आलेख ....

 

मिट्टी परीक्षण : का वर्षा जब कृषि सुखाने

 

  • मधुकर पवार

 

03 जुलाई को मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने विधानसभा में वर्ष 2024 – 25 का बजट पेश करते हुये बताया कि सरकार मिट्टी परीक्षण का दायरा बढ़ाने के लिये किसान उत्पादक संगठनों और कृषि स्नातक उद्यमियों के माध्यम से मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं के संचालन का नवाचार करने जा रही है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया है कि इस नवाचार से कृषि उत्पादन में वृद्धि होने के साथ ही शिक्षित युवाओं को स्वरोजगार और रोजगार भी मिल सकेगा। बजट में मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं के संचालन के लिये चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिये 50 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 5 गुणा अधिक है। यह एक सराहनीय पहल है लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं की उपयोगिता कितनी बची है ? वर्तमान में मिट्टी परीक्षण करवाने वाले किसानों की संख्या कितनी है ? यदि कोई किसान मिट्टी परीक्षण के लिये नमूना प्रयोगशाला में जमा करता है तो उसे रिपोर्ट कितने दिनों बाद मिलती है ? क्या वह किसान उस रिपोर्ट के अनुसार खेतों में पोषक तत्वों की पूर्ति समय पर कर पाता है ? वास्तविकता तो यही है कि अभी भी बहुत कम किसानों के पास मृदा स्वास्थ्य कार्ड हैं। बहुत कम किसान मिट्टी परीक्षण करवाते हैं। और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जब किसान मिट्टी परीक्षण के लिये नमूना प्रयोगशाला में जमा करता है तो उसे रिपोर्ट मिलने में महीनों लग जाते हैं। ऐसी स्थिति में किसान अपने विवेक और अनुभव के आधार पर ही खेतों में खाद डालता है। तब यह कहावत भरितार्थ होते एहै... का वर्षा जब कृषि सुखाने । यानि अब वर्षा होने का क्या फायदा जब फसल सूख गई है।         

हाल ही में एक राष्ट्रीय चैनल में प्रसारित खबर में बताया गया कि मध्यप्रदेश के 313 विकासखंडों में मिट्टी परीक्षण के लिये कुल 263 प्रयोगशालाएं हैं  जिनमें से अधिकांश कर्मचारियों की कमी के कारण इनका उपयोग नहीं हो पा रहा है इन प्रयोगशालाओं को स्थापित करने में करीब 150 करोड़ रूपये खर्च हुये हैं रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रदेश में करीब 11 लाख 89 हजार मृदा स्वास्थ्य कार्ड बने हैं भारत सरकार ने करीब साढ़े बारह लाख मिट्टी परीक्षण का लक्ष्य दिया था इसकी तुलना में मात्र 5 लाख 58 हजार मिट्टी के नमूने एकत्रित किये गये तथा 2 लाख 84 हजार नमूनों की जांच की गई यह रिपोर्ट आंख खोलने वाली है। मध्यप्रदेश में कुल किसानों की संख्या लगभग 1 करोड़ है। इसमें 1 हैक्टेयर तक जोत सीमा वाले सीमांत किसान 38 लाख 91 हजार हैं। वहीं लघु किसान जिनकी जोत सीमा 1 से दो हैक्टेयर के बीच है, उनकी संख्या करीब 25 लाख है।

उपर्युक्त आंकड़ों से प्रतीत हो रहा है कि सरकार और किसान दोनो ही मिट्टी परीक्षण को लेकर संवेदनशील नहीं हैं। यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि करीब एक करोड़ किसानों की संख्या पर मात्र 12 लाख के लगभग मिट्टी परीक्षण का लक्ष्य और लक्ष्य से आधे से भी कम नमूने एकत्रित करना तथा एकत्रित किये नमूनों में से करीब आधे नमूनों की जांच करना केवल औपचारिकता ही है। ऐसा लगता है कि सरकार के नुमाईंदे किसानों को मिट्टी परीक्षण कराने के फायदे बताने असफल रहे हैं या किसान मिट्टी की जांच नहीं करवाना चाहते। इससे इतर यह भी हो सकता है कि किसान मिट्टी की जांच करवाना तो चाहते हैं लेकिन जांच की रिपोर्ट समय पर नहीं मिलने से वे इसका उपयोग खेतों में नहीं कर पाते इसलिये वे मिट्टी की जांच करवाने में रूचि नहीं ले रहे हैं।  

