्ट कर देता है । यही ऊर्जा शरीर में सभी मौजूद मृतप्रायः कोशिकाओं एवं अवरूद्ध नसों को सक्रिय कर देता है।
महाकुंभ में स्नान के दौरान हमारा शरीर आधा नदी में रहता है, तब हमारा पैर पृथ्वी को छू रहा होता है और आधा शरीर एवं सिर धूप में रहता है। इस स्थिति में ही सूर्य की किरणें एवं बृहस्पति ग्रह के चुंबकीय ऊर्जा से प्राप्त पॉजिटिव एनर्जी सिर से होते हुए पैर के माध्यम से पृथ्वी के नेगेटिव की ओर आकर्षित होता है। इसी दौरान हमारा शरीर उस ऊर्जा के अधिकतम भाग को अवशोषित कर लेता है। यही ऊर्जा अत्यधिक मात्रा में प्राप्त कर हमारा शरीर पूर्णरूपेण सक्रिय हो जाता है। इससे हमारे शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं एवं हमारा शरीर प्रफुल्लित होता है। यही ऊर्जा हमारे दिमाग को भी बहुत तेजी से सक्रिय कर अत्यधिक तेज बना देता है। स्वास्थ्य से संबंधित शरीर को ऊर्जा मिलने के कारण शरीर की उम्र भी बढ़ जाती है।
मकर संक्रांति और महाकुंभ का गहरा महत्व
महाकुंभ और इसमें निहित वैज्ञानिक आधारों को हम देखें तो हम पाते हैं कि यह अति प्राचीन एवं वृहद त्योहार भी खगोलीय संरेखण पर आधारित है। जैसा हम जानते हैं कि आज की अंतरराष्ट्रीय खगोल वैज्ञानिक संघ की ग्रहीय परिभाषा के अनुसार आज हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं, जिनकी सूर्य से दूरी के क्रम में नाम निम्नानुसार है. आठ ग्रह बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण हैं। उनमें से सबसे बड़ा ग्रह है बृहस्पति, जिसे गुरु भी कहा जाता है। प्राचीन कालीन सभ्यताओं ने भी पांच ग्रहों को अपनी साधारण आंखों से ही पहचान लिया था, जिनमें से बृहस्पति भी एक था। आज के समय में भी अगर आप भी थोड़ा अधिक प्रयास करेंगे तो अलग - अलग रात्रि के दौरान दिखाई देने वाले इन पांचों ग्रहों को विभिन्न समय पर आप भी पहचान सकते हैं। बृहस्पति जो कि शुक्र ग्रह के बाद सबसे ज्यादा चमकीला पिंड है, यह मुख्य रूप से लगभग 75 प्रतिशत हाइड्रोजन और 24 प्रतिशत हीलियम और अन्य तत्वों से बना हुआ है।
1610 में हुई थी 4 बड़े चंद्रमाओं की खोज :
दूरबीन से देखने पर बाहरी वातावरण में दृश्य पट्टियां भी दिखाई देती हैं जिसमें एक लाल धब्बा भी है, जिसे ग्रेट रेड स्पॉट कहा जाता है। गैलीलियो ने 17वीं सदी में अपनी दूरबीन से देखा था जबकि हमारे भारत में ऋषियों ने इसको हजारों वर्ष पहले ही जान लया था । सर्व प्रथम 1610 में गैलीलियो ने इसके चार बड़े चंद्रमाओं को देखा, जिनके नाम हैं- गैनिमेड, यूरोपा, आयो और कैलिस्टो। अगर हम बृहस्पति ग्रह की तुलना अपनी पृथ्वी से करें तो हम पाते हैं कि इसमें लगभग 1331 पृथ्वी समा सकती हैं, और इसका चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में 14 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। यह सूर्य से लगभग 77 करोड़ 80 लाख किलोमीटर दूर है और सूर्य का एक चक्कर लगाने में 11.86 वर्ष का समय लगता है जो कि लगभग 12 वर्ष के बराबर होता है। इसे हमारे
ऋषि / पूर्वज पहले ही जान चुके थे। बृहस्पति का अक्षीय झुकाव केवल 3.13 डिग्री है। जिस कारण इस पर कोई मौसम परिवर्तन नहीं होता है। यह बहुत तेज़ गति से घूर्णन करता है। अपने अक्ष पर 09 घंटा 56 मिनट में एक बार घूमता है। इसका मतलब होता है कि इसका दिन लगभग 10 घंटे का ही होता है।
आधुनिक खगोल विज्ञान में वैक्यूम क्लीनर भी कहा जाता है, जो कि पृथ्वी पर आने वाले धूमकेतुओं से भी बचाता है। बृहस्पति ग्रह जिसे गुरु भी कहा जाता है, का हमारे देश में एक विशेष स्थान है क्योंकि भारत में कुम्भ मेला आयोजित होता है। कुम्भ का शाब्दिक अर्थ होता है कलश और कलश का मतलब होता है घड़ा, सुराही या पानी रखने वाला बर्तन। और मेला का मतलब होता है, जहां पर मिलन होता है। इस मेला के दौरान शिक्षा, प्रवचन, सामूहिक सभाएं, मनोरंजन और यह सामुदायिक वाणिज्यिक उत्सव भी हैं। बड़ी बात यह है कि यह त्यौहार दुनिया की सबसे बड़ी सभा माना जाता है। इस उत्सव को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया है। खगोलीय गणनाओं के हिसाब से यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारंभ होता है और जब एक खास खगोलीय संयोजन होता है तभी यह मेला आयोजित होता है।
अगली बार 2157 में लगेगा महाकुंभ मेला :
महाकुंभ तब आयोजित होता है जब सूर्य मकर राशि में, चंद्रमा मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है। इस बार वर्ष 2025 में प्रयागराज में पूर्ण कुम्भ मेला आयोजित किया गया है। महाकुम्भ मेला प्रयागराज में प्रत्येक 144 वर्ष अर्थात 12 पूर्ण कुम्भ मेलों के बाद आयोजित होता है।
अगला महाकुम्भ मेला 2157 में आयोजित होगा। जब गुरु कुम्भ राशि में, सूर्य मेष राशि में और चन्द्रमा धनु राशि में होता है तब कुम्भ मेला हरिद्वार में लगता है। जब गुरु वृषभ राशि में तथा सूर्य, चन्द्रमा मकर राशि में होते हैं तब प्रयागराज में कुम्भ मेला आयोजित होता है।
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