तुलसी दास जयंती पर विशेष.....

कलियुग के प्रारम्भ होने के पश्चात् सनातन हिन्दू धर्म यदि किन्हीं महापुरुषों का सबसे अधिक ऋणी है तो वह हैं- आदि गुरु शंकराचार्य और गोस्वामी तुलसीदास। शंकराचार्य जी ने 2500 वर्ष पूर्व बौद्ध मत के कारण लुप्त होती वैदिक परम्पराओं को पुनर्स्थापित करके दिग्दिगंत में सनातन हिन्दू धर्म की विजय वैजयंती फहराई। विदेशी आक्रमणकारियों के कारण मंदिर तोड़े जा रहे थे, गुरुकुल नष्ट किये जा रहे थे, शास्त्र और शास्त्रग्य दोनों विनाश को प्राप्त हो रहे थे, ऐसे भयानक काल में तुलसीदास जी प्रचंड सूर्य की भाँति उदित हुए। उन्होंने जन भाषा में 'श्री रामचरितमानस' की रचना करके उसमें समस्त आगम, निगमपुराणउपनिषद आदि ग्रंथों का सार भर दिया और वैदिक हिन्दू सिद्धांतों को सदा के लिए अमर बना दिया था। (साभार)

तुलसीदास जी का जन्म आज से ठीक 401वर्ष पूर्व, विक्रम संवत 1680 में, श्रावण शुक्ल सप्तमी को चित्रकूट के पास राजापुर ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी बाई था।

 

आज गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर पश्चिम मध्य  रेलवे के वरिष्ठ जन सम्पर्क अधिकारी (से.नि.) श्री कमल किशोर दुबे ने दोहों के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त की हैं.

श्रावण शुक्ला सप्तमी, जन्म हुआ उपराम।

माँ हुलसी का लाड़ला, आत्मज आत्माराम।।

जाति-पाँति के ताप से, झुलस रहा परिवेश।

तुलसी ने सद्ज्ञान का, दिया दिव्य संदेश।।

पैदा होते ही जपा, पुण्य राम का नाम।

नाम रामबोला पड़ा, रामभक्त अविराम।।2।।

वामा  थी  रत्नावली, प्रेम-प्रतीति सुहाय।

रत्नावली की प्रीति में, बाढ़ न साँप डराय।।3।।

धिक्कारा रत्नावली, तब बन तुलसीदास।

मानव धर्म समाज हित, रचा राम इतिहास।।4।।

रामचरित मानस रची, अद्भुत और अनूप।

धर्मभक्ति के बन गये, तुलसी स्वयं स्वरूप।।5।।

हुलसी के सुत लाड़ले, हृदय बसें सिय-राम।

रामकथा मन्दाकिनी, शत-शत नमन प्रणाम।।6।।

जाति-पाँति के ताप से, झुलस रहा परिवेश।

तुलसी ने सद्ज्ञान का, दिया दिव्य संदेश।।7।।

अवधी भाषा लोक की, रचे सकल सद्ग्रन्थ।

शैव, शाक्त, वैष्णव सभी, चले एक ही पंथ।।8।।

प्रेरित किया समाज को, चलें धर्म की राह।

कर्म करें निष्ठा सहित, करें धर्म परवाह।।9।।

मंत्र दिया जग को सरल, दो अक्षर का नाम।

निर्मल मन जपते रहें, राम नाम सुखधाम।।10

सनातनी उद्धार हित, अभिनव किये प्रयास।

चित्रकूट दर्शन मिले, अद्भुत तुलसीदास।।11।।

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