जिस तरह मनुष्य के खून और विभिन्न जांचों के जरिये पता चल जाता है  कि शरीर में कौन से तत्वों की कमी है अथवा क्या – क्या बीमारी होने की आशंका है। इसी तरह मिट्टी की जांच से पता चल जाता है कि मिट्टी में कौन - कौन से पोषक तत्वो की कमी है। यदि किसानों को फसल लगाने से पहले यह पता चल जाये कि उसके खेत में कौन – कौन से पोषक तत्वों की कमी है तो वह उनकी पूर्ति के लिये जरूरी पोषक तत्व / खाद जमीन में डालेगा। जमीन में पोषक तत्वों की कमी का पता चलने और लगाई जाने वाली फसलों में कौन से पोषक तत्वों की जरूरत होती है, यह बात किसानों को पता चल जाये तो वे समय रहते फसल लगाने से पहले जमीन में उन तत्वों की कमी को पूरी कर देगा इससे एक ओर जहां जमीन की उर्वरा शक्ति पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा वहीं दूसरी ओर उत्पादन में भी वृद्धि होगी 

पौधों की समुचित वृध्दि एवं विकास के लिये कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्निशियम एवं सल्फर में से प्रथम तीन तत्वों को पौधे प्राय: वायु और पानी से प्राप्त करते है जबकि शेष पोषक तत्व  भूमि से प्राप्त होते हैं । इन पोषक तत्वों को खेत में आवश्यकतानुसार उपयोग करने से ही अपेक्षित उत्पादन प्राप्त कर खेती को लाभ का धंधा बनाया जा सकता है । खेतों में उर्वरक डालने की सही मात्रा की जानकारी मिट्टी परीक्षण के बाद ही मिल सकती है । इसके अभाव में परम्परागत रूप से उर्वरकों के उपयोग से उत्पादन में वृद्धि के स्थान पर नुकसान होने की भी सम्भावना हो सकती है

     वस्तुस्थिति यह है कि मिट्टी परीक्षण के लाभ के बारे में किसानों को जितनी जानकारी होनी चाहिये, वह नहीं है यही कारण है कि मिट्टी परीक्षण की प्रयोगशालाओं का बहुत कम उपयोग हो रहा है इसी का दूसरा पक्ष यह भी है कि प्रयोगशालाओं में प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के कारण मिट्टी के नमूनों की जांच रिपोर्ट समय पर नहीं मिलती इस सम्बंध में शासन स्तर पर मिट्टी की जांच के लिये ठोस कदम उठाने की जरूरत है किसानों को उपलब्ध कराये गये मृदा स्वास्थ्य कार्ड में किसानों से यह भी जानकारी लेनी चाहिये कि वह मिट्टी परीक्षण कराई गई जमीन पर कौन सी फसल लगा रहा है? सम्बंधित फसल के लिये कौन से पोषक तत्वों की जरूरत होगी? फसल में पोषक तत्वों की आवश्यकता के अनुसार जमीन में पोषक तत्वों की पूर्ति करने से निश्चित ही अपेक्षित उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है मिट्टी परीक्षण कराने से लागत में भी कमी आने और अधिक उत्पादन होने से किसानों की आय में भी वृद्धि हो सकेगी। यदि ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो निश्चित ही खाद्यान्न में भी सभी जरूरी पोषक तत्व मौजूद रहेंगे जो हमारे स्वास्थ्य के लिये जरूरी होते हैं। और यह तभी सम्भ्व है 15 - 20 गावों के बीच एक मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला और सभी किसानों के लिये मिट्टी परीक्षण करवाना अनिवार्य हो।

जैसा कि मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री ने बजट में उम्मीद जतायी है कि किसान उत्पादक संगठनों और शिक्षित युवाओं को मिट्टी परीक्षण के कार्य से जोड़ा जायेगा, उम्मीद की जानी चाहिये कि इन प्रयासों से शत प्रतिशत किसानों के मृदा स्वास्थ्य कार्ड बन जायेंगे। शत प्रतिशत किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच की जाएगी और उन्हें समय सीमा के भीतर जांच रिपोर्ट मिल जायेगी ताकि सम्बंधित किसान अपने खेतों में फसल लगाने अथवा बुवाई करने से पहले जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति कर सके।

